यूपी पुलिस के हाथों मारे गए विवेक तिवारी की विधवा पत्नी में ‘वीरांगना’ तलाश रहे लोगों को निराशा हाथ लगी है। ऐसे लोग लगातार सोशल मीडिया पर कल्पना तिवारी की लानत -मलामत कर रहे हैं। कोई उन्हें पति की लाश के साथ सौदा करने वाला घोषित कर दे रहा है तो कोई पति की मौत की कीमत वसूलने वाली महिला बता रहा है। कोई लिख रहा है कि अब उसे पैसे मिल गए हैं तो दूसरा पति भी मिल जाएगा।
कोई लिख रहा है कि ये महिला तो बहुत चालू निकली, चिता की राख ठंढ़ी होने से पहले चालीस लाख लपेट लिया। सीएम योगी से कल्पना और उनके बच्चों की मुलाकात और मुआवजे से संतुष्टि जताने के उनके बयान के बाद से कल्पना के बारे में न जाने क्या -क्या कहा और लिखा जा रहा है। कल्पना तिवारी के खिलाफ निहायत ही ‘अश्लील टिप्पणियां’ करने वाले वो लोग हैं, जो योगी राज के खिलाफ नफरतों से भरे हैं। कल्पना तिवारी के समझौतावादी रवैये से योगी के खिलाफ उनकी ‘लड़ाई’ को एंटी क्लाइमेक्स पर ले जाकर खत्म कर दिया है। योगी राज के खिलाफ आक्रोश के गु्ब्बारे में कल्पना तिवारी ने हल्की सी सुई चुभो दी है। भाई लोगों का गुस्सा इसी बात पर है …ये गुस्सा उसके खिलाफ अश्लील टिप्पणियों की शक्ल में बजबजाकर सामने आ रहा है।
अब सवाल उठता है कि क्या कल्पना तिवारी ने योगी सरकार से मुआवजा, घर या नौकरी का भरोसा लेकर गलत किया है? या फिर सरकार में भरोसा जताकर गलत किया है ? कल्पना तिवारी को पति की मौत की सौदेबाज घोषित करने वाले लोग यही मानते हैं। मैं इस मामले को अलग चश्मे से देखता हूं। कोई शक नहीं कि यूपी के बेलगाम पुलिस वाले ने विवेक तिवारी की हत्या की है और उसके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलना चाहिए। कोई शक नहीं कि योगी राज में पुलिस वालों को एनकाउंटर की छूट का ही नतीजा है कि कोई पिस्तौलधारी पुलिस वाला यूं ही किसी पर गोली चला देता है और पूरा महकमा उसे बचाने में जुट जाता है। कोई शक नहीं कि कातिल पुलिस वाले की पीठ पर योगी राज के पुलिस तंत्र का हाथ था और है , तभी तो वो थाने में बैठकर , खड़े होकर और लेट कर कैमरे के सामने उल्टे -पुल्टे बयान देता रहा।

अपने बचाने के किस्से गढ़ता रहा। कोई शक नहीं कि यूपी पुलिस की इस हिमाकत के लिए योगी सरकार बहुत हद तक जिम्मेदार है। जब सूबे से मुखिया ही अपनी सार्वजनिक सभाओं में ठोक दो जैसी भाषा बोलेंगे तो ऐसे ठुल्ले ठोकने से कहां चूकेंगे।ये तो हुई एक बात, अब आते हैं कल्पना तिवारी के बयान, समझौते और मुआवजे पर।
विवेक तिवारी की हत्या के बाद कल्पना तिवारी क्या करती ? विवेक तिवारी की हत्या के बाद जब कल्पना तिवारी की तरफ से अपनी पति की मौत के बदले एक करोड़ की मुआवजा और सरकारी नौकरी की मांग की खबर आई तो मेरे एक बेहद करीबी और संवेदनशील मित्र ने कहा- अरे यार, ये महिला अभी कैसे ये सब बात कर सकती है ? अभी तो मातम का वक्त है , कैसे एक करोड़ मुआवजे के लिए चिट्ठी लिख सकती है ? ऐसी ही प्रतिक्रिया और भी बहुत सारे लोगों की रही होगी . मैंने तब भी कहा कि वो सही कर रही है क्योंकि वो पति की मौत के सदमे के बीच भी अब एक मां की तरह सोच रही है . अपने गम में भी अपने भविष्य की चिंताओं से भरी हुई होगी तो क्यों नहीं मुआवजे की बात करे।
ये तो उसकी समझदारी है कि उसे इस बात का अहसास है कि जो भी बात होगी, अभी ही दो -चार या छह दिन होगी, उसके बाद उसे कोई पूछने भी नहीं आएगा। तो क्यों न करे मुआवजे की बात? उसे योगी सरकार के खिलाफ किसी ‘युद्ध’ में वीरांगना नहीं बनना है। आप उसमें वीरांगना देखने लगे तो उसका क्या कसूर ? पहले ही दिन की उसकी बातों से भी साफ है कि वैचारिक तौर पर पूरा परिवार बीजेपी के साथ रहा है। तत्कालिक गुस्सा और मातम पति की मौत का है लेकिन पुलिस वाले के हाथों पति की मौत को एजेंडा बनाकर क्रांति करने का उसका कोई मकसद नहीं है तो नहीं है। आप उसे मजबूर थोड़े ही कर सकते हैं। छोड़ो सब और लड़ो हमारे साथ आकर। सोशल मीडिया पर मोर्चा खोलो सरकार के खिलाफ। उसने तय किया होगा कि उसे अपने और अपनी बेटियों के सुरक्षित भविष्य के लिए क्या चाहिए।
