मकड़ाई समाचार उप्र| इलाहाबाद (अब प्रयागराज) निवासी हरिप्रसाद लाल श्रीवास्तव मंडला जिले के बीजाडांडी में बीईओ थे। उनके मातहत विजयपुर प्राथमिक शाला के शिक्षक शंकरदास सोनवानी ने रिश्वत लेने का आरोप लगाया और इसकी शिकायत लोकायुक्त जबलपुर कार्यालय में की। सोनवानी का आरोप था कि 1993 में उसका तबादला लालपुर हो गया।उसके बाद जुलाई 1993 से सितंबर 93 तक की सैलरी रोक दी गई। इसके लिए वह बीईओ श्रीवास्तव से मिले। उन्होंने वेतन निकालने के लिए एक हजार रुपए की रिश्वत मांगी। उसने 500 दिए। शेष रकम बाद में देना तय हुआ। शिकायत पर एफआइआर दर्ज करने के बाद 12 जनवरी 1994 को ट्रेप किया गया।बीईओ श्रीवास्तव के खिलाफ रिश्वत लेने के आरोप में चार्जशीट पेश हुई। विशेष न्यायालय मंडला ने 30 जून 1998 को श्रीवास्तव को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी करार देकर एक वर्ष कारावास की सजा सुनाई। इस फैसले को श्रीवास्तव ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
31 दिसम्बर 2006 को श्रीवास्तव का देहावसान हो गया। उस समय बड़े बेटे विजय 39 वर्ष व छोटे बेटे विहल 27 साल के थे। मां विमला श्रीवास्तव के साथ वे पिता पर लगा दाग हटाने के लिए केस आगे लड़ते रहने की मंशा जताई। इस पर हाईकोर्ट में आवेदन प्रस्तुत कर इसकी अनुमति ली गई।खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) दुनिया से विदा हो गए तो बेटों ने यह जंग लड़ी। उनका 16 साल का संघर्ष तब कामयाब हुआ, जब 24 साल बाद हाईकोर्ट ने बीईओ को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। इस फैसले से भावुक बेटों ने कहा कि अब जाकर उनके पिता की आत्मा को शांति मिली होगी