प्रधानमंत्री को कठोर, मजबूत और व्यर्थ की बातें न करने वाले व्यक्ति के रूप में समझा जाता है, जिन्होंने वरिष्ठ मंत्रियों पर अंकुश लगा रखा है और कई नौकरशाहों को बाहर का रास्ता दिखा चुके हैं मगर जब प्रत्यक्ष रूप से उनके तहत सबसे शक्तिशाली और निर्णायक विंग सी.बी.आई. के संकट से निपटने का मामला आया तो उन्होंने इससे किनारा कर लिया। सी.बी.आई. का संकट पिछले एक वर्ष से जारी है। सी.बी.आई. के निदेशक आलोक वर्मा और नम्बर दो के अधिकारी राकेश अस्थाना के बीच जंग उस समय निम्न स्तर पर पहुंच गई जब उन्होंने कुछ संयुक्त निदेशकों और अन्य अधिकारियों की पदोन्नति के मामले पर बुलाई गई केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सी.वी.सी.) की महत्वपूर्ण बैठक में खुलेआम लडऩा शुरू कर दिया।
वर्मा ने बैठक में अपने जूनियर की मौजूदगी पर प्रश्र उठाया जिससे टकराव बढ़ गया। प्रधानमंत्री मोदी के एक अन्य विश्वासपात्र ए.के. शर्मा (जो एक संयुक्त निदेशक हैं) भी राकेश अस्थाना के खिलाफ वर्मा के साथ जा मिले। अस्थाना के खिलाफ कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के वर्मा के साथ मिलने का एक कारण अस्थाना का व्यवहार है जो खुद को सी.बी.आई. का ‘पदेन प्रमुख’ (डिफैक्टो सी.बी.आई. चीफ) समझते रहे। वर्मा को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का आशीर्वाद प्राप्त है जबकि अस्थाना की मदद प्रधानमंत्री के उपप्रधान सचिव पी.के. मिश्रा करते रहे।
समस्या को हल करना कठिन हो गया क्योंकि प्रधानमंत्री दोनों अधिकारियों के बीच जंग में सुलह कराने के अनिच्छुक थे। वर्मा जानते थे कि 6 जनवरी 2019 को उनके सेवानिवृत्त होने के बाद नए निदेशक के रूप में अस्थाना उनके खून के प्यासे होंगे इसलिए वर्मा ने अस्थाना की कथित अनियमितताओं के सबूत जुटा कर उनकी पहले ही कब्र खोदने का फैसला किया मगर प्रधानमंत्री गम्भीर हो रही स्थिति को जानते थे। परंतु उन्होंने मिश्रा और डोभाल को संकट से निपटने की अनुमति दी जो अब सार्वजनिक रूप से सामने आ गई।


