जनगण को भिखारी शब्द के साथ संबोधित करने का अधिकार पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल को किसने दिया: प्रहलाद पटेल बताएं क्या जनता ने अपनी बात जनप्रतिनिधि के होने नाते रखी तो क्या गलत किया?
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता के मौलिक अधिकारों का हनन करने जैसा घिनौना अपराध किया है पटेल ने
एक ही भाजपा के दो रूप – मोदी खुद को जनता का सेवक बताते हैं और प्रहलाद जनता को भिखारी
लेखक: वरिष्ठ पत्रकार विजया पाठक
मध्य प्रदेश की राजनीति इन दिनों उफान पर है। सरकार में पंचायत और श्रममंत्री प्रहलाद पटेल द्वारा पिछले दिनों दिए गए भीख वाला बयान सुर्खियों में छाया हुआ है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब पटेल ने राजगढ़ के सुठालिया में लोधी समाज के एक सम्मेलन में जनता द्वारा दिए जाने वाले मांग पत्रों को ‘भीख’ कह डाला। इस बयान ने न सिर्फ राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई। बल्कि मुख्यमंत्री मोहन यादव और भारतीय जनता पार्टी की रीति-नीति पर भी सवालियां निशान खड़ा कर दिया है। मंत्री पटेल ने मताधिकार का उपयोग करने वाली जनता को भिखारी बताकर देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। बड़ा सवाल यह है कि आखिर मंत्री पटेल को इसी तरह की बयानबाजी करने और प्रदेश सरकार की छवि बिगाड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली से मध्यप्रदेश भेजा। क्योंकि मंत्री पटेल जबसे मध्यप्रदेश आए हैं वह किसी न किसी रूप में हमेशा ही विवादों में रहे हैं।
लोकतंत्र के नियमों की उड़ाई धज्जियां
प्रहलाद पटेल द्वारा जनता के अपमान से जुड़ा यह बयान संविधान के अनुच्छेद 13 के अंतर्गत आने वाले मौलिक अधिकारों का हनन है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत जनता को अपने अधिकारों के लिए जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से अपनी बात कहने और अपना कार्य करवाने की स्वतंत्रता है। जिस ढंग से पटेल ने जनता को भीख मांगने वाला भिखारी बताया वह निराशाजनक है। कुल मिलाकर जनता इस अपमान का बदला मंत्री पटेल से आने वाले चुनाव में जरूर लेगी।
मानवीय मूल्यों का पटेल ने किया क्षरण
लोकतंत्र शासन व्यवस्था के उपलब्ध तरीकों में से एक बेहतर विकल्प माना जाता है क्योंकि यह बुनियादी मानवीय मूल्यों के आधार पर पनपता है। जब भारत आजाद हुआ, तब भी सबसे प्रभावी विकल्प तो राजशाही की व्यवस्था के रूप में सामने खडा था। हजारों साल से भारत ने वही व्यवस्था देखी थी। लेकिन उस व्यवस्था से भारत ने यह सीखा था कि अगर सौभाग्यवश अच्छा राजा मिल गया तो प्रजा की सुनवाई होगी नहीं तो राजा अपने भोग-विलास में लीन रहेगा और प्रजा का शोषण करता रहेगा। जनता को कभी भी अपना राजा ‘चुनने’ का अधिकार नहीं मिला था।
किसके पास जाएगी जनता अपनी बात कहने
अगर प्रह्लाद पटेल को जनता से इतना ही परेशानी है तो उन्हें चुनाव लड़ने का कोई अधिकार नहीं क्योंकि जनता चुनाव के बाद अपने से जुड़ी किसी भी परेशानी के निराकरण के लिए जनप्रतिनिधि के पास ही जाएगी। आखिर जनप्रतिनिधि उन्हीं के बीच का वह व्यक्ति है जिसे जनता मताधिकार का उपयोग करके विधानसभा या संसद तक पहुंचती है। ऐसे में जनप्रतिनिधि को यह बात कहने का कोई अधिकार नहीं कि वह उसे भिखारी कहकर संबोधित करे। यही नहीं यह वही जनता है जो मताधिकार के प्रयोग से संसद तक पहुंचा सकती है तो राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष के पास जाकर अपना विरोध भी दर्ज करवा सकती है जिससे जन प्रतिनिधि को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है।