दिनेश अखाड़िया मकड़ाई समाचार, झाबुआ। झाबुआ जिले से लाखों मजदूर अपनी और अपने परिवार का जीवन यापन के लिए अन्य प्रदेश में पलायन के लिए हर रोज बसों एवं जीप में मजदूर के लिए बैठकर जाने का सिलसिला जारी है। दुख इस बात का है कि बसों और जीपों में क्षमता से अधिक सवारिया बिठाकर ले जा रहे हैं। एक और जहां पूरा विश्व वैश्विक महामारी से जूझ रहा है, और देश के प्रधानमंत्री एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री इस महामारी से बचाव के लिए कई उपाय की गाइडलाइंस जारी की है। जोकि अनलॉक डाउन के अंतर्गत निर्देश दिए गए हैं, की मास्क अनिवार्य लगाएं एवं सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और सैनिटाइजर का उपयोग करें। लेकिन बस मालिक और उनके स्टाफ द्वारा नियमों का धज्जियां उड़ा रहे हैं। चंद पैसों के लिए जहां बसों में 50 सवारियों की क्षमता के जगह 150 से अधिक सवारियां बिठाया जा रहा है। और खास बात तो यह है कि इस महामारी के समय मैं भी मजदूरों से अधिक किराया 1000 से 1500 रुपए तक ले रहे हैं। यह सब कुछ खुले में हो रहा है तो सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है, कि परिवहन और पुलिस विभाग के अधिकारियों हर चौराहे और राज्य की सीमा पर चेक पोस्ट है। इसके बावजूद भी वहां से ओवरलोड यात्रियों से भरी हुई बस एवं जीप आसानी से कैसे निकल रही है। यदि निकल रही तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही। ताकि इससे स्पष्ट होता है कि बस मालिकों एवं विभागीय अधिकारी मिले हुए हैं। लेकिन इन विभागीय अधिकारियों किसी प्रकार का कोई डर और दबाव नहीं है। पर आखिर मजदूर की मजबूरी कौन जाने की मजदूरों कि अपनी और अपने परिवार रोजी रोटी के लिए यहां सब परेशानी उठाकर अपने गांव से अन्य राज्य मे पलायन के लिए जाना पड़ता है। क्योंकि यहां पर काम नहीं चलने पर मजदूर अपना जीवन जोखिम में डालकर अन्य प्रदेश में पलायन पर जा रहे हैं । बस मालिक एवं कंडक्टर मजदूरों को भेड़ बकरियों की तरह ठूस ठूस कर ले जा रहे है। पर संबंधित विभाग के अधिकारियों को गांधी छाप मिल जाता है। इसलिए इस ओर कोई ध्यान नहीं देता है और दूसरी ओर झाबुआ जिला प्रशासन दावा करता है कि जिले में मनरेगा के अंतर्गत प्रतिदिन 1 लाख मजदूरों को काम मिल रहा हैं। यदि यहां पर काम मिलता तो अपना घर बार को छोड़कर और छोटे-छोटे बच्चों को लेकर अन्य प्रदेश में क्यों जाते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि यह दवा उनके कागजों पर होगा लेकिन धरातल पर नहीं है। हां यदि कुछ काम हो भी है तो जेसीबी और ट्रैक्टर जैसे मशीनों से काम हो जाता है। बड़े बड़े तालाब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं। यह सब खेल सरपंच सचिव और विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से होता है। यह ग्रामीण मजदूर अपने आंखों देखा देखते हैं। पर उनका दुख समझने वाला कोई नहीं है। इसलिए अन्य प्रदेश में पलायन करने चले जाते हैं।
क्या है मामला-
राणापुर ब्लॉक के अंतर्गत ग्राम पंचायत ढोलियावड में चारों तरफ से प्रतिदिन बड़े ओवरलोड वाहन एवं बसों का निकलना निरंतर चलता रहता है। और आये दिन इन वाहनों से दुघटना भी हो रही है जो कि शनिवार शाम को उदयगढ़ तरफ से 150 से अधिक मजदूरों को बिठाकर एक बस गुजरता की ओर जा रही थी। उसी समय बिजली के तार नीचे होने से अचानक बस से टक्कर हो गई थी। लेकिन गनीमत से 150 मजदूर बाल बाल बचे और इस रोड पर खासतौर से विद्युत तार भी काफी नीचे है। और सुरक्षा जाली भी नहीं होने की वजह से स्थानीय लोगो को हमेशा डर बना रहता है। क्योंकि डबल मंजिल बस एवं बड़े ट्राले रात दिन निकलते रहते हैं। इसकी जानकारी विद्युत विभाग को कई बार मौखिक अवगत करवा चुके हैं। और कुछ महीनों पहले तहसीलदार महोदय क्षेत्र में निरीक्षण के दौरान भी ग्राम वासियों द्वारा बताया गया था। तहसीलदार ने तुरंत विद्युत विभाग अधिकारी मुकेश परमार जी को मोबाइल फोन के माध्यम से तार को ऊपर कर सुरक्षा जाली लगाने का निर्देश दिया था। आज तक विद्युत विभाग आंख मूंदकर बैठा है ऐसा लगता है। बड़ी दुर्घटना घटना की इंतजार मैं बैठी है, यह इंतजार की घड़ी शनिवार शाम को पूरी हो जाती। लेकिन बस के ऊपर पोटली होने के कारण बाल-बाल बज गए। इस घटना की जानकारी के लिए विद्युत विभाग अधिकारी मुकेश परमार से जानकारी चाहे गई लेकिन फोन नहीं उठाया पर घटना के कुछ समय बाद लाईन मैन आए और उसी बस को वापस खड़ी कर ऊपर चढ़कर बिजली तार को बांस की लकड़ी से बांधकर सही की गई। अब सवाल ये उठता हैं कि कि इतनी बड़ी घटना यह तो अच्छा हुआ की बस के ऊपर पोटली होने की वजह से हादसा टला गया और इतने मजदूरों की जान बच गई। हैरान करने की बात है कि सब सामने दिख रहा था इसके बावजूद भी कानूनी करवाई के बजाय लाईन मैन और ग्रामीण के प्रमुख क्या मालूम क्या समझौता किया और कानूनी कार्रवाई के बजाय समझौता कर लिया।