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पेड़ पर खिले सोने के फूल खिबनी के जंगलों में

पेड़ पर खिले सोने के फूल खिबनी जंगल में

(दुर्लभ हो गया है पीला पलाश लुप्त हो जाएगा इसलिए संरक्षण मिलना जरूरी है।)

अनिल उपाध्याय
खातेगांव। खातेगांव ब्लाक में पलाश के वृक्ष और जंगल के महत्व के अध्ययन के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता योगेश मालवीया व उनके सहयोगी नौशाद खान समुदाय संपर्क के दौरान पीले पलाश वृक्ष की खोज की गई।

देवास जिले के अंतिम छोर पर स्थित खिवनी जंगल के विक्रमपुर , सागोनिया और उतावली गांव के जंगल में पीले पलाश एक वृक्ष की उपलब्धता है। पलाश वृक्ष के फूल का रंग अनुवांशिक विविधता पौधों के फूलों के वर्णकों की वजह से होता है। वैज्ञानिकों ने भी गुलाबी, सफेद और पीले पलाश के वृक्षों को वर्णित किया है। मध्य प्रदेश राज्य में पीला पलाश खरगोन और खण्डवा क्षेत्र में गिने पेड़ों की उपलब्धता है।

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देवास जिले के खातेगांव में पीला पलाश होना गर्व की बात है। पीला पलाश का वृक्ष की 10, या 12वर्ष का अनुमानित है। वर्तमान में एक ही पेड़ है लेकिन आसपास अन्य पीला पलाश होने की संभावनाएं हैं। समुदाय अंधविश्वासों और जागरूकता के अभाव में इस वृक्ष को संरक्षण नहीं मिल पाया ना ही संबंधित विभाग के पास संरक्षित करने हेतु कोई विशेष योजनाएं हैं। पीला पलास का वृक्ष फूलों से लदे वृक्ष अहसास कराते हैं मानों वन में अग्नि दहक रही हो। बुजुर्गो अनुसार चालीस पचास साल पहले छिंदवाड़ा, बालाघाट और मंडला के घने जंगलों में गिनती के गिने चुने वृक्ष दिखाई देते थे। सफेद व पीला पलाश दुर्लभ संकट प्रजाति में एक है । अन्य गुलाबी लाल पलाश के पेड़ और क्षेत्र भी तेजी से घट रहे हैं।

ऐसी स्थिति में समय रहते दुर्लभ वृक्ष प्रजातियों के संरक्षण के लिए बीज एकत्रीकरण कर ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।पीले पुष्पों वाला पलाश का वैज्ञानिक नाम ‘ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा’ है। ‘ब्यूटिया सुपरबा’ और ‘ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा’ नाम से इसकी कुछ अन्य जतियाँ भी पाई जाती हैं। पेड़ के फूलों का रंग अनुवांशिक विविधता और पौधों में फूलों का वर्णकों की वज़ह से होता है। ब्लाक शिक्षा प्रोग्राम समन्वयक योगेश मालवीया ने बताया कि इस संदर्भ में समुदाय व पंचायत और संबंधित विभाग के माध्यम से पीले पलाश वृक्ष के संरक्षण को लेकर प्रभावी कदम उठा जाए ताकि पीले पलाश की संख्या में बढ़ोत्तरी हो क्योंकि दुर्लभ पीला पलाश वृक्ष की प्रजाति है जो देवास जिले के खातेगांव ब्लाक में मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है क्योंकि पीला व सफेद पलाश वृक्ष वर्तमान में जागरूकता का अभाऊ व अंधविश्वास और जरूरत को देखते हुए पलाश के वृक्ष घटते जा रहे हैं।

दुर्लभ वृक्ष प्रजातियों के संरक्षण के लिए इसका बीज एकत्रित कर पहाड़ी पर लगाए जाने की जरूरत हैपलाश वृक्ष का चिकित्सा और स्वास्थ्य से गहरा संबंध इस वृक्ष का आदिम संस्कृति से ही बड़ा महत्व है अन्य जानकारीआयुर्वेद में पलाश वृक्ष के पाँचों अंगों- तना, जड़, फल, फूल और बीज से दवाएँ बनