बिलासपुर। हाईकोर्ट ने नाबालिग बच्चे गायब न हो इसके लिए सरकार द्वारा एक वर्ष बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाने पर नाराजगी जताई है। साथ ही उसे कारगर नीति बनाकर आठ सप्ताह में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।
प्रदेश से 355 नाबालिग बच्चों के गायब होने को लेकर प्रकाशित खबर को हाईकोर्ट ने संज्ञान में लिया है और जनहित याचिका के रूप में सुनवाई कर रहा है। इस मामले में पुलिस-प्रशासन को गायब नाबालिग बच्चों की तलाश के लिए क्या किया जा रहा है इस पर जवाब-तलब किया गया।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान मामले में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को शामिल करते हुए पूछा था कि बच्चे किन कारणों से घर से भागते हैं, इसे कैसे रोका जा सकता है। राज्य विधिक सेवा से सुझाव मिलने के बाद हाईकोर्ट ने 11 अक्टूबर 2017 को राज्य शासन को बच्चे मिसिंग ही न हो इस संबंध में नीति बनाकर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था।
मामले को सुनवाई के लिए सोमवार को चीफ जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी व जस्टिस पीपी साहू की डीबी में रखा गया। सुनवाई के दौरान शासन की ओर से जवाब पेश करने के लिए समय दिए जाने की मांग की गई। इस पर हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई। कहा कि बार-बार अवसर दिए जाने के बावजूद सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। लगता है कि सरकार इस दिशा में काम करना नहीं चाह रही है।
प्राधिकरण का सुझावः संवेदना केंद्र बने, शिक्षकों व समाज सेवियों को जोड़ें
मामले में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने नाबालिग बच्चों के गायब होने या उनके घर से भाग जाने को रोकने के लिए सुझाव दिए हैं। इसके तहत इस कार्य में पुलिस के अलावा सामाजिक संगठन समाज सेवी, स्कूल, कॉलेज के शिक्षक समेत अन्य लोगों को जोड़ने, शिक्षण संस्थानों में जागरूकता लाने के लिए अभियान चलाने और नाबालिगों को समझाने, सार्वजनिक क्षेत्रों में संवेदना केंद्र स्थापित करने समेत अन्य बिंदुओं पर राय दी है। इन सुझावों के आधार पर सरकार को नीति बनानी है।


