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Harda news: नाग पंचमी पर बाबा भीलटदेव मंदिर में भक्तों के दर्शनार्थ स्वयं नागराज उपस्थित हुए, जानिए भीलटदेव का जन्म स्थान रोलगाँव और प्राचीन मंदिर के बारे में।

हरदा। आज नागपंचमी के दिन रोलगांव स्थित भीलटदेव मंदिर में भक्तों के दर्शनार्थ स्वयं नागराज उपस्थित हुए । इस दौरान भक्तों द्वारा मंदिर में भीलटदेव जी की महिमा का गान गाया जा रहा था। आज नागपंचमी के दिन ग्राम रोलगांव के प्रमोद गंगाविशन जी पटेल द्वारा भीलटदेव की कथा महात्म्य पर लिखित आलेख मकड़ाई एक्सप्रेस में सादर प्रस्तुत कर रहे हैं। हम इस अवसर पर भगवान भोले शंकर – मां गौरा से सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याणार्थ प्रार्थना करते हैं।

भीलट नगरी-गांव रोलगांव मध्यप्रदेश के हृदय नगर हरदा जिले से 21 किलोमीटर दूर मसनगांव सिराली मार्ग पर स्थित ग्राम रोलगांव एक पुरातात्विक और धार्मिक स्थल है,।

जहां पर लगभग 850 वर्ष पूर्व एक अवतारी पुरूष का प्राकट्य हुआ था, जो कालांतर में देव भीलट के नाम से प्रसिद्ध हुए । भीलटदेव की जन्मभूमि के रूप में गांव की एक विशिष्ट ऐतिहासिक पहचान है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ के अनन्य भक्त बाबा रेलन और ममतामयी माता मेदा निःसंतान थे। परम शिव भक्त दम्पति की कठोर साधना और तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान स्वरुप एक सुंदर तेजस्वी बालक का जन्म हुआ । प्रचलित कथा के अनुसार कैलाश निवासी आराध्य देव शिव पार्वती ने ही बाबा रेलन और माता मेदा से यह वचन लिया था कि वे स्वयं तुम्हारे घर प्रतिदिन दूध-दही माँगने आएंगे और इस वचन को हमेशा याद रखना, लेकिन असीम लाड़-प्यार और दैनिक व्यस्तता के चलते दम्पति अपना दिया हुआ वचन भूल गए। इसी वजह से भगवान शिव ने अपने गले से नाग उतार कर पालने में रखा और बालक को अपने साथ चौरागढ़ पचमढ़ी ले गए ।
पालने में नाग को देखकर मेदा मैया और बाबा रेलन
बेसुध हो गए और उन्होंने फिर से शिव जी की सहृदय
आराधना-तपस्या की। तब भगवान उन्हें अपने द्वारा
दिए गए वचन की याद दिलाई कि तुमने हमें अलग
भेष में पहचाना नहीं इसलिए हम ही बालक को लेकर

गए हैं और अब हम ही बालक की शिक्षा-दीक्षा पूरी
करेंगे और पालने में हमने जो नाग छोड़ा है अब इसकी
पूजा भी भीलटदेव और नागदेवता के रूप में की जाएगी। तभी से देव भीलट शिव गण के रूप में

विख्यात हुए और देव भीलट की चमत्कारिक कथा
और यशो कीर्ति जनमानस में फैली। शिव पार्वती की
देखरेख और मार्गदर्शन में ही बालक भीलट ने तंत्र-मंत्र
और जादू-टोना एवं मायावी विद्या से परे दैवीय दीक्षा

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ग्रहण की और दैवीय कृपा भी प्राप्त की। शिक्षा-दीक्षा
के उपरांत एक बार किशोरावस्था में शिव पार्वती के आदेश पर ही देव भीलट और भगवान भैरुनाथ बंगाल के प्रचलित समाजविरोधी तांत्रिक विद्या जैसी बुराइयों
से मुक्ति दिलाने के लिए बंगाल गए जहाँ पर उस समय तांत्रिक विद्या का कुप्रचलन अधिक था। दोनों को बंगाल की सीमा पर ही रोक दिया गया फिर भीलट देव ने मायावी भेष में भैरुनाथ की बंगाल की सीमा चौकी ने प्रवेश कराया, लेकिन गंगा तेलन एवं कई तांत्रिकों ने भगवान भेरूनाथ को बन्दी बना लिया। लम्बे इंतजार के बाद भी जब भैरुनाथ वापस नहीं लौटे तो भीलटदेव स्वयं बंगाल की सीमा चौकी को पार कर अंदर गए और अपनी चमत्कारी महिमा से कई कुख्यात तांत्रिकों को परास्त कर उनका संहार किया और भैरुनाथ को सुरक्षित, सकुशल वापस ले आए। तब बंगाल के तत्कालीन राजा गन्धी ने भी उनकी चमत्कारिक एवं दैवीय महिमा का लोहा माना और अपनी सुपुत्री राजल का विवाह भी भीलटदेव से कर दिया।

नागलवाड़ी खरगोन
समाजविरोधी तांत्रिक विद्या पर बंगाल विजय और विवाह करने के बाद भीलटदेव शिव पार्वती के समक्ष उपस्थित हुए । शिव पार्वती ने ही उन्हें आशीर्वाद स्वरूप मध्यप्रदेश के वर्तमान बड़वानी जिले की राजपुर तहसील के सतपुड़ा की मनोहारी पहाड़ी शिखरधाम नांगलवाड़ी पर राज करने का शुभाशीष दिया एवं तब से ही भीलटदेव निमाड़ के राजा कहलाये

भीलटदेव का प्राकट्य भी अवतारी पुरूष सिंगाजी महाराज की तरह ही गवली परिवार में हुआ था।

पूर्व में गाय पालन और चरवाहा के रूप में पहचानी जाने वाली जाति के कारण ही पिता रेलन और माता
दोहन तथा दही-छाछ मंथन के लिए जिन पाषाण कुण्डों का उपयोग होता था, वे पाषाण कुण्ड आज भी जन्मस्थली रोलगांव में माचक नदी के किनारे पुरातन स्थापित मेदा मैया मंदिर में आज भी चिरस्थायी निशानी के रूप में मौजूद हैं ।

और यही इस गौरवमयी, चमत्कारिक गाथा के साक्षात प्रमाण है तथा पुरातन दैवीय धरोहर भी । रोलगांव, नांगलवाड़ी, पचमढ़ी, होशंगाबाद, रूजनखेड़ी, खरदना, सिवनी-बानापुरा, संगम भदभदा, देवझिरी पोलायकलां, सनावद इत्यादि कई स्थानों पर बाबा के देवालय स्थापित हैं और धार्मिक आस्था का केंद्र भी । बाबा देव भीलट भी आस्थावादी श्रद्धालु भक्तजनों की मन की मुरादें पूरी करते हैं। चाहे माचक नदी की तीनों बाढ़ हो, या कोई और कुदरती विकट

महामारी । सदैव ही देव भीलट ने ढाल बनकर संभाला है। हर एक प्राकृतिक विषम दुश्वारी से । या हो कोई दावानल या हो कोई शोला-चिंगारी । देव भीलट ही हैं सबके सम्बल और सबके तारणहारी । सबके दाता, सबके पालनहारी ।।

आलेख:- प्रमोद गंगाविशन जी पटेल रोलगांव.