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गणपति वंदना से पूजा की शुरूआत क्यों करनी चाहिए

हिंदू धर्म में किसी भी शुभ काम का आरंभ श्री गणेश की पूजा से होता है। क्या आप जानते हैं गणपति वंदना से ही पूजा की शुरूआत क्यों करनी चाहिए? हमारे धर्म ग्रंथों में विघ्न-बाधाएं दूर करने के लिए श्रीगणेशाय नम: से शुभारंभ करने के लिए कहा गया है। सभी गणों के स्वामी होने के कारण इनका नाम गणेश है। परंपरा में हर काम से पहले इनको याद करना जरूरी है। उन्हें विघ्नहर्ता क्यों कहते हैं गणेश जी में ऐसी क्या विशेषताएं हैं कि उनकी पूजा 33 कोटि देवी-देवताओं में सबसे पहले होती है। भगवान गणेश का व्यक्तित्व बेहद आकर्षक माना गया है। उनका मस्तक हाथी का है और वाहन मूषक है। उनकी दो पत्नियां ऋद्धि और सिद्धि हैं। आइए जानें, गणेश जी की विशेषताएं-

ऋग्वेद में कहा गया है- च्न ऋते त्वम क्रियते किं चनारेज् अर्थात हे गणेश, तुम्हारे बिना कोई भी काम शुरू नहीं किया जा सकता। तुम्हें वैदिक देवता की पदवी दी गयी है। ॐ के उच्चारण से वेद पाठ शुरू होता है। गणेश आदिदेव हैं। वैदिक ऋचाओं में उनका अस्तित्व हमेशा रहा है। गणेश पुराण में ब्रहा, विष्णु एवं शिव के द्वारा उनकी पूजा किए जाने तक के बारे में कहा गया है।

भगवान गणेश की शारीरिक बनावट के मुकाबले उनका वाहन चूहा काफी छोटा है। चूहे का काम किसी चीज को कुतर डालना है। गणेश बुद्धि और विद्या के देवता हैं। तर्क-वितर्क में वे बेजोड़ हैं। इसी प्रकार मूषक भी तर्क-वितर्क में पीछे नहीं हैं। काट- छांट में कोई इसका मुकाबला नहीं कर सकता। मूषक के इन्हीं गुणों को देखकर उन्होंने इसे वाहन चुना है।

गजानन की सूंड हमेशा हिलती-डुलती रहती है जो उनके सचेत होने का संकेत है। इसके संचालन से दु:ख-दरिद्रता खत्म हो जाती है। अनिष्ट करने वाली शक्तियां डर कर भाग जाती हैं। सूंड के दायीं और बायीं ओर होने का अपना महत्व है। मान्यता है कि सुख-समृद्वि के लिए उनकी दायीं ओर मुड़ी सूंड की पूजा करनी चाहिए, वहीं शत्रु को हराने या ऐश्वर्य पाने के लिए बायीं ओर मुड़ी सूंड की पूजा करनी चाहिए।

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गणेश जी का पेट बहुत बड़ा है। इसी कारण उन्हें लंबोदर भी कहा जाता है। लंबोदर होने का कारण यह है कि वे हर अच्छी और बुरी बात को पचा जाते हैं और किसी भी बात का निर्णय सूझबूझ के साथ लेते हैं। वे सभी वेदों के ज्ञाता हैं। संगीत और नृत्य आदि कलाओं के भी जानकार हैं। ऐसा माना जाता है कि उनका पेट बहुत सारी विद्याओं का खजाना है।

श्री गणेश लंबे कान वाले हैं। इसलिए उन्हें गजकर्ण भी कहा जाता है। लंबे कान वाले भाग्यशाली होते हैं। लंबे कानों का एक रहस्य यह भी है कि वह सबकी सुनते हैं और अपनी बुद्धि और विवेक से ही किसी काम को करते हैं। बड़े कान हमेशा चौकन्ना रहने का भी संकेत देते हैं।

बड़े पेट वालों को मीठा बेहद पसंद होता है। भगवान गणेश एक ही दांत होने के कारण चबाने वाली चीजें नहीं खा पाते होंगे और लडडू खाने में उन्हें आसानी होती होगी। इसीलिए मोदक उन्हें प्रिय है क्योंकि वह आनंद का भी प्रतीक है। वह ब्रह्मशक्ति का प्रतीक है क्योंकि मोदक बन जाने के बाद उसके भीतर क्या है, दिखाई नहीं देता।

भगवान परशुराम से युद्ध में उनका एक दांत टूट गया था। उन्होंने अपने टूटे दांत की लेखनी बना कर महाभारत का ग्रंथ लिखा।

गणपति अधिकतर वर मुद्रा में ही दिखाई देते हैं। यह सत्वगुण का प्रतीक है। इसी से वे भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। इस प्रकार गणेश जी का सारा व्यक्तिव निराला है। उनके आंतरिक गुण भी उतने ही अनूठे हैं जितना उनका बाहरी व्यक्तित्व। गणेश जी के सभी प्रतीक सिखाते हैं कि हम अपनी बुद्धि को जगा कर रखें, अच्छी-बुरी बातों को पचाएं।