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बोफोर्स मामले में कांग्रेस को राहत, एससी ने खारिज की सीबीआई की या​चिका

उच्चतम न्यायालय ने बोफोर्स तोप में रिश्वतकांड मामले में सीबीआई की याचिका को खारिज कर दिया है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपील दायर करने में 13 साल का विलंब माफ करने का जांच ब्यूरो का अनुरोध अस्वीकार कर दिया।
पीठ ने कहा कि वह अपील दायर करने में 4500 दिन से अधिक के विलंब के बारे में जांच ब्यूरो द्वारा बताये गये कारणों से संतुष्ट नहीं है। जांच ब्यूरो ने इस साल दो फरवरी को अपील दायर की थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि जांच ब्यूरो पहले से ही लंबित अधिवक्ता अजय अग्रवाल की अपील पर सुनवाई के दौरान ये सारे बिन्दु उठा सकता है। अग्रवाल ने भी उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दे रखी है।

अजय अग्रवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत से यह स्पष्ट करने का अनुरोध किया कि जांच ब्यूरो की अपील खारिज होना उसे इस मामले में आगे जांच करने से नहीं रोकता है। उच्च न्यायालय ने 2005 में अपने फैसले में हिन्दुजा बंधुओं-एस पी हिन्दुजा, जी पी हिन्दुजा और पी पी हिन्दुजा- तथा अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत सारे आरोप निरस्त कर दिये थे।

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लोकसभा चुनाव के बाद राजग के सत्ता में आने पर यह अटकलें लगायी जा रही थीं कि जांच ब्यूरो अब अग्रवाल की याचिका में प्रतिवादी के रूप में आयेगी या फिर अलग से अपील दायर करेगी। सूत्रों ने बताया कि अपील दायर करने के लिये अटार्नी जनरल से मंजूरी मिलने के बाद फरवरी में जांच एजेन्सी हरकत में आयी और उसने अपील में निजी जासूस माइकल हर्षमैन के अक्टूबर, 2017 के इंटरव्यू को आधार बनाया।

बोफोर्स तोप सौदा प्रकरण में केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने 22 जनवरी, 1990 को आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, और छल के आरोप में भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्दबो, कथित बिचौलिया विन चड्ढा और हिन्दुजा बंधुओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। इस मामले में पहला आरोप पत्र 22 अक्टूबर, 1999 को विन चड्ढा, ओत्तावियो क्वात्रोच्चि, तत्कालीन रक्षा सचिव एस के भटनागर, आर्दबो और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ दायर किया गया था। बाद में पूरक आरोप पत्र नौ अक्टूबर, 2000 को हिन्दुजा बंधुओं के खिलाफ दायर किया गया था। सीबीआई की विशेष अदालत ने चार मार्च, 2011 को क्वात्रोच्चि को यह कहते हुये आरोप मुक्त कर दिया था कि देश उसके प्रत्यर्पण पर गाढ़ी कमाई का खर्च वहन नहीं कर सकता जिस पर पहले ही 250 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।