मकड़ाई समाचार भोपाल। मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमल नाथ ने पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर कहा कि सीएम शिवराज सिंह चौहान ने सदन में यह आश्वासन दिया था कि पंचायत चुनाव बिना आरक्षण के नहीं होंगे। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि वे इसके बाद क्या कदम उठाने जा रहे हैं। अगर आप चाहते हैं कि हम भी कोर्ट चलें तो हम आपके साथ हैं।
मध्य प्रदेश विधानसभा में आज पेश होगा सरकारी और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से वसूली के लिए विधेयक
मध्य प्रदेश में धरना, जुलूस, हड़ताल, बंद, दंगा या पथराव, आग लगाने या व्यक्तियों के समूह द्वारा तोड़फोड़ के कारण सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान की भरपाई करनी होगी। इसके लिए गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा आज विधानसभा में मध्य प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान निवारण और नुकसान की वसूली विधेयक-2021 को विधानसभा में पेश करेंगे।
इसमें किसी विशेष घटना के लिए क्लेम ट्रिब्यूनल का गठन किया जाएगा, जो तीन महीने में मुआवजे की राशि का निर्धारण करेगा। नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ ऐसे व्यक्तियों से भी वसूली की जा सकती है जो इस तरह के कृत्य को करने के लिए उकसाने या उकसाने का काम करते हैं। सदन में दूसरे अनुपूरक बजट पर भी चर्चा होगी।
शिवराज सरकार ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और हरियाणा के अधिनियमों का अध्ययन करने के बाद अधिनियम का मसौदा तैयार किया है। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ स्थानीय निकायों, सहकारी संस्थाओं, कंपनियों और निजी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई का प्रावधान किया गया है।
सांप्रदायिक दंगों, हड़ताल, बंद, प्रदर्शन, जुलूस या व्यक्तियों के समूह के कारण संपत्ति को हुए नुकसान की वसूली के लिए एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक दावा न्यायाधिकरण की स्थापना की जाएगी। इसका सदस्य सेवानिवृत्त सचिव या समकक्ष अधिकारी का होगा। यह सभी तथ्यों की जांच के बाद तीन महीने के भीतर अपना फैसला सुनाएगी। इसके लिए जिस व्यक्ति की संपत्ति को नुकसान पहुंचा है, उसे एक महीने के भीतर आवेदन करना होगा।
मुआवजे के लिए जो राशि तय की जाएगी, वह संबंधित व्यक्ति को 15 दिन के अंदर देनी होगी। भुगतान नहीं करने पर ब्याज भी वसूला जाएगा। नुकसान की भरपाई के लिए भू-राजस्व के बकाया की वसूली जैसे चल-अचल संपत्ति की नीलामी की जा सकती है। ट्रिब्यूनल के पास एक सिविल कोर्ट की शक्तियां होंगी और उसके आदेश को आदेश पारित होने की तारीख से 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।