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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव: लड़ाई तगड़ी पर नजरें सबकी माया-जोगी गठजोड़ पर

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रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक कोने में स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का भव्य परिसर धान की विभिन्न किस्मों से महक रहा है। धान की सबसे बेहतरीन माने जाने वाली किस्मों में से एक ‘बादशाहपसंद वन’ की कटाई की जा रही है और कटाई के साथ ही उसकी महक दूर से ही महसूस की जा सकती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या धान की यह महक किसानों के दरवाजे से होते हुए ‘चाउर वाले बाबा’ यानी मुख्यमंत्री रमन सिंह तक पहुंचेगी और उन्हें चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलेगा। छत्तीसगढ़ को ‘मध्य भारत का धान का कटोरा’ कहा जाता है। इस प्रदेश की 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है और यहां के करीब 80 प्रतिशत किसान धान की खेती से जुड़े हैं। इसलिए धान उत्पादक किसानों के लिए चलाई गई योजनाओं का असर राजनीति पर होना लाजिमी है लेकिन कांग्रेस का आक्रामक अभियान यह साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है कि सरकार और बिचौलिए न तो किसानों का पूरा धान खरीद रहे हैं और न ही उन्हें बोनस दिया जा रहा है।

उधर रमन सिंह सरकार ने धान खरीद को आसान बनाने के साथ-साथ इसकी कीमत पर भी जोर दिया है। यहां धान की फसल के लिए एम.एस.पी. 2070 रुपए प्रति क्विंटल रखा गया है और साथ ही किसानों को 300 रुपए का बोनस भी दिया जाता है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफैसर एम.के. जोशी मानते हैं कि सरकार से लोग थोड़ा नाराज भी हैं और खुश भी। उनका मानना है कि बदलाव हुए हैं, विकास का काम हुआ है लेकिन रफ्तार उतनी तेज नहीं है। जहां तक 15 साल के शासन के जिस विरोध का मुद्दा और सत्ता विरोधी लहर का सवाल है तो उसकी बात खूब होती है। रायपुर से 50 किलोमीटर दूर धनतरी के एक किसान सरदार गुरदेव सिंह का कहना है कि सरकार ने काम तो ठीक किए हैं लेकिन मंत्रियों और विधायकों की कारगुजारियां ठीक नहीं।

चाउर वाले बाबा रमन सिंह से नाराजगी को लेकर वह कहते हैं कि मंत्रियों पर रमन सिंह का नियंत्रण जितना होना चाहिए वह दिखता नहीं। यूं वह यह भी कहते हैं कि सरकार की नोनी योजना, बच्चियों को किताबें, स्कूल बैग व साइकिल आदि देने की योजना से लेकर घर बनाने और सस्ते अनाज बांटने की योजनाओं का फायदा भाजपा को मिल सकता है। दावा करने को तो छत्तीसगढ़ में भाजपा के केंद्रीय मीडिया प्रभारी विजय शास्त्री सोनकर भी कहते हैं कि गरीबों को मकान बनाने की केंद्रीय योजना जितना लाभ छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य ने लिया है, उतना बड़े राज्य नहीं ले पाए। दावा किया जा रहा है कि 9 लाख से अधिक लोगों को इसका लाभ मिला है जबकि प्रतिपक्ष के नेता भूपेश बघेल का कहना है कि इस मामले में भी जितना दावा किया जा रहा है, सच्चाई से कोसों दूर है। लेकिन इस चुनाव में सबकी निगाह पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और मायावती के गठबंधन पर है।

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अजीत जोगी का अनुसूचित जाति में काफी दबदबा है और खासतौर पर सतनामियों में। सतनामी मूल रूप से कांग्रेसी रहे हैं। सब मानते हैं कि जोगी कांग्रेस को नुक्सान पहुंचाएंगे। यहां की 90 में से करीब 53 सीटों पर सतनामियों का प्रभाव है। एक प्रैस कॉन्फ्रैंस में यह विपक्ष के नेता भूपेश बघेल भी स्वीकार करते हैं। उनका भी मानना है कि मायावती के वोट बैंक का साथ मिलने के बाद अजीत जोगी थोड़ा और मजबूत हुए हैं। निष्पक्ष पर्यवेक्षक और पत्रकार मनोज साहू का आंकलन है कि यह गठबंधन चार-पांच सीटें निकालने की स्थिति में है लेकिन इनको मिलने वाला 7-8 प्रतिशत वोट भाजपा के वोट का अंतर बढ़ा सकता है। अंदरखाते यह भी चर्चा है कि भाजपा बड़े तौर पर संसाधनों को लेकर जोगी को समर्थन दे रही है। यूं तो अपनी स्थापना के समय से प्रदेश काफी बदल गया है। महज 5 लाख जनसंख्या वाले रायपुर में बड़े-बड़े पंचतारा होटलों के साथ-साथ सड़कों पर मर्सीडीज और ऑडी जैसी महंगी गाडिय़ां दिखाई देती हैं।

अमीर-गरीब की खाई काफी बड़ी है लेकिन सत्ता का सुख किसान और आदिवासियों के रास्ते से ही होकर गुजरता हैं और पक्ष-विपक्ष का ध्यान भी उन्हीं पर है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति कभी भी बहुत खराब नहीं रही है और इस बार उसका आक्रामक अभियान रमन सिंह सरकार को बेदखल करने में है। कांग्रेस ने विकास को मुद्दा बनाने की तुलना में रमन सिंह पर व्यक्तिगत हमला ज्यादा किया है। यह बात दूसरी है कि कांग्रेस की आंतरिक राजनीति से कई मुश्किलें सामने आ रही हैं। प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और चुनाव प्रभारी पी.एल. पुनिया के बीच सी.डी. प्रकरण चर्चा में है। यही नहीं पिछले दिनों कांग्रेस नेता राज बब्बर के नक्सल संबंधी बयान से कांग्रेस की किरकिरी हुई है। हालांकि राज बब्बर के बयान को कांग्रेस के बड़े नेताओं का समर्थन नहीं मिला लेकिन भाजपा ने इस बयान की हर मंच पर आलोचना की है और इसे आधार बनाया है। अभनपुर के एक स्कूल मास्टर निवयी साहू का कहना है कि रमन सिंह सरकार ने नक्सलियों से निपटने के लिए जो किया उस पर पानी फेरने की कोशिश हो रही है। नक्सलियों का खौफ झेल रहे लोगों को राज बब्बर के बयान ने बहुत निराश किया है।

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