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पर्यावरण संरक्षण संकल्प के साथ बड़े स्तर पर पौधरोपण करेगा विश्नोई समाज

समाज ने खेजड़ली बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी,शहर में अमृतादेवी की प्रतिमा लगाने का काम अधूरा

हरदा। अखिल भारतीय विश्नोई युवा संगठन मध्य प्रदेश के बैनर तले रविवार को अमर शहिद मां अमृता देवी विश्नोई की पुण्यतिथि के अवसर पर खेजड़ली के वीर बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी गई। अखिल भारतीय विश्नोई युवा संगठन के मप्र अध्यक्ष सुहागमल पंवार ने बताया कि विश्नोई संत आश्रम नेमावर में आयोजित कार्यक्रम में मध्य क्षेत्र विश्नोई सभा नीमगांव के अध्यक्ष आत्माराम पटेल, विश्नोई मंडल खातेगांव के अध्यक्ष जगदीश साहू, विश्नोई न्याय समिति के अध्यक्ष हीरालाल पटेल एवं समाज के वरिष्ठ गणमान्य नागरिकों और सामाजिक युवाओं की उपस्थिति में अमर शहीद मां अमृता देवी विश्नोई एवं 363 खेजड़ली के शहीदों को पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्वलित कर श्रद्धांजलि दी गई।

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शहीदों की याद में उपस्थित सभी लोगों ने दो मिनट का मौन धारण किया। संकल्प लिया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए आगामी समय में योजना बनाकर पौधरोपण किया जाएगा। शहर में लंबे समय से विश्नोई समाज की शहीद अमृता देवी की प्रतिमा स्थापित करने का काम अधूरा है। समाज ने नगर पालिका, स्थानीय विधायक और जिला प्रशासन से इस संबंध में कई बार मांग की जा चुकी है, लेकिन इस मांग की अनदेखी की गई है। ऐसे में समाज में जिम्मेदारों की अनदेखी से रोष दिख रहा है।

यह है खेजलड़ी बलिदान :
खेजड़ली गांव राजस्थान के जोधपुर से करीब 25 किमी दूर बसा है। यहां बड़ी संख्या में खेजड़ली के पेड़ है, जिसके कारण इस गांव का नाम खेजड़ली पड़ा। साल 1730 में अमृता देवी विश्नोई सहित चोरासी गांव के 363 विश्नोई खेजड़ली के हरे पेड़ों को बचाने के लिए गांव में शहीद हुए थे। खेजड़ली और इसके आसपास के गांवों में विश्नोई लोगों की अधिकता के कारण यहां पेड़ कटाई और शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। सितंबर 1730 को पर्यावरण की रक्षा के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के रूप खेजङली आंदोलन शुरू हुआ था।सितम्बर 1978 से खेजड़ली दिवस मनाया जा रहा है। खेजड़ली में विश्व का एकमात्र पेड़ मेला लगता है। खेजड़ली स्थान विश्नोई समाज का पवित्र स्थल है। खेजड़ली गांव में हुई इस घटना के समय वहां के राजा महाराजा अभयसिंह थे। इन्होंने अपने मंत्री गिरधारी सिंह को खेजड़ली के पेड़ों को काटने के लिए आदेश दिया था। तब मंत्री ने खेजड़ली गांव में पेड़ काटने शुरू कराए। तब सबसे पहले अमृता देवी विश्नोई पेड़ों से चिपक कर अपनी दो पुत्रियों सहित विश्नोई समाज के 363 लोगों के साथ शहीद हो गई थी।