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हरदा – महात्मा गांधी ने कहा था हरदा को हृदय नगरी , गांधीजी को 1633 रुपये 15 आने भेंट किये हरदा वासियो ने !

मुकेश पाण्डेय

( हरदा में आज 90 साल बाद भी ताज़ा है गांधीजी की स्मृतियाँ बुजुर्गों की आँखों में आज भी झिलमिलाती हैं यादें जनसहयोग से बापू को सौंपी थी 1633 रुपए 15 आना की थैली )*

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जन्म जयंती पर संस्मरण । हरदा के बुजुर्गों की आँखों में 8 दिसंबर सन 1933 में बापू के हरदा प्रवास की झलकियाँ तैर जाती हैं। स्थानीय इतिहासकार, साहित्यकार स्व . श्याम साकल्ले जी ने दी थी सचित्र प्रामाणिक जानकारी। ‘बापू की हरदा यात्रा’ का ‘हरिजन सेवक’ पत्र में उल्लेख भी है।

🔹 बापू का हरदा प्रवास…

सन 1933 में बाबई में माखनलाल चतुर्वेदी से मिलने बापू आये थे। सोहागपुर से हरदा की दूरी 69 मील थी। बापू ने पैसेंजर ट्रेन से यह यात्रा की। हरदा स्टेशन उतरने के बाद यहां के सूरजमल सराफ की खुले छत चौपहिया गाड़ी से वर्तमान अजमेरा निवास सुभाष चौक के सामने से बहुत धीरे धीरे गुज़रे। बापू ने एक नोट लिखकर उनके स्वागत दर्शन में सड़क मार्ग के दोनों तरफ रस्सी के पीछे खड़ी अनुशासित जनता की बहुत प्रशंसा की। हरदा में बापू का जुलूस मार्ग घण्टा घर से नृसिंह मन्दिर, खेड़ीपुरा, हरिजन बस्ती हरिशंकर सेठ चौराहा, ठाकुर सा बिछोला वालों की गढ़ी के सामने से गणेश चौक, सत्यनारायण मन्दिर से होते हुए जिमखाना तक रहा था। यहां जगह जगह बापू का स्वागत हुआ था। भाषण के बाद बापू ने हरिजन छात्रावास में विश्राम किया। बाद में खण्डवा के लिए प्रस्थान किया। हरदा वासियों के अनुशासन और आत्मीयता को देखकर बापू ने हरदा को हृदय नगर की संज्ञा दी थी।

 

🔹 अस्पृश्यता को बताया कलंक..

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जिमखाना मंच से बापू ने मैदान में बड़ी संख्या में जमा जनता को अस्पृश्यता निवारण व स्वच्छता का संदेश दिया था। जिमखाना ग्राउंड पर मंच पर लगे बैनर पर संदेश ‘अस्पृश्यता हिन्दू धर्म पर कलंक है।’ कार्यक्रम की मूल भावना को प्रकट कर रहा था बाद में बापू उसी वाहन से जिमखाना मैदान के पास हरिजन आश्रम गए। वहां से वे हरिजन बस्ती में गये और वहां साफ सफाई और छुआछूत दूर करने पर ज़ोर दिया। हरदा के सेनानी जलखरे परिवार के पास आज भी उस दिन बापू द्वारा चलाये गए चरखे के लकड़ी के दो पटिये हैं। हरदा के ही चंपालाल सोकल सेनानी परिवार से भी कई जानकारियां मिली हैं।

 

🔹 बापू की कुटिया अन्नापुरा स्कूल..

अन्नापुरा स्कूल 1955 में खुलने से पहले यह जगह हरिजन छात्रावास के रूप में जानी जाती थी। जहां बापू रुके थे, वर्तमान में उसे बापू की कुटिया के रूप में संवारा जा रहा है। बापू ने यहां बकरी का दूध भी पिया

🔹 बापू को सौंपे 1633 रुपए 15 आने एक पैसा..

सभा में दूरदराज से आये गांधीभक्तों ने आपस मे राशि एकत्र कर बापू को 1633 रु 15 आने राशि की थैली सौंपी तथा मानपत्र भेंट किया। हरिजन सेवक पत्र में इसका उल्लेख भी हुआ।

(नोट – इस आशय की खबर 2019 में श्याम भैया साकल्ले जी के हवाले से प्रसारित हुई थी। गांधी जयंती पर पुनः प्रसारित)