मकड़ाई समाचार जबलपुर। प्रदेश की बिजली सप्लाई में कोयला की कमी संकट पैदा कर सकती है। कोल कंपनियां कोयला देने में आनाकानी कर रही है। वजह देनदारी 800 करोड़ के पार हो चुकी है इतनी बड़ी राशि बकाया होने के बावजूद कोयला कंपनियों ने सप्लाई फिलहाल रोकी तो नहीं लेकिन इसे कम जरूर कर दिया है। प्रदेश के सभी पॉवर प्लांट में औसत 14 दिन का कोयला बचा हुआ है।
कहां से आ रहा है कोयला: मप्र पॉवर जनरेटिंग कंपनी के चार प्रमुख थर्मल पॉवर प्लांट है जहां कोयले की रोजाना 74 हजार मीट्रिक टन कोयले की जरूरत होती है। अभी 10 लाख 60 हजार 400 मीट्रिक टन कोयला स्टॉक में कंपनी के पास बना हुआ है। ये कोयला वेस्टर्न कोल लिमिटेड, डब्ल्यूसीएल नार्दन कोल लिमिटेड, एनसीएल तथा साउथ ईस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड, एसईसीएल से कोयला मिलता है।
इन प्लांट में ये स्थिति-
अमरकंटक पॉवर प्लांट 3 हजार मीट्रिक टन 11 दिन
बीरसिंहपुर पॉवर प्लांट 20 हजार मीट्रिक टन 15 दिन
सारणी पॉवर प्लांट 21 हजार मीट्रिक टन 9 दिन
श्रीसिंगाजी पॉवर प्लांट 30 हजार मीट्रिक टन 18 दिन
क्यों बकाया बढ़ा
मप्र पॉवर जनरेशन कंपनी को कोयला कंपनी को 885 करोड़ रुपये का भुगतान करना है। कंपनी का कहना है कि उसके पास फंड की कमी है। कोरोना संक्रमण की वजह से सरकार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है ऐसे में बिजली कंपनी को राजस्व भी नहीं मिल रहा है। मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी से बिजली वितरण कंपनियों को करीब 6 हजार करोड़ रुपये के आसपास वसूलना है। ऐसे में कंपनयिों से जब तक पैसा नहीं आएगा कोयला कंपनियों को भुगतान संभव नहीं होगा। बताते हैं कि वितरण कंपनियों के पास कोरोना काल से राजस्व वसूली आधी हो गयी है।
कब स्थिति चिंताजनक: पॉवर प्लांट में कोल स्टॉक के लिए गाइडलाइन है। इसमें सात दिन का कोयला स्टॉक में होने पर स्थिति क्रिटिकल मानी जाती है। यदि 4 दिन का स्टॉक बाकी रहे तो इसे अति गंभीर स्थिति माना जाता है। फिलहाल औसत कोयला 14 दिन का बिजली कंपनी के पास बना हुआ है। करीब दो माह पूर्व तक स्थिति ये थी कि पॉवर प्लांट में 20 से 25 दिन का कोयला स्टॉक में बना हुआ था।