लाखों की नौकरी करने वाला उसका पति पुलिस की गोलियों का शिकार होकर दुनिया से चला गया . दो बेटियों की जिम्मेदारी उसके कंधे पर है। मामला ताजा-ताजा है, सो दर्जनों कैमरे कल्पना तिवारी के आस -पास हैं। सोशल मीडिया पर विवेक तिवारी की हत्या के बाद उठा गुबार और गुस्सा है। सिस्टम पर चोट करने वाला उसका हर बयान मीडिया के लिए खबर है और बीजेपी विरोधी नेताओं के लिए हमले का औजार। बीजेपी के नेता -मंत्री बैकफुट पर हैं, लेकिन कब तक ? दो दिन , तीन दिन , चार दिन या चार हफ्ते ? उसके बाद सब अपने अपने काम में लग जाते और अपने घर में अपनी उजड़ी दुनिया के साथ रह जाती कल्पना तिवारी और उनकी दो बेटियां। दो बेटियां, जिसकी पढ़ाई-लिखाई से लेकर घर चलाने की जिम्मेदारी कल्पना तिवारी पर है . आज उनके पास मातम के ऐसे माहौल मे कुछ रिश्तेदार भी होंगे। दोस्त भी होंगे, शुभचिंतक भी होंगे।
ये सब कुछ दिनों की बात है। लंबे वक्त तक कोई साथ नहीं रहता, साथ नहीं देता। घर चलाने की जिम्मेदारी कोई दूसरा नहीं उठाता है। सब अपनी अपनी दुनिया में मस्त हो जाते हैं, अकेला संघर्ष वही करता है , जो भुक्तभोगी होता है। हम और आप जैसे दो-चार सौ लोग दो -चार दिन फेसबुक पर पोस्ट लिखेंगे, सिस्टम का मर्सिया लिखेंगे, योगी राज में कायदे-कानून की मौत पर कुछ शहरों में मौन या मोमबत्ती जुलूस निकालेंगे। राहुल गांधी, मायावती तेजस्वी, अखिलेश यादव से लेकर केजरीवाल तक अपने -अपने तरीके से कल्पना तिवारी और उनके बच्चों के कंधे पर सियासी बंदूक रखकर योगी पर निशाना साधेंगे, कोई योगी राज में ब्राह्मणों के बुरे दिन पर राजनीति करेगा तो कोई सर्वणों के माथे पर पुलिस की गोलियों पर। नेताओं का मजमा तो लगने ही लगा था उसके घर। सब अपने-अपने फायदे के लिए विवेक की मौत और कल्पना की बेचारगी को हथियार बनाकर अपनी सियासत के झंडे को भावनाओं की फुनगी पर फहराने में जुटे रहते। कुछ दिन बाद सब खत्म।
कोई दूसरा मुद्दा सामने तो सब अपने तोप-तमंचे लेकर अपना रुख उधर कर लेंगे। अकेले रह जाएगी तो कल्पना और उनकी बेटियां। यही सच्चाई है। कल्पना तिवारी ने अपनी पति की मौत के बाद इस सच्चाई को समझ लिया। बाहर के शोर -शराबे और मातम में भी उनके भीतर भविष्य की चिंता हिलोरें मार रही होगी। दो बेटियों के साथ अपना पूरा जीवन गुजराने की जो चिंता कल्पना तिवारी के भीतर उगी होगी, उसका न तो आप अंदाजा लगा सकते हैं, न कोई निदान बता सकते हैं। उनकी जगह रह कर देखिए। कल्पना ने अपनी चिंता को चुना और चौतरफा दबाव के बीच सरकार से जो कुछ मिला, उसे कबूल किया तो क्या गलत किया ? कल्पना तिवारी अपने बच्चों के साथ सीएम से मिली और मुआवजे और नौकरी के भरोसे के बाद उसने सरकार में भरोसा जताने वाला बयान भी दिया है। बातों से साफ जाहिर है कि ये परिवार पहले भी बीजेपी का ही समर्थक रहा है तो फिर वो क्या कहे, इसका अधिकार तो उसके पास होना चाहिए। न कि आप जो चाहें , वो कहे तो आप उसे सही मानें, वरना गालियां दें। भाई मेरे . आप लड़िए योगी -मोदी से, लड़िए सिस्टम से, लड़िए कि कातिल पुलिस वाले बचने न पाएं। लड़िए कि ऐसे एनकाउंटर के खिलाफ मोर्चेबंदी हो लेकिन कल्पना तिवारी को गालियां देकर जलील तो मत कीजिए। हां, कल्पना तिवारी अगर कातिल पुलिस वालों के खिलाफ अपने तेवर ढीले करती हैं या फिर ऐसे संकेत देती हैं तो आलोचना होनी चाहिए।

