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मुख्यमंत्री शिवराज ने महिला स्व-सहायता समूहों को दी 300 करोड़ करोड़ रुपए ऋण की सौगात

मकड़ाई समाचार भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन में गठित स्व-सहायता समूह के सदस्यों को 300 करोड़ रूपये का बैंक ऋण वितरित किया। साथ ही कुछ जिलों के स्व-सहायता समूह सदस्‍यों से वर्चुअल संवाद भी किया। कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में सभी जिलों से ग्राम पंचायत स्‍तर पर समूह सदस्‍य विभिन्‍न वर्चुअल माध्‍यमों से जुड़े। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में शामिल स्व-सहायता समूह की कुछ महिलाओं को प्रतीकस्वरुप ऋण राशि के चेक प्रदान किए।

इस कार्यक्रम के दौरान सीएम शिवराज ने अपने संबोधन में कहा कि मेरी बहनों, आप अपने समूहों को आगे बढ़ायें। सरकार हर कदम पर आपके साथ है। यह संकल्प करें कि आगे बढ़ना है, पीछे मुड़कर नहीं देखना है। अपनी आमदनी बढ़ाना है, अपने पैरों पर खड़े होना है, ताकि जरूरत पड़े तो अपने परिवार की सहायता भी कर सकें। मैं चाहता हूं कि मेरी हर बहन पैसा कमाए और सम्मान के साथ जिए। उसकी आमदनी बढ़े और इसका सबसे प्रभावी उपाय है आजीविका मिशन। मेरा सपना है कि मेरी हर गरीब बहन आजीविका मिशन से जुड़कर कम से कम 10 हजार रुपए महीना कमाने लगे। हमने बहनों को सशक्त करने के लिए पंचायत, नगर पालिका, पार्षद, मेयर, सरपंच आदि पदों पर 50 प्रतिशत का आरक्षण दिया और आज कहते हुए गर्व है कि मेरी कई बहनें इन पदों पर आसीन हैं और बहुत अच्छा कार्य कर रही हैं। मैंने संबल योजना बनाई, ताकि बच्चों के जन्म से पहले नारी शक्ति के हितों की सुरक्षा हो सके। बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना प्रारंभ की और मुझे बताते हुए गर्व की अनुभूति होती है कि 41 लाख से अधिक बेटियां लाड़ली लक्ष्मी बन चुकी हैं। बचपन से ही मैंने बेटे और बेटियों के बीच भेदभाव होते देखा है। तभी से दिमाग में यह बात बैठ गई कि मां, बहन और बेटी के सशक्तिकरण के लिए हर संभव कार्य करना है!

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मुख्यमंत्री चौहान से संवाद के दौरान देवास जिले की रुबीना ने बताया कि वह राज्य आजीविका मिशन ने उनका जीवन बदल दिया है। एक वक्त था जब वह मजदूरी करती थीं। आजीविका मिशन से जुड़ने के बाद वह गांव-गांव जाकर कपड़ा बेंचती हैं और लगभग 30 हजार रुपए महीने की कमाई कर रही हैं। रुबीना ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने बैरागढ़ से 5000 रुपए कपड़ा लाकर अपने गांव में बेचा व फिर धीरे-धीरे दूसरे गांव तक अपनी पहुंच बनाई। पहले वह गठरी बांधकर पैदल ही गांव-गांव जाती थीं, लेकिन आज वह मारुति वैन में अपनी दुकान सजाकर गांव-गांव कपड़ा बेचती हैं।

वर्चुअल संवाद के दौरान धार जिले की ममता सुनगौरा ने मुख्‍यमंत्री को बताया कि 2015 में वह आजीविका मिशन से जुड़ी थीं। सबसे पहले उन्होंने अपने गांव में ब्यूटी पार्लर खोला और फिर साड़ी की दुकान प्रारंभ की। आज वह लगभग 25-30 हजार रुपए प्रति महीना कमाती थीं। ममता जी ने बताया कि आजीविका मिशन से जुड़ने से पहले वह प्रति महीने मात्र 1500 रुपए महीने कमाती थीं। ममता जी ने बताया कि उनके समूह से 10 बहनें जुड़ी हैं, जिनमें से 7 बहनें 20-30 हजार रुपए महीना और 3 बहनें 7-8 हजार रुपए महीना कमा रही हैं। शहडोल जिले की आशा राठौड़ ने बताया कि वह 2012 में वह आजीविका के मिशन से जुड़ी थीं। वह सेंटरिंग प्लेट्स किराए से देने के साथ बुक कीपिंग और चावल के पापड़ बनाने जैसे कई काम कर रही हैं और प्रति महीने लगभग 32 हजार रुपए कमा रही हैं। श्योपुर जिले की बहन श्रीमती सरोज बैरवा ने बताया कि वह 5 महीने से एएम प्रसादम भोजनालय और रेस्टोरेंट चलाती हैं। वह प्रतिदिन 15-20 हजार रुपए कमा लेती हैं। उनके समूह से 10 बहनें जुड़ी हैं और प्रति महीने एक परिवार 10-12 हजार रुपए मिल जाते हैं। बड़वानी जिले की सुधा बघेल ने बताया कि उनका स्वसहायता समूह 2012 में बना था। इससे पहले उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। आजीविका मिशन से जुड़ने के बाद पहले उन्होंने बुक कीपिंग का प्रशिक्षण लिया और अब वह देशभर में प्रशिक्षण देने का कार्य करती हैं।

बता दें कि राज्य सरकार ने 40 लाख से अधिक ग्रामीण निर्धन परिवारों को तीन लाख 50 हजार समूहों से जोड़कर वित्तीय सहायता दी है। समूहों को अब तक दो हजार 762 करोड़ रुपये बैंक ऋण दिलाया गया है।