मकड़ाई समाचार भोपाल। शुक्रवार 08 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल नवमी तिथि, जिसे भड़ली नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इसे भड़ल्या नवमी या कंदर्प नवमी भी कहते हैं। अक्षय तृतीया की तरह इस दिन भी विवाहादि मांगलिक कार्यों के लिए अबूझ मुहूर्त होता है। यानी इस तिथि को बगैर मुहूर्त देखे निस्संकोच मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं। हिंदू पंचाग के अनुसार यह तिथि साल के पूर्वार्ध में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार आदि के लिए अंतिम शुभ तिथि मानी गई है। इसके उपरांत देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। चातुर्मास की इस अवधि में मांगलिक या शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। लिहाजा भड़ली नवमी का विशेष महत्व
भड़ली नवमी तिथि
हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत 07 जुलाई गुरुवार को शाम 07 बजकर 28 मिनट से होगी, जिसका समापन अगले दिन 08 जुलाई शुक्रवार को शाम 06 बजकर 25 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार भड़ली नवमी 08 जुलाई को मनाई जाएगी। भड़ली नवमी के अबूझ मुहूर्त में ज्यादा से ज्यादा शादियां होंगी। इस दिन विशेष मुहूर्त के चलते राजधानी में करीब 80 से अधिक शादियां होगी।
तीन शुभ योग
मां चामुंडा दरबार के पुजारी पंडित रामजीवन दुबे ने बताया कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष भड़ली नवमी इस बार शिव, सिद्ध, रवि इन तीन योगों में मनाई जाएगी। इन तीन शुभ योगों के संयोग से इस दिन की महत्ता और बढ़ गई है। इसके अलावा शादी का अबूझ महुर्त होने के कारण इस दिन सैकड़ों शादियां होंगी। मांगलिक कार्य एवं क्रय-विक्रय के लिए शुभ दिन माना गया है। गुप्त नवरात्र का पूजा-पाठ, हवन, आरती, कन्या भोज के साथ समापन होगा।
दो दिन बाद चातुर्मास
पं. रामजीवन दुबे ने बताया कि 10 जुलाई को देवशयनी एकादशी से चातुर्मास लग जाता है। चार माह के लिए भगवान विष्णु सो जाते हैं और इस दौरान भगवान शिव के हाथों में सृष्टि का संचालन रहता है। इस अवधि में भगवान शिव पृथ्वीलोक पर निवास करते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष देवउठनी एकादशी शुक्रवार 4 नवंबर को तुलसी विवाह के साथ चौमासा का समापन होगा।