भारतीय वायुसेना को नए लड़ाकू विमानों के लिए अभी और लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक भारत में बनने वाले लड़ाकू एयरक्राफ्ट की चयन प्रक्रिया में इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव के कारण देरी हो सकती है। मिग विमानों के बदले सेना को लड़ाकू एयरक्राफ्ट चुनावों से पहले मिलना मुमकिन नहीं है। 2016 में जब 36 राफेल विमान खरीदने का सौदा हुआ था तब नई रणनीतिक समझौता नीति के तहत यह भी फैसला लिया गया था कि वायुसेना के लिए 110 नए लड़ाकू भी बनाए जाएंगे। वहीं लड़ाकू विमानों के निर्माण में देरी का दूसरा कारण राफेल पर उठे विवाद को भी माना जा रहा है।
वहीं इन विमानों के निर्माण के लिए सात कंपनियों ने संपर्क किया है। इन विमानों को वायु सेना की पूरी तकनीक को ध्यान में रख कर तैयार करवाना चाहती है। वायु सेना यह जांच कर रही है कि सौदे में कितने स्वदेशी निर्माण का प्रावधान रखा जाए उसके बाद उन सात कंपनियों के भेजे गए जवाब पर गौर किया जाएगा। दरअसल वायुसेना चाहती है कि भारत में बनने वाले इन लड़ाकू विमानों में स्थानीय हिस्सा 45 फीसदी से कम नहीं होना चाहिए।
हालांकि आम चुनाव के बाद ही अब नई सरकार इन कंपनियों के साथ संपर्क करेगी और फिर आगे की स्पर्धा शुरू होगी। आने वाले महीनों में मिग विमान रिटायर होने जा रहे हैं, ऐसे में 36 राफेल विमान वायु सेना के लिए पर्याप्त नहीं होंगे जिसके चलते लड़ाकू विमानों की मांग की जा रही है। मिग विमान के रिटायर होने पर इस साल मार्च तक वायु सेना के पास सिर्फ 29 स्क्वाड्रंस रह जाएंगे।
इन कंपनियों ने विमानों के निर्माण में दिखाई दिलचस्पी
जिन सात कंपनियों ने लड़ाकू विमान बनाने में भारत को पेशकश दी है वो ये हैं- अमेरिका की बोइंग F/A 18 और लॉकहीड मार्टिन F 16
स्वीडन की SAAB
रूस की मिग 35 औ सू 35
ब्रिटेन/इटली/जर्मनी की यूरोफाइटर टायफून
बोइंग ने महिंद्रा और एचएएल
लॉकहीड ने टाटा
SAAB ने अडानी डिफेंस को भारतीय पार्टनर चुना है।