मेरठ. कुणाल की उम्र नौ साल है और वो मेरठ जिले के लावड कस्बे में रहते हैं। उनके दादा छेद्दा सिंह एक किसान हैं और बीते कई साल से गेंदे के फूल की खेती कर रहे हैं। इस साल जब लॉकडाउन के चलते छेद्दा सिंह की फूलों की सारी फसल बर्बाद होने लगी तो कुणाल ने अपने दादा की मदद के लिए एक बेहद मासूम प्रयास किया। कुणाल ने एक बर्बाद होते फूलों का एक वीडियो बनाया और टिकटॉक पर इसे साझा करते हुए कहा, ‘देखिए भाइयों देखिए। किसानों को खेत से बाहर कैसे फेंकना पड़ रहा है गेंदा। किसानों का कोरोनावायरस की वजह से बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। इसीलिए इस वीडियो को लाइक और शेयर करके आगे बढ़ाएं।’ देश में सबसे अच्छा गेंदा मेरठ में होता है, उस इलाके से एक रिपोर्ट…
भरपूर मासूमियत और बेहद उत्साह के साथ कुणाल बताते हैं कि उनका ये वीडियो अब तक 125 लोगों ने देख लिया है। यह पूछने पर कि उन्होंने यह वीडियो क्यों बनाया, वे पूरे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं, ‘ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग जान सकें कि कोरोनावायरस के कारण किसानों को कितना नुकसान हो रहा है।’
जिस नुकसान का जिक्र कुणाल कर रहे हैं उसकी मार इन दिनों मेरठ की सरधना तहसील के सैकड़ों किसान झेल रहे हैं। यहां लावड कस्बे में सब्जियों और फूलों की अच्छी-खासी खेती होती है। सैकड़ों किसान अपने खेतों में गेंदे के फूल उगाते हैं जिनकी बिक्री उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों से लेकर दिल्ली तक होती है। इन दिनों लावड के खेत गेंदे के सुंदर फूलों से लहलहा रहे हैं, लेकिन इन्हें खरीदने वाला कोई नहीं है। लिहाजा किसान इन फूलों को फेंकने को मजबूर हो गए हैं और लाखों रुपए के कर्ज में डूब गए हैं।
छह बीघे के खेत में गेंदे के फूल उगाए थे। फूलों की पैदावार भी इस साल अच्छी हुई और हरपाल को उम्मीद थी कि उन्हें फूलों के अच्छे दाम मिल जाएंगे। लेकिन कोरोना के चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन ने उनकी तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
हरपाल बताते हैं, ‘मंडी सिर्फ दो घंटे के लिए खुल रही है। उसमें भी सिर्फ सब्जियां ही बिक पाती हैं। फूलों की बिक्री बिलकुल बंद है। एक दिन हम फूल लेकर मंडी गए भी थे लेकिन तभी पुलिस डंडे बजाने लगी। सारे फूल वहीं छोड़ कर किसी तरह खुद को बचाकर भागे।’ हरपाल अब अपने पूरे खेत से गेंदे को उखाड़ कर फेंक चुके हैं और नए सिरे से सब्जियां उगा रहे हैं। यही स्थिति इस इलाके के तमाम अन्य किसानों की भी हो गई है।
70 साल के छेद्दा सिंह उन लोगों में से हैं जिन्होंने लावड के इस इलाके में फूलों की खेती की शुरुआत की थी। वो बताते हैं कि 90 के दशक की शुरुआत में जब उन्होंने यहां फूल उगाने शुरू किए तो उन्हें अच्छा मुनाफा होने लगा। लेकिन उस वक्त स्थानीय मंडी में फूलों की ज्यादा मांग नहीं थी लिहाजा उन्हें फूल बेचने दिल्ली आना पड़ता था। तब उन्होंने इलाके के कई किसानों को फूलों के बीज मुफ्त बांटे और उन्हें भी इसकी खेती के लिए प्रेरित किया ताकि सब किसान मिलकर अपने फूल दिल्ली ले जाएं और ढुलाई का खर्चा कम आए।
छेद्दा सिंह की पहल से स्थानीय किसानों को अच्छी खासी बचत होने लगी तो देखते ही देखते इलाके के सैकड़ों किसानों ने गेंदे की खेती शुरू कर दी। छेद्दा सिंह कहते हैं, ‘गेंदे का फूल किस कीमत बिक जाए, कोई भरोसा नहीं। कभी ये पांच रुपए किलो बिकता है तो कभी पचास रुपए किलो तक भी बिक जाता है। लेकिन मोटा-मोटा औसत देखें तो मरे-से-मरा भी दस रुपए किलो तो हर साल बिकता ही है। इस रेट पर भी अगर इस साल माल बिकता तो मेरे 12 बीघे की फसल का कम-से-कम दो लाख रुपए तो तय था। किस्मत अच्छी रहती तो तीन-चार लाख तक भी मिल सकता था। लेकिन सब बर्बाद हो गया और एक पैसा भी नहीं आया।’


