मकड़ाई समाचार उज्जैन। महाकाल की नगर अवंतिका उज्जैन बहुत ही प्राचीन नगर है जहां महाकाल महाकाली और कालभैरव हजारों देवी देवताओ के साथ विराजमान है। हर युग में हरि भगवान विष्णु और हर भगवान महाकाल महादेव का मिलन होता हैं।विष्णुु अवतार भगवान राम भी अपने पिता के श्राद्ध निमित्त यहां आए थे तो द्वापर में श्रीकृृष्ण गुरु से ज्ञान प्राप्त करनें सांदीपनी आश्रम आए थे तो काल कालांतर में विष्णु और शिव के मिलन की परंपरा है। इसी प्रकार चार माह तक भगवान विष्णु का शयन होता है तो सृष्टि का भार भगवान महादेव और उनके परिवार पर आ जाता है।कार्तिक प्रदोष पूर्णिमा पर भगवान महादेव विष्णु भगवान को सृष्टि का भार सौंपने जाते हैं। इसी परंपरा को उज्जैन मेें भी निभाया जाता है। रविवार की रात 11 बजे भगवान महाकाल की चांदी की पालकी में सवार होकर कोट मोेहल्ला,गुुदरी चौराहा,पाटनी बाजाार होते हुुए शहर के मध्य बने गौपाल मंदिर जायेंगे जहां निश्चित समय 12 बजे दोनो का मिलन होगा। जिसमें भगवान महाकाल की ओर गोपाल जी को सूखे मेवे,मिष्ठान फल व बिल्वपत्र की माला पहनाई जायेगी। दूसरी और गोपाल मंदिर के पुजारी महाकाल को तुलसीपत्र की माला एवं माता पार्व्रती के लिए वस्त्र,मिठाई्र सूूखेे मेवे फल आदि समर्पित करेगे। यह दृश्य बहुत अदभुत मनोहारी होता है जिसे देखनेे के लिए श्रद्धालु उमड़ते है।यह सबकेे बाद महाकाल की सवारी रात्रि 2..30 कोे महाकाल मंदिर के लिए जायेगी। सुबह सुबह की भस्म आरती में सोेमवार सुबह 4बजे एक बार फिर हरि हर का मिलन होता है। जिसमें गोपाल मंदिर के पुजारी भगवान गौपाल जी को झांझ डमरु बजाते हुए लेकर महाकाल मंदिर तक लायेगे। जहां फिर दोनोे का मिलन कराया जाता है।
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