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मंडला जिले में फसलों को नुकसान पहुंचा रहे शंख और घोंघे

मकड़ाई समाचार मंडला। विकासखंड मंडला के कुछ क्षेत्रों में शंख और घोंघे का प्रकोप खेतों में देखा जा रहा है। जिससे किसानों की फसल व सब्जी प्रभावित हो रही है। जिसकी जानकारी किसानों द्वारा कृषि विज्ञान केंद्र प्रभारी को भी दी गई। जिसके बाद वैज्ञानिक दल मौके पर खेतों में पहुंचकर जायजा लिया है और उपचार भी इनसे निपटने किसानों को बताया गया है।

संयुक्त टीम बनाकर किया गया निरीक्षण

कृषि विज्ञान केंद्र मंडला के वरिष्ठ विज्ञानियों एवं प्रमुख डॉ विशाल मेश्राम को दूरभाष के माध्यम से जानकारी प्राप्त हुई कि ग्राम सुकतरा विकासखंड मंडला के कृषकों के खेतों में शंख या स्नेल और घोंघे का प्रकोप व्यापक रूप में है। जिससे उनकी सब्जियों और फसलों में काफी क्षति हो रही है।

सूचना पर त्वरित संज्ञान लेते हुए कृषि विज्ञान केंद्र मंडला के वरिष्ठ विज्ञानियों डॉ विशाल मेश्राम द्वारा केंद्र में पदस्थ विज्ञानियों डॉ आरपी अहिरवार, नीलकमल पंद्रे आत्मा परियोजना के उप परियोजना संचालक डॉ आरके सिंह की संयुक्त टीम बनाकर राकेश सैनी एवं अन्य कृषकों के खेतों में निरीक्षण किया।

ग्रामीणों से चर्चा के दौरान ज्ञात हुआ कि इन शंखों या स्नेल, घोंघो का रात्रि के समय अधिक आक्रमण होता है और इसी समय बेलवाली सब्जियों लौंकी, कद्दू, बरबटी एवं मक्का आदि सभी फसलों की पत्तियों को ये खाकर नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे फसलों की बढ़वार अवरूद्ध हो रही है।

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प्रायः सभी जानते है कि पौधे में पत्तियों के द्वारा ही भोजन निर्माण प्रकाश संष्लेषण द्वारा किया जाता है। यदि पत्तियां ही नष्ट हो जाएगी। तो भोजन की कमी से पौधों की वृद्धि या बढ़वार रूकना स्वाभाविक है। ये शंख या स्नेल, घोंघे दिन के समय सुसुप्तावस्था में प्रायः निष्क्रिय पड़े रहते है।

बताया उपचार

डॉ. विशाल मेश्राम ने जानकारी देते हुए बताया कि घोंघा या शंख एक प्रकार के बिना रीढ़ की हड्डी वाले जीवों के कड़े खोल होते हैं। इन जीवों को मोलस्क कहा जाता है। मोलस्क की 60,000 से अधिक किस्मों का अध्ययन अब तक किया जा चुका है। ये शंख मॉलस्क के शरीर के खोल होते है जैसे-जैसे मॉलस्क का आकार बढ़ता है वैसे ही वैसे यह खोल भी मजबूत और बड़ा होता जाता है ये जीव शाकाहारी होते है जो सभी प्रकार के पौधो जैसे घास, फसलों की पत्तियों का भोजन करते हैं।

वैज्ञानिकों द्वारा इनके निदान हेतु 2 प्रतिशत नमक का घोल या 3 मिली प्रति लीटर पानी की दर से बुझे हुए चूने के पानी का छिड़काव इनके उपर करने से इनकी रोकथाम की जा सकती है। या 15 प्रतिशत मेटाल्डीहाईड चूर्ण का 50 किग्रा प्रति हेक्टेयर या 50 प्रतिशत मेटाल्डीहाईड पॉवडर के घोल का 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है।