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मौर्य ने क्यों नहीं दिखाया पडरौना से उतरने का शौर्य, BJP की यह रणनीति बनी वजह

 

लखनऊ  उत्तर प्रदेश चुनाव से ठीक पहले योगी कैबिनेट छोड़कर समाजवादी पार्टी (सपा) खेमे में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य की उम्मीदवारी का ऐलान हो गया है। पडरौना से विधायक रहे स्वामी प्रसाद मौर्य की सीट बदल दी गई है और इस बार वह पडरौना की जगह कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से चुनाव लड़ेंगे। माना जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को बीजेपी के ‘आरपीएन दांव’ की वजह से सीट बदलनी पड़ी है। ‘पडरौना के राजा’ के बीजेपी में शामिल हो जाने के बाद स्वामी के लिए यह सीट सुरक्षित नहीं रह गई थी। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह के भगवा दल में जाने के बाद से ही स्वामी के सीट बदलने की अटकलें लग रहीं थीं। 

पुरानी हार का अब तक डर?

स्वामी प्रसाद मौर्य को बसपा के कद्दावर नेता और मंत्री के तौर पर 2009 के लोकसभा चुनाव में आरपीएन सिंह से मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के मन में परसेप्शन की जंग में कमजोर पड़ने का भी डर था। इसके अलावा उन्हें यहां विधायक के तौर पर एंटी इनकंबेंसी का सामना भी करना पड़ सकता था। 2012 में बसपा प्रत्याशी और 2017 में बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में स्वामी प्रसाद मौर्य ने पडरौना से जीत हासिल की थी। 

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पडरौना से बीजेपी के टिकट पर आरपीएन के उतरने की अटकलें 

आरपीएन सिंह पडरौना सीट से 1996, 2002 और 2007 में विधायक रहे हैं। कुर्मी-सैंथवार जाति से आने वाले कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह को राजा साहेब के नाम से भी यहां पुकारा जाता है। पडरौना मेंकुर्मी वोटों की संख्या काफी है और अपने इलाके के सजातीय वोटों पर उनकी खासी पकड़ मानी जाती है। अटकलें थीं कि पडरौना से बीजेपी आरपीएन सिंह को टिकट देकर स्वामी प्रसाद मौर्य की मुश्किलें बढ़ा सकती है। पडरौना से बीजेपी उम्मीदवार का ऐलान होने से पहले ही स्वामी प्रसाद मौर्य के सीट बदल लेने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी आरपीएन को विधानसभा चुनाव लड़वाती है या उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा।

फाजिलनगर में भी है भगवा का परचम

स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए फाजिलनगर की लड़ाई भी आसान नहीं होगी, क्योंकि पिछले दो बार से यहां बीजेपी का दबदबा रहा है।  फाजिलनगर विधानसभा से सीट से बीजेपी ने पुराने नेता और 2012 और 17 में जीते गंगा सिंह कुशवाहा के बेटे सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा को टिकट दिया है। गंगा सिंह कुशवाहा जनसंघ के जमाने से ही आरएसएस के करीब रहे। यह विधानसभा कुशवाहा बाहुल्य के रूप में जाने जानी जाती है। परिसीमन के बाद 2012 के विधानसभा सभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर गंगासिंह कुशवाहा सपा के लहर के बावजूद लगभग पांच हजार से चुनाव जीतकर विधानसभा सभा पहुंचे। इसके बाद से यह 2017 में सपा के प्रत्याशी को लगभग 42 हजार मतों से हराकर दोबारा विधानसभा पंहुचे।