मकड़ाई एक्सप्रेस 24 भोपाल। अभी विद्यार्थी रिजल्ट पाकर खुश हुए है और नवीन कक्षाओ में प्रवेश और किताबो की बढ़ती कीमत ने अभिभावको को हलकान कर रखा है।हर वर्ष स्कूलो के द्वारा किताबो को बदलना और फिर नई किताबो के लिए स्टेशनरी का चक्कर लगाना पड़ रहा है।अब शिक्षा बहुत महंगी होती जा रही है। निजी स्कूलों में अच्छी खासी लूट मचा रखी है। नई किताबे खरीदना पड़ रहा है पुरानी किताबे बेकार होे रही है सिलेबस और प्रकाशन बदल दिए जाने से अभिभावको की जेब पर खासा असर पड़ता है। स्कूलो की फीस,कपडे,जूते,बैग और किताब कापियां बच्चों की नर्सरी प्रायमरी की पढ़ाई के खर्चे में तो कालेज की पढ़ाई हो जाए कहे तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी।
सरकार को चाहिए कि निजी स्कूलो के लिए गाइडलाइन जारी करे जिसमें विद्यार्थियों से अतिरिक्त फीस न वसूले,किताबो को बार बार न बदले। अब तक जहां स्कूलों की फीस जुटाने में परिजनों की कमर टूट जाती थी वहीं अब बच्चे की किताबें खरीद में कई महीनों का घर का बजट हिल जाता है। कई स्कूल तो ऐसे हैं जिनमें किताबों का सेट 8 से 10 हजार रुपये तक है। एक तरफ स्कूली छात्रों के स्वजन परेशान हैं वहीं दूसरी ओर प्रशासन सब कुछ जानकर भी अनजान बना हुआ है। इसका परिणाम यह आ रहा है कि मजबूर लोग किताबें खरीदने के लिए दुकानों पर सुबह से ही लंबी लाइनें लगाकर खडे हो जाते है। भरी गर्मी में तपती धूप में लाइन लगा कर लोग अपने बच्चों की किताबें खरीद रहे हैं।
ग्वालियर — कलेक्ट्रेट में हुई जनसुनवाई के दौरान मंहगी किताबों और यूनिफार्म की कई शिकायतें पहुंची थी। जिसके बाद जिले के शिक्षा अधिकारी अजय कटियार से इस मामले का संज्ञान लेते हुए टीम बनाकर जांच करवाने की बात कही थी। लेकिन अभी भी स्थिति यथावत ही है।नियम कहता है कि किसी भी अभिभावक को एक ही दुकान से पुस्तकें खरीदने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो इसकी शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी को की जा सकती है। लेकिन स्कूलों ने सिर्फ खानापूर्ति के लिए दुकानों की सूची जारी की है लेकिन उनमें से सिर्फ एक या दो दुकानों पर ही पुस्तकें मिलेगी , शेष सिर्फ सही दुकान का पता बताते हैं।