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मंदिर में बैठकर आरक्षण के हिसाब से तय होता है प्रत्याशी, पंचायत गठन से अब तक नहीं हुई वोटिंग

मकड़ाई समाचार हरदा। जिले में एक ऐसी पंचायत है जहां पंचायत चुनाव में सरपंच या पंच मंदिर में बैठकर आपसी तालमेल से चुने जाते हैं। जी हां, यह सुनने में थोड़ा चौंकाने वाला है लेकिन यह सच है। ग्राम पंचायत बूंदड़ा में ग्रामीण आज भी सरपंच आपसी सहमति से चुनते है। यही कारण है पंचायत गठन के तीन दशक बीत गए पर इस गांव में कभी पंचायत चुनाव के लिए मतदान नहीं हुआ है।

पंचायत का गठन 1993 में हुआ था

ग्राम पंचायत बूंदड़ा में ग्रामीणों ने पंचायत चुनाव के लिए कभी मतदान नहीं किया है। इस पंचायत का गठन 1993 में हुआ था। तभी से पंचायत में निर्विरोध सरपंच चुने जाने की परंपरा है। पंचायत गठन के पहले बूंदड़ा दूसरी पंचायत में मर्ज था। उस समय भी गांव वाले निर्विरोध सरपंच चुनते थे। गांव में लगभग 1200 से ज्यादा मतदाता है। पंचायत चुनाव आने पर पहले ग्रामीण मंदिर में बैठते है। जहां आरक्षण के आधार गांव के व्यक्ति के नाम पर सरपंच पद के लिए सहमति बनती है। चुनाव के समय नामांकन फार्म भरवाकर उसे निर्विरोध निर्वाचित किया जाता है। गांव के बुजुर्ग बताते है। हमेशा गांव में निर्विरोध सरपंच चुना जाता है। आज यही बात इस गांव की पहचान बन गया है।

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लगातार चार बार निर्विरोध सरपंच

ग्राम पंचायत बूंदड़ा में लगातार चार बार सरपंच निर्विरोध चुना जा रहा है। जिसके चलते भारत सरकार द्वारा पंचायत को हर बार पांच लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि प्रदान की है। 20 लाख रुपए की यह राशि गांव के विकास पर खर्च की गई है। गांव में स्वच्छता देखते ही बनती है। 2007 में ही बूंदड़ा खुले में शौच मुक्त हो गया था। गांव के हर घर में शौचालय है। गांव के भगवानदास करोडे बताते है कि गांव के युवा भी आधुनिक खेती करते हैं। गांव से पुलिस थाने में कोई रिपोर्ट नहीं होती है। यदि कोई भी विवाद होता है उसे गांव में बैठकर सुलझाया जाता है। गांव के ही रहने वाले गौरी शर्मा कहते है कि पूरे प्रदेश में उनकी पंचायत अनोखी है। सभी लोग मिलकर रहते हैं।

गांव के विकास को मिलती है गति

ग्राम बूंदड़ा के पंचायत सचिव राजेंद्र सिंह मौर्य का कहना है कि निर्विरोध निर्वाचन होने से गांव के विकास को गति मिलती है।