गुरदासपुर: करोड़ों संगत की 7 दशक पुरानी मांग को पूरा करते हुए देश के उप-राष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू आज डेरा बाबा नानक के नजदीक भारत से गुरुद्वारा करतारपुर साहिब तक सीधे रास्ते का नींव पत्थर रखने के लिए डेरा बाबा नानक पहुंच गए हैं। यहां आर्मी कैंप में उनका स्वागत मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने किया। करातपुर पहुंचे उपराष्ट्रपति तथा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने ज्योति प्रज्वल्लित कर समारोह की शुरूआत की। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी,हरसिमरत कौर बादल ,शिअद प्रधान सुखबीर बादल तथा अन्य नेता उपस्थित थे।
क्या है गुरुद्वारा करतारपुर साहिब का इतिहास?
गुरुद्वारा करतारपुर साहिब श्री गुरु नानक देव साहिब के जीवन काल की अनमोल यादें संजोए बैठा है। जहां गुरु साहिब ने सांसारिक जीवन के 17 साल 5 महीने और 9 दिन बिता कर न सिर्फ खुद कृषि का काम किया, बल्कि उन्होंने समूची मानवता को बांट कर छकने, काम करने और नाम जपने का उपदेश भी इसी पवित्र धरती पर दिया था। गुरु साहिब ने इसी ऐतिहासिक स्थान पर दूसरे गुरु अंगद देव साहिब जी को गुरगद्दी सौंपी थी। इसके अलावा भी यह स्थान गुरु साहिब के सांसारिक काल की अंतिम रस्मों से संबंधित यादें भी संभाले बैठा है, क्योंकि वह 22 सितम्बर 1539 में यहीं पर ज्योति-ज्योत समाए थे।
किस तरह का होगा रास्ता?
डेरा बाबा नानक से नारोवाल को जोडऩे वाली रेलवे लाइन पर रावी दरिया पर पुल भी था, परन्तु भारत-पाक के मध्य हुई जंग में इस पुल को ध्वस्त कर दिए जाने के बाद इस इलाके में पाकिस्तान को जाने के लिए कोई भी सीधा रास्ता मौजूद नहीं है। इस गुरुद्वारा साहिब को भी डेरा बाबा नानक से के लिए आजादी से पहले भी कभी कोई सीधा और पक्का रास्ता नहीं बनाया गया, परन्तु संगत की इच्छा और भावना को देखते साल 2003 दौरान कै. अमरेन्द्र सिंह की सरकार के समय डेरा बाबा नानक के विधायक सुखजिंदर सिंह रंधावा ने डेरा बाबा नानक से इस गुरुद्वारा साहिब की ओर सरहद तक करीब पौने 2 कि.मी. की पक्की सड़क का निर्माण करवा दिया था और अब भी यह संभावना है कि फिर उसी सड़क को चौड़ा और आधुनिक ढंग से आगे तक बनाया जाएगा। इस सड़क से आगे कंटीली तार की दूसरी तरफ मैदानी इलाका है, जहां किसी भी व्यक्ति को जाने की अनुमति नहीं है। उस से आगे रावी दरिया के बिल्कुल किनारे पर गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है।
वीजा या पास संबंधी बरकरार हैं सवाल
इस रास्ते को लेकर संगत के मन में अभी भी कई सवाल हैं कि सरहद से आगे जाने के लिए संगत को वीजा लगवाना पड़ेगा या फिर उन को मौके पर पास जारी किए जाएंगे। सरहद से आगे गुरुद्वारा साहिब से करीब 2 कि.मी. का सफर पैदल तय करना पड़ेगा या सरकारी वाहनों का प्रबंध किए जाएंगे। ‘पंजाब केसरी’ से बात करते हुए भाई गुरिन्द्र सिंह बाजवा समेत कई धार्मिक नेताओं ने मांग की कि दोनों देश इस बात को यकीनी बनाएं कि गुरुद्वारा साहिब के दर्शनों के लिए संगत को अधिक कागजी कार्रवाई में न उलझना पड़े और संगत आसानी से इस गुरुद्वारा साहिब के दर्शनों के लिए आ-जा सके।


