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कार्तिक पूर्णिमा पर सदी के सबसे बड़े ग्रहण पर बन रहा है ‘नीचभंग राजयोग’

     इस वर्ष कुल 4 ग्रहण का योग बना, जिसमें से दो ग्रहण लग चुके हैं. वर्ष 2021 का पहला ग्रहण ‘चंद्र ग्रहण’ के रूप में 26 मई 2021 को पड़ा था. इस ग्रहण के 15 दिन बाद वर्ष 2021 का दूसरा ग्रहण, ‘सूर्य ग्रहण’ के रूप में लगा था. जो 10 जून 2021 को लगा था. अब साल का तीसरा ग्रहण, चंद्र ग्रहण के रूप में पूर्णिमा की तिथि पर 19 नवंबर को लगने जा रहा है. जिसे सदी का सबसे बड़ा चंद्र ग्रहण है. इसके बाद अगला चंद्र ग्रहण 16 मई 2022 को लगेगा।.
      ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी के अनुसार इस पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा भी कहा जाता है. हिन्दू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा को धर्म और ज्योनतिष के नज़रिए से बेहद अहम माना गया है और पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण लगने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है. इस दिन कार्तिक मास का समापन भी हो रहा है. इसलिए भी इस चंद्र ग्रहण को महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी का कहना है, ”पंचांग के अनुसार ये ग्रहण लगभग प्रात: 11 बजकर 34 मिनट से आरंभ होगा और शाम 05 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगा.”
इस बार का चंद्र ग्रहण वृषभ राशि में लग रहा है. वृषभ राशि में राहु का गोचर बना हुआ है. इसलिए इस ग्रहण का सबसे अधिक प्रभाव वृषभ राशि पर दिखाई देगा. चंद्र ग्रहण के समय गुरु यानि देव गुरु बृहस्पति मकर राशि में मौजूद रहेंगे. जहां पर शनि देव भी विराजमान हैं. शनि मकर राशि के स्वामी हैं, जबकि मकर राशि को गुरु की नीच राशि माना गया है. ग्रहण के समय गुरु मकर राशि में शनि के साथ युति बनाकर बैठेगें.  गुरु, शनि देव के साथ मकर राशि में नीचभंग राजयोग बना रहे हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब कोई ग्रह अपनी ही राशि में विरामान हो और यह राशि किसी अन्य ग्रह की नीच राशि हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ का निर्माण होता है.
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी कहते हैं, गणना के अनुसार चंद्र ग्रहण से 09 घंटे पूर्व सूतक काल आरंभ होता है. इसमें शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. गर्भवती महिलाओं को सूतक काल में विशेष सावधानी बरतने की सालह दी जाती है. लेकिन गौरतलब है कि 19 नवंबर को लगने वाले चंद्र ग्रहण के दौरान सूतक नियमों का पालन नहीं किया जाएगा क्योंकि यह ग्रहण आंशिक ग्रहण है.
कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगनेवाले सदी के सबसे बड़ा चंद्र ग्रहण भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सो में दिखाई देगा. विदेशों में यह अमेरिका, उत्तरी यूरोप, पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में दिखाई पड़ेगा.
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी आगे कहते हैं, ”कार्तिक पूर्णिमा होने से इस दिन लोग गंगा स्नान करते हैं। दीपदान, अन्न दान आदि करते हैं. यह आंशिक ग्रहण होने से वे ये सभी धार्मिक कार्य सामान्य तरीके से कर सकेंगे। साथ ही पूर्णिमा की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी हैं और इस दिन दान-पुण्य का फल कई जन्मों तक प्राप्त होता है. इस पूरे मास में भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था.। ‘
   कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह पूरे घर की साफ-सफाई करें और मुख्य द्वार की चौखट पर हल्दी का पानी डालें. इसके बाद मुख्य द्वार पर दोनों तरफ हल्दी से स्वास्तिक बनाकर पूजा करें और रंगोली बनाएं. इसके साथ ही आम के पत्तों को तोरण भी लगाएं. ऐसा करने से देवी लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं और अपनी कृपा घर-परिवार पर बनाए रखती हैं.
संस्थापक: ज्योतिष सेवा केन्द्र
ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री
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