रायपुर। स्कूल शिक्षा विभाग ने पहली बार प्रदेश की लगभग सभी जनजातीय बोलियों की मैपिंग कराई है। सर्वेक्षण के आधार पर प्रदेश में 42 जनजातियों की 42 तरह की बोलियां हैं। प्राइमरी स्तर पर बच्चों को उनकी बोलियों के आधार पर पढ़ाई करवाई जाएगी।
इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग और आदिम जाति विकास विभाग ने संयुक्त पहल की है। आदिम जाति विकास विभाग की मदद से राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) ने इस पर पठन-सामग्री बनाना शुरू कर दिया है। फिलहाल जनजातीय बोलियों के आधार पर संदर्भ ग्रंथ जुटाने की प्रक्रिया चल रही है।
कोई भी विद्वान चाहे तो जनजातियों की बोलियों से सम्बंधित ग्रंथ एससीईआरटी को दे सकते हैं। फिलहाल विशेष जनजातीय बोलियों पर फोकस किया जाएगा। 19 जिलों में अगले सत्र से ही किताबों में विभिन्न बोलियां मिलेंगी। पहली और दूसरी कक्षा की पुस्तकों में क्षेत्रीय बोलियों से पढ़ाई करवाई जाएगी।
इसलिए करेंगे प्रयोग
रिसर्चकर्ताओं का दावा है कि बच्चों को उनकी प्रारंभिक भाषा यानी मातृभाषा में पढ़ाई कराई जाए तो उनमें सीखने की क्षमता अधिक होती है। चूंकि प्रदेश के बच्चे बोलते तरह-तरह की बोलियां हैं और उन्हें पहली कक्षा में हिन्दी पढ़ना पड़ता है। ऐसे में उन्हें दिक्कत होती है।
एससीईआरटी ने दो साल पहले छत्तीसगढ़ में बोली जाने वाली कुछ प्रमुख बोलियों में छत्तीसगढ़ी समेत कुडुख, हल्बी, गोंडी, सरगुजिया आदि पर कुछ पठन सामग्री किताबों में डाली है, लेकिन यह नाकाफी है। प्रदेश में 42 तरह की जनजातीय बोलियां हैं। सभी इलाकों के बच्चों के लिए अब काम शुरू हो गया है।
कौन सी अन्य बोलियां
छत्तीसगढ़ में बोली जाने वाली बोलियों में छत्तीसगढ़ी रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में, बैगानी बैगा जाति के लोग यह बोली बोलते हैं। यह बोली कवर्धा और बिलासपुर में बोली जाती है। खल्टाही रायगढ़ के कुछ हिस्सों में, कोरबा में सदरी कोरबा जशपुर में रहने वाले कोरबा जाति के लोग जो बोली बोलते हैं, वह सदरी कोरबा है। बिंझवारी रायपुर व रायगढ़ के कुछ हिस्सों में, कलंगा यह ओडिशा के सीमावर्ती क्षेत्र में, भूलिया सोनपुर, बस्तरी या हलबी बस्तर में बोली जाती है।
इसलिए जरूरी
प्रदेश में कमार, अबूझमाड़िया, पहाड़ी कोरवा, बिरहारे और बैगा विशेष पिछड़ी जनजाति हैं। राज्य में जनजाति संस्कृति एवं भाषा अकादमी का गठन भी हो चुका है। प्रदेश में 42 जनजाति समूहों में उसकी उपजातियों को संविधान में अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है। जनजाति समुदाय की भाषा-बोली के संरक्षण के लिए भी यह पहल कारगर होगी।
प्रयोग के बाद अब वृहद स्तर पर
पहली और दूसरी कक्षाओं में कुछ प्रयोग के तौर पर जनजातीय क्षेत्रीय बोलियों पर पठन-पाठन सामग्री विकसित करके बच्चों को पढ़ाया गया है। अब सभी बोलियों के लिए संदर्भ और पठन-पाठन का कार्य एससीईआरटी के जिम्मे दिया गया है। अगले सत्र से कुछ जिलों में इन बोलियों पर पठन-पाठन सामग्री मिलेगी। किताबों में समावेशित किया जा रहा है। – गौरव द्विवेदी, सचिव, स्कूल शिक्षा


