देश में #मी टू जैसे मुद्दे कभी-कभार आंदोलन के रूप में सामने आते हैं लेकिन यौन छेड़छाड़ शिकायतों पर लोग उतना ध्यान नहीं देते हैं। हमारी सामाजिक परिस्थितियां भी ऐसी हैं कि लोग यौन छेड़छाड़ को लेकर औपचारिक रूप से शिकायत करने से बचते हैं।
कार्यस्थल पर यौन शोषण का मतलब क्या है
वर्ष 2016 में यौन प्रताडऩा से जुड़े कुल 34186 मामले पुलिस के पास जांच के लिए लंबित थे। इनमें से 75.9 फीसदी मामलों की जांच पूरी होने के बाद 67.3 फीसदी मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई। इनमें से कुल 7665 (22 फीसदी) मामलों की साल के अंदर सुनवाई पूरी हो सकी। न्यायालय द्वारा 2295 (6.6 फीसदी) मामलों में आरोपियों को दोषी ठहराया गया।

यौन शोषण समस्या की स्थिति
#मी टू अभियान शुरू होने के बाद से यौन शोषण के लगभग 100 मामलों का खुलासा अब तक हो चुका है। अमरीका में जहां पिछले साल नवम्बर में मी टू अभियान की शुरुआत हुई थी वहां अब तक 900 मामले सामने आ चुके हैं। इस संख्या को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि क्या वास्तव में समस्या उतनी व्यापक है जितनी कि इसकी चर्चा हो रही है। मी टू अभियान के बाद जितनी संख्या में यौन शोषण के मामलों का खुलासा हुआ है वह वास्तविक घटनाओं की तुलना में नाममात्र भी नहीं है। पुलिस को मिल रही शिकायतों के अनुसार हर कार्यस्थल पर हर घंटे में 3 शिकायतें मिलने का औसत है। सामाजिक परिस्थितियों के चलते तमाम मामले तो पुलिस तक आते ही नहीं हैं। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 81 फीसदी महिलाएं तथा 43 फीसदी पुरुष अपनी पूरी जिंदगी में कभी न कभी यौन शोषण के अनुभव से गुजरते हैं। अमरीकी संस्था नैशनल सैक्सुअल वायलैंस रिसोर्स सैंटर के अनुसार यौन छेड़छाड़ के 63 फीसदी मामलों की कभी पुलिस में शिकायत ही दर्ज नहीं हो पाती है।
फर्जी भी होती हैं शिकायतें
यौन छेड़छाड़ की दर्ज होने वाली सभी शिकायतें सही नहीं होती हैं। अमरीकी कम्युनिटी में किए गए सर्वे के अनुसार 2 से 20 फीसदी शिकायतों को जांच के बाद गलत पाया गया। जहां तक भारत का सवाल है, वर्ष 2016 में पुलिस ने 4 फीसदी मामलों को जांच के बाद गलत पाए जाने पर खत्म कर दिया था। इससे हम यह कह सकते हैं कि यौन छेड़छाड़ की हर 10 शिकायतों में से 9 शिकायतें सही होती हैं।
आंदोलन ने दी समाज को ताकत
- ‘मी टू’ आंदोलन में कई महिलाएं सामने आकर अपने ऊपर हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। उन बहादुर महिलाओं ने कानून का नहीं समाज का सहारा लिया है। यह एक ऐसा आंदोलन है, जिसमें समाज को विनियमन के लिए चुना गया है और सजा देने की प्रक्रिया में कानूनी संस्थानों को दूर रखा गया है।
- यह आंदोलन कानूनी संस्थानों से दूर रहकर भी समाज की न्याय दिलाने की क्षमता को दिखाता है।
- एक समय समाज व्यक्ति की गतिविधियों का विनियमन करता था, लेकिन धीरे-धीरे समाज की भूमिका कम हो गई, इस आंदोलन ने समाज की उसी भूमिका को स्थापित किया है।
- समाज इसके लिए धर्म और संस्कृति का भी सहारा लेता रहा है, जिसके आधार पर सही और गलत की परिभाषा गढ़ी जाती है। सामाजिक नियमों का पालन करने के लिए लोगों के ऊपर सामाजिक अंकुश लगाए जाते रहे हैं।
- प्राय: सामाजिक नियंत्रण का परिणाम मजबूत लोगों के पक्ष में रहा है और महिलाओं एवं पिछड़े समुदाय को दबाने की कोशिश की जाती रही है। महिलाओं के ऊपर कई प्रतिबंध लगाए जाते रहे लेकिन शहरीकरण और जागरूकता ने महिलाओं को भी अधिकार दिया और उसे मजबूत बनाया, जिसके कारण समाज में विनियमन का एक वैकल्पिक मॉडल विकसित हुआ है, जो ‘मी टू’ के रूप में देखने को मिल रहा है।
- इंटरनैट ने एक नए तरह का सामाजिक संगठन बनाया है, जिसके माध्यम से अपने ऊपर हो रहे अन्याय को लोगों से सांझा किया जाता है और अन्याय करने वालों को शॄमदा किया जाता है।