HARDA NEWS: सुल्या बाबा जिसे कहते है सतपुड़ा का सरताज, सतपुड़ा के पहाड़ों की सबसे ऊंची चोटी, क्या रहस्य है इस स्थान का
तीन दिन का लगता है मेला, आज होगा समापन

मकड़ाई समाचार हरदा। मकड़ाई क्षेत्र के आसपास कहि ऐसे ऐतिहासिक धार्मिक स्थान है। जिनके पीछे कहि रहस्य छिपे हुए है जो आज भी बरकरार है । ऐसे धार्मिक स्थान जो चमत्कारों से भरे हुए है। जहाँ लोगो की आस्था विश्वास वर्षो से जुड़ा हुआ है। जमीन की सतह से हजारों फुट की ऊँचाई पर स्थित एक ऐसा स्थान जहाँ जाना किसी खतरे से कम नही। आदिवासी समाज के लोग जान जोखिम में डालकर दर्शन करने जाते है। वारिश के दिनों में तो यहां का नजारा बहुत ही खूबसूरत रहता है। सिराली तहसील क्षेत्र के ग्राम सावरी से 3 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर पथरीले जोखिम भरे रास्ते से होकर जाना पड़ता है। कहते है सतपुड़ा के पहाड़ों पर यह सबसे ऊंची चोटी है। जहां सुल्या बाबा ओर माँ काली कंकाली का स्थान है। यहाँ लोग दूरदराज देवास बैतूल खंडवा व महाराष्ट्र के लोग आज भी दर्शन करने आते है । मन्नत पूरी होने पर इस स्थान पर लोग पूजा पाठ करते है। और यहां बकरे की बलि भी लोग चढ़ाते है।
प्रतिवर्ष लगता है मेला

पिछले 9 वर्षों से सुल्या बाबा मेला उत्सव समिति यहाँ पर तीन दिन के मेले का आयोजन करती आ रही है। मेले में आसपास के व्यापारी अपनी दुकान लगाते है। वही समिति द्वारा इनामी कब्बडी प्रतियोगिता ठंडा प्रतियोगिता का आयोजन रखा जाता है। यहां अदिवादी समाज के लोग सांस्कृतिक कार्यक्रम में रखते है। मेला समिति से जुड़े भागवत उइके शैतान सिह उइके कहते है कि यह पवित्र स्थान है लोगो की मन्नते पूरी होती है। और फिर लोग श्रद्धा के साथ यहां बलि भेट करते है। आदिवासी समाज के लोग सुल्या बाबा को देवता के रूप में पूजते है वही कुलदेवी के रूप में मा काली कंकाली जो सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान है उसकी पूजा करते है। यहां तीन दिनों तक अखंड ज्योत जलती है। ओर चोटी से नीचे ही सुल्या बाबा का स्थान है। इस पहाड़ी के नीचे एक कुंड है जिस में वर्ष के 12 महीने पानी भरा रहता है। जिसे सीमेंट कांक्रीट का बना दिया गया है।
प्रतिवर्ष इस मेले के आयोजन में लगभग 2 लाख का खर्च क्षेत्र के लोग जनसहयोग से करते है।
ग्राम पंचायत द्वारा पानी के टैंकर उपलब्ध करवाए जाते है। इसके अलावा प्रशासन की ओर से कोई मदद नही मिलती। मेला समिति के लोगो का कहना है कि प्रशासन यहां पर बिजली आवागमन के लिये रास्ता व पानी की व्यवस्था कर दे तो श्रद्धालुओं को परेशानी नही होगी। उन्होंने मकड़ाई समाचार के माध्यम से प्रशासन से मांग की है कि जिला प्रशासन इस देव स्थान का कायाकल्प करे।
विधायक सांसद मंत्री सब आदिवासी फिर भी इस सतपुड़ा के सरताज कहे जाने वाले स्थान का उद्धार नही
ग्राम सावरी से तीन किलोमीटर दूर दो पहाड़ो से जोखिम भरे रास्ते से पैदल इस स्थान पर जाना पड़ता है। मेला समिति द्वारा वैकल्पिक रास्ता बनाया जाता है। जिसे एक पहाड़ी तक ट्रेक्टर व मोटरसाईकल चली जाती है। लेकिन जो दूसरी पहाड़ी है। उस पर चढ़ना मौत के कुए में गाड़ी चलाने से कम नही इस पहाड़ी पर चढ़ने के लिये 3 रास्ते है। वह बहुत ही खतरनाक है। चोटी के तीनों ओर हजारो फुट गहरी खाई है। पगडंडियों के रास्तो से पेड़ो को पकड़कर उपर चढ़ना पड़ता है। ऊपर मा काली कंकाली का स्थान और नीचे सुल्या बाबा का स्थान है जहाँ लोगो की हर एक मुराद पूरी होती है। सबसे ऊपर चढ़ने के बाद अपने आप आपकी थकान गायब हो जाती है। और इस चोटी से आपको चारो ओर बहुत ही सुंदर दृश्य दिखाई देगा। यहां पर एक दिव्य सुरंग है जिसमे आज भी लोग सिक्के व अनाज डालते है। जिसके बारे में लोगो की अलग अलग किवदंतिया है। आदिवासी लोग कहते है वर्षो पहले सुल्या बाबा गरीब लोगों की मदद करता था उनको अनाज वर्तन व ओर भी समान देता था। उसके बाद यह लोग अपनी फसल कटने बेचने के बाद उस भंडार ग्रह में वापस लाकर जमा कर देते है। कुछ लोगो का ऐसा मानना है कि यहाँ पर सुख सम्रद्धि के लिये लोग वहां पर भेट चढ़ाते है।
