सांप का जहर उतारने का अनोखा मेला : मंदिर की सीमा में आते ही सर्पदंश वाले हो जाते हैं अचेत, मंदिर में पहुंचते ही ठीक होकर लगाने लगते हैं जयकारे
श्रद्धालु राधेलाल ने बताया कि वह जालौर उत्तर प्रदेश से मंदिर के दर्शन करने के लिए आए हैं। उन्हें 4 महीने पहले सांप ने डसा था। तब माता के नाम ने बंधन बंधवाया था। बंधन उतारने दीपावली की दूज पर माता रतनगढ़ मंदिर पहुंचे हैं। कुंवर महाराज के दर्शन किए अब हम पूरी तरह से ठीक हैं। वहीं, रामवती ने बताया कि एक साल पहले घर पर काम करते समय सांप ने डस लिया था। तब माता के नाम की भभूति लगाई थी, जिस कारण जहर का असर नहीं हुआ। शनिवार को कुंवर महाराज के दर्शन किए।
15 लाख भक्त आए
रतनगढ़ माता मंदिर पर दोज पर आयोजित होने वाले लख्खी मेले में शनिवार को लाखों श्रद्धालुओं ने रतनगढ़ माता के दर्शन किए। इस दौरान उन्होंने अपनी मन्नतें पूरी की। इसमें उप्र के ललितपुर, कन्नौज, जालौन, झांसी सहित भिंड, शिवपुरी, मुरैना से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचे। बता दें कि इस बार सिंध नदी का रतनगढ़ पुल टूट जाने के कारण लोगों को 120 किमी का फेरा लगाकर रतनगढ़ मंदिर पहुंचना पड़ा। एएसपी कमल मौर्य ने बताया कि रतनगढ़ पर दौज मेला अच्छे से संपन्न हो गया। यहां करीब 15 लाख से अधिक लोगों नें माता रतनगढ़ के दर्शन किए हैं।
ऐसी है मान्यता
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार सांप या जहरीले जीव-जंतु के काट लेने पर देवी रतनगढ़ माता के नाम का बंद बांध दिए जाने से जहर का असर नहीं होता। बंद बांधने के बाद उस व्यक्ति को दीपावली की भाई दूज के दिन देवी रतनगढ़ एवं कुंवर बाबा के मंदिर में आना होता है। सर्पदंश से पीड़ित मंदिर में आते ही अपने उस पुरानी स्थिति में आ जाते हैं, जब उन्हें सांप ने डसा था। उस समय वह अचेत हो जाता है। मंदिर में मौजूद पुजारी माता के जयकारे लगाते हुए नीम की टहनी से जैसे ही श्रद्धालु पर स्पर्श करते हैं, वह पूरी तरह से स्वस्थ होकर माता का जयकारा लगाते हुए अपने घर रवाना हो जाता है।
रतनगढ़ मंदिर पीठ के महंत पंडित राजेश कटारे ने बताया कि मंदिर पर स्वभाविक रूप से जो श्रद्धालु हर साल यहां आते हैं, उतनी संख्या से ज्यादा श्रद्धालु इस बार आए हैं। उनकी आस्था और विश्वास में कोई कमी नहीं आई है। मंदिर परिक्षेत्र में ही हॉस्पिटल सहित अन्य सुविधाएं दी प्रशासन ने मुहैया कराई थी।