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हाथ में जलता हुआ खप्पर और तलवार लेकर निकली मां अंबे

मकड़ाई समाचार खरगोन। भावसार क्षत्रिय समाज द्वारा पिछले 403 वर्ष से चली आ रही खप्पर की परंपरा अंतर्गत शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी को मां अंबे का खप्पर निकला। यहां मां अंबे एक हाथ में जलता हुआ खप्पर और दूसरे हाथ में तलवार लेकर निकली और भक्तों को दर्शन दिए। समाज के डा. मोहन भावसार ने बताया कि शारदीय नवरात्रि पर निकलने वाले खप्पर की परंपरा 403 वर्ष से चली आ रही है। इसी के अंतर्गत बुधवार को महाअष्टमी की मध्यरात्रि में माता अंबे का खप्पर निकला। कार्यक्रम की शुरुआत सर्वप्रथम झाड़ की विशेष पूजन-अर्चना के साथ हुई।

पूजा-अर्चन के बाद सबसे पहले गणेश का स्वांग रचकर कलाकार निकले। इसके बाद भूत-पिशाच का भी कलाकारों द्वारा स्वांग रचा गया। करीब 4.35 बजे मां अंबे की सवारी निकाली। इस दौरान कलाकारों द्वारा गाई जा रही भक्तिभाव से सराबोर गरबियों सरवर हिंडोलो गिरवर जैसी गरबियों पर करीब 50 मिनट मां अंबे रमती रहीं। कार्यक्रम को देखने के लिए भक्तगण परिसर में उपस्थित थे।

खप्पर की 403 वर्ष पुरानी है परंपरा

भावसार क्षत्रिय समाज द्वारा शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी एवं महानवमी में खप्पर निकालने की परंपरा करीब 403 वर्ष पुरानी है, जो अब भी जारी है। परंपरानुसार मां अंबे का स्वांग रचने वाले कलाकार एक ही पीढ़ी के होते है। शारदीय नवरात्रि की महाअष्टमी को निकले माता के खप्पर में मां अंबे का स्वांग मनोज भावसार एवं आयुष भावसार ने धारण किया। गणेश एवं मां अंबे का स्वांग रचने वाले सर्वप्रथम अधिष्ठाता भगवान सिध्दनाथ महादेव के दर्शन करने के बाद ही निकलते है।

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