10 अक्तूबर से नवरात्र शुरू हो रहे हैं, नवदुर्गा की आराधना का ये पर्व बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए घट स्थापना से पहले जानें ये जरूरी जानकारी।
प्रात:काल स्नान करें, लाल परिधान धारण करें। घर के स्वच्छ स्थान पर मिट्टी से वेदी बनाएं। वेदी में जौ और गेहूं दोनों बीज दें। एक मिट्टी या किसी धातु के कलश पर रोली से स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं। कलश पर मौली लपेटें। फर्श पर अष्टदल कमल बनाएं। उस पर कलश स्थापित करें। कलश में गंगा जल, चंदन, दूर्वा, पंचामृत, सुपारी, साबुत हल्दी, कुशा, रोली, तिल, चांदी डालें। कलश के मुंह पर 5 या 7 आम के पत्ते रखें। उस पर चावल या जौ से भरा कोई पात्र रख दें। एक पानी वाले नारियल पर लाल चुनरी या वस्त्र बांध कर लकड़ी की चौकी या मिट्टी की वेदी पर स्थापित कर दें। बहुत आवश्यक है नारियल को ठीक दिशा में रखना। इसका मुख सदा अपनी ओर अर्थात साधक की ओर होना चाहिए। नारियल का मुख उसे कहते हैं जिस तरफ वह टहनी से जुड़ा होता है। पूजा करते समय आप अपना मुंह सूर्योदय की ओर रखें। इसके बाद गणेश जी का पूजन करें। वेदी पर लाल या पीला कपड़ा बिछा कर देवी की प्रतिमा या चित्र रखें। आसन पर बैठ कर तीन बार आचमन करें। हाथ में चावल व पुष्प लेकर माता का ध्यान करें और मूर्ति या चित्र पर समर्पित करें। इसके अलावा दूध, शक्कर, पंचामृत, वस्त्र, माला, नैवेद्य, पान का पत्ता आदि चढ़ाएं। देवी की आरती करके प्रसाद बांटें और फलाहार करें।
यह सारी पूजन विधि करते समय नवार्ण मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। नवार्ण मंत्र- “ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।”
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-
शुभ मुहूर्त- शाम 04:29-05:53 तक।
दूसरा शुभ मुहूर्त- दोपहर 03:02 से शाम 04:29 तक।
अभिजीत मुहूर्त- 11:58 से 12:08 तक।
ध्यान रखें- कलश के ऊपर कभी भी दीपक नहीं जलाना चाहिए। कलश की स्थापना उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए और दीपक को दक्षिण-पूर्व कोने में लगाना चाहिए।
अखंड ज्योति एवं पाठ
यदि संभव हो और सामर्थ्य भी हो तो देसी घी का अखंड दीपक जलाएं। इसके आसपास एक चिमनी रख दें ताकि बुझ न पाए। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। माता की आराधना के समय यदि आपको कोई भी मंत्र नहीं आता हो तो आप केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र ‘ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ से सभी पूजा कर सकते हैं।
यही मंत्र पढ़ते हुए सामग्री चढ़ाएं। मातृ शक्ति का यह अमोघ मंत्र है। जो भी यथासंभव सामग्री हो आप उसकी चिंता न करें, कुछ भी सुलभ न हो तो केवल हल्दी, अक्षत और पुष्प से ही माता की आराधना करें। संभव हो तो शृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरूर चढ़ाएं।
