नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ विधानसभा के होने वाले आगामी चुनावों में भाजपा की जमीन खिसकती नजर आ रही है। पिछले 15 सालों से छत्तीसगढ़ की राजनीति पर काबिज भाजपा को इस बार एस.टी. (अनुसूचित जनजाति) के असंतोष, किसानों के मुद्दों और सरकार विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या भाजपा इस बार छत्तीसगढ़ पर अपना कब्जा बरकरार रख पाएगी? रमन सिंह 15 सालों से छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्हें इस बार भी आशा है कि वह विजयी होंगे। गरीबी और विवादों से ग्रस्त इस राज्य में उन्होंने 3 बार चुनावों में जीतकर भाजपा की सरकार बनाई। राज्य में पार्टी का मजबूत गढ़ बनाया मगर अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा इस बार अपना आधार खो सकती है। राजनीति के माहिरों के अनुसार यह विधानसभा चुनाव भाजपा की लोकप्रियता का टैस्ट होंगे।
बनते-बिगड़ते चुनावी समीकरण
राज्य में नक्सलियों का दबदबा होने के बावजूद रमन सिंह की सरकार 2003 से सत्ता में बनी हुई है। तीनों चुनावों में औसतन 73 प्रतिशत मतदान हुआ तथा भाजपा और कांग्रेस में तीनों ही बार काफी कड़ा मुकाबला देखने को मिला। 2003 में भाजपा का वोट प्रतिशत कांग्रेस के मुकाबले 2.6 प्रतिशत अधिक था। बाद में यह अंतर कम हो गया।
2013 में यह वोट प्रतिशत 2003 के मुकाबले 0.75 रह गया। इस अल्पमतान्तर ने सीटों में महत्वपूर्ण बदलाव किया। 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा 49 सीटें जीतीं जोकि कांग्रेस से 10 अधिक थीं। भाजपा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में काफी कामयाबी रही।
2013 में भाजपा को प्रत्येक जीतने वाली सीट के लिए 1,09,495 वोटों की जरूरत थी, जोकि कांग्रेस के अंतर से 20 प्रतिशत कम रहीं। चुनावों में भाजपा का कुल सीटों पर वोट प्रतिशत 55 प्रतिशत के करीब रहा मगर सीटों में बदलाव आ गया। 2008 में भाजपा ने राज्य के दक्षिण उत्तर में एस.टी. आरक्षित सीटें ज्यादा जीती थीं। 2013 में भाजपा इन क्षेत्रों में कुछ सीटों पर हार गई लेकिन राज्य के सैंट्रल हिस्से में भाजपा को फायदा मिला। भाजपा को कबायली गढ़ों में सफलता मिली क्योंकि संघ परिवार ने जमीनी स्तर पर काम किया था। 2008 में यह वास्तव में छत्तीसगढ़ था जहां अनुसूचित जनजाति की 31 प्रतिशत आबादी थी और भाजपा को 39 में से 29 एस.टी. आरक्षित सीटों पर जीत हासिल हुई थी लेकिन 2013 में पार्टी को जहां पराजित होना पड़ा। पार्टी को एस.टी. हलकों में केवल 11 सीटें ही मिलीं। कांग्रेस के हाथों यह 8 सीटों पर हारी। 70 प्रतिशत से अधिक आबादी वाले 7 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा केवल 1 सीट जीत सकी, जबकि 2008 में इसे 7 में से 5 सीटें मिली थीं। लोकनीति-सी.एस.डी.सी. के चुनाव बाद के सर्वे अनुसार राज्य के अधिकांश अनुसूचित जनजाति मतदाताओं ने कांग्रेस और अन्य पार्टियों को वोट दिया। 2013 में भाजपा का वोट प्रतिशत अनुसूचित जनजाति मतदाताओं में 20 प्रतिशत कम रह गया, जबकि आधे से ज्यादा वोट ओ.बी.सी. थे।

असंतोष, सरकार विरोधी लहर का कारण
अनुसूचित जनजाति मतदाताओं के असंतोष का मुख्य कारण वन अधिकार एक्ट को धीमी गति से लागू किया जाना है। 2006 में केंद्र सरकार ने जंगल में रहने वाले लोगों को जमीन देने के लिए कानून बनाया था। उस समय छत्तीसगढ़ में 9 लाख के करीब वन अधिकार के दावे आए लेकिन इनमें से आधे दावेदारों को ही जमीन दी गई। यह आंकड़ा कबायली मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार है। अनुसूचित जनजाति मतदाता हाल ही में एस.सी./एस.टी. (अत्याचार निरोधक) एक्ट को लेकर पैदा हुए विवाद के चलते भी भाजपा के हाथों खिसक सकता है और भाजपा नेताओं ने यह मुद्दा भाजपा हाईकमान के पास भी रखा है। इसके अलावा किसानों में असंतोष है। छत्तीसगढ़ के किसानों को देश में सबसे कम कृषि आय होती है, जिससे इस वर्ग से संबंधित मतदाता इस बार वैकल्पिक चयन करने को मजबूर होंगे। सरकार विरोधी लहर भी जीतने की संभावनाओं को ग्रहण लगा सकती है। आगामी चुनावों में मतदाताओं के असंतोष को दूर करने के लिए भाजपा 16 निवर्तमान विधायकों को हटाकर नए चेहरे लाई है। भाजपा उम्मीदवारों की सूची अनुसार 29 भाजपा विधायक एक बार फिर चुनाव लड़ेंगे।
जीत के लिए कांग्रेस को भी करना पड़ेगा कड़ा संघर्ष
मध्य प्रदेश में ऐसी परिस्थितियां कांग्रेस की जीत के लिए अनुकूल हैं मगर जहां कांग्रेस को गुटबंदी का सामना करना पड़ रहा है। 2016 में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कांग्रेस को अलविदा कह कर अपनी नई पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बना ली है, तब से इस पार्टी ने बसपा के साथ गठबंधन कर रखा है। 2013 में बसपा को केवल 1 सीट और 5 प्रतिशत मत मिले थे। छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय नेता अजीत जोगी के साथ इसके गठबंधन से कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुक्सान उठाना पड़ सकता है। दोनों पार्टियों की छत्तीसगढ़ में जीत 2019 के आम चुनावों में सीटों की संख्या का गणित काफी स्पष्ट करेगी। पिछले 3 विधानसभा चुनावों में जीत प्राप्त करने के बाद आम चुनावों में भाजपा को 11 में से 10 सीटों पर विजय हासिल हुई थी।

