डैनी उतपुरे मकड़ाई समाचार ब्यूरो बैतूल। बिना तलवार बिना ढाल के भारत की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी को कोई भुला नहीं सकता। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलवाएंगे जिनके परिवार ने महात्मा गांधी की यादों को संजो कर रखने के लिए अपने सवा सौ साल पुराने मकान का हुलिया ही नहीं बदला। बैतूल का यह परिवार बापू की कई स्मृतियां अपने पास विरासत की तौर पर रखे हुए है।
जिले के रमन गोठी एक ऐसे ही शख्स है जिन्होंने अपने 130 साल पुराने मकान को सिर्फ इसलिए तोड़ा या संवारा नहीं क्योकि उस मकान में महात्मा गांधी रुके थे। 1933 में हरिजन उद्धार कार्यक्रम के तहत बैतूल आए बापू सेठ जी के बगीचे के नाम से प्रसिद्ध इस मकान में अपने कार्यकर्ताओं के साथ तीन दिन तक ठहरे थे । यहीं रुककर उन्होंने आम के बगीचे में सभाएं की थी। सबसे खास गोठी परिवार का यह मकान है। स्वतंत्रता आंदोलन में महती भूमिका निभाने वाले गोठी परिवार को मकान में गांधी का रुकना इतना भाया की उन्होंने अपने इस मकान में सिर्फ इसलिए बदलाव नहीं किए की कहीं इससे गांधीजी की स्मृतियां ओझल न हो जाए। यही वजह है कि अस्सी साल बाद भी गोठी का यह मकान वैसा का वैसा ही है जैसा 1933 में था।
5 हजार स्क्वेयर फुट में बना बंगला नुमा यह मकान बरसों से ऐसा ही है। वही पुराने टीन की पट्टियों के बने कंगूरे, सागौन की लकड़ी की रेलिंग और अंदर लकड़ी की ही सीलिंग। आज भी वैसी ही है। करीब 1890 में यह मकान बनवाने वाले लखमीचंद गोठी के परपौत्र रमन गोठी बताते है कि उनके दादा पनराज गोठी के हिस्से में यह मकान आया था। जो बाद में स्व मोतीलाल गोठी के बाद से यह उनकी देखरेख में है। हरिजन उद्धार कार्यक्रम में शामिल होने के लिए महात्मा गांधी के यहां रुकने के दौरान उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया पलंग, यह भवन उन्होंने वैसे ही संजोए रखा है। इसकी दरों दीवार के साजो संभाल के लिए जरूर वे इसकी लिपाई पुताई और मरम्मत करवाते रहते हैं।
चरखा और सूत काटने वाली ब्लेड आज भी सुरक्षित रखी
महात्मा गांधी का वो चरखा आज भी परिवार के पास सुरक्षित है। जिसे महात्मा गांधी अपने प्रवास के दौरान सूत कातने में इस्तेमाल करते थे। उस जमाने का सूत, और यूएसए की वह ब्लेड भी आज घर में रखी है। रमन के चचेरे भाई प्रफुल्ल बताते है कि यह चरखा और ब्लेड आज भी उनके पास है। महात्मा गांधी ने बैतूल से लौटते समय यह उनके परिवार को भेंट किया था।
गोठी परिवार के इस मकान के पीछे कई एकड़ क्षेत्र में फैला आमों का बगीचा आज भी प्रसिद्ध है। यहां सैकडो आम के पेड़ हैं। जिसके मिश्री, चौसा, आदि फलों ने राष्ट्रीय फल प्रदर्शनियों में कई इनाम जीते हैं। रमन गोठी बताते है कि यहां 180 किस्म के आम होते थे। आज भी यहां 70 के करीब आम की प्रजातियां मौजूद है। इनमें हापुस आम सबसे खास है। जबकि गुलाब जामुन, कमरख, खिरनी आदि के पेड़ भी थे। वे बताते है कि जब यहां बापू रुके थे। उस दौरान एक बड़ा झूला भी यहां था। उस वक्त बगीचे की सिंचाई चमड़े की मोट से हुआ करती थी। जबकि चीनी मिट्टी की पाइपलाइन बिछी हुई थी।