दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में लम्बित कैबिनेट फेरबदल की अटकलें जोरों पर हैं। अगले आम चुनावों से पहले मोदी मंत्रिमंडल का यह अंतिम फेरबदल हो सकता है। मोदी-अमित शाह टीम का सबसे ज्यादा ध्यान उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटों पर कब्जा बनाए रखने पर है। इसके साथ ही उत्तर पूर्व की सभी 25 सीटों, पश्चिम बंगाल की आधी सीटों, आंध्र प्रदेश में घुसपैठ करने पर भी जोर दिया जा सकता है। कैबिनेट में इस योजना के अनुसार ही प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है। उत्तर प्रदेश से भाजपा के केवल 3 कैबिनेट मंत्री हैं-राजनाथ सिंह, मेनका गांधी और मुख्तार अब्बास नकवी।
उत्तर पूर्व में राज्यमंत्री किरण रिजिजू के अलावा और कोई मंत्री नहीं। खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद असम से मंत्रिमंडल में कोई प्रतिनिधि नहीं। महाराष्ट्र में सबसे अधिक 9 मंत्री हैं। बिहार में सहयोगी दल परेशान है। कैबिनेट में कम से कम 5 ऐसे मंत्री हैं जिनके पास एक से अधिक विभाग हैं जबकि अन्य के पास कोई काम नहीं। शिवसेना इस बात को लेकर इंतजार में है कि उसके साथ न्याय किया जाए। जनता दल (यू) भी कैबिनेट में अपने प्रतिनिधित्व के इंतजार में है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि वह भाजपा के साथ गठबंधन में बनी रहेगी। कैबिनेट और एन.डी.ए. से तेदेपा के बाहर हो जाने के बाद भाजपा नेतृत्व आंध्र प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।
बिहार में भी कुछ जाति गठजोड़ को ध्यान में रखा जा रहा है और इस संबंध में कुछ बदलाव की जरूरत है। मोदी का दलित वोट बैंक पर भी ध्यान है। उन्होंने रामनाथ कोविंद, बेबी रानी मौर्य और सत्यदेव नारायण आर्य को क्रमश: राष्ट्रपति और उपराज्यपाल बनाया है ताकि इस समुदाय के साथ संबंध पर ध्यान दिया जाए। उत्तर प्रदेश में एक दलित नेता की तलाश पर मोदी का ध्यान है। रामविलास (लोजपा) बिहार और थावर चंद गहलोत (मध्य प्रदेश) केवल 2 ऐसे नेता हैं। यू.पी. से कोई दलित नेता नहीं। मायावती का मुकाबला करने के लिए मोदी भाजपा के भीतर से ही किसी दलित नेता की तलाश में हैं।
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चौधरी मोहन गुर्जर, मध्यप्रदेश के ह्र्दयस्थल हरदा के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार है, आप सतत 15 वर्षो से पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी सेवायें देते आ रहे है, आपकी निष्पक्ष और निडर लेखनी को कई अवसरों पर सराहा गया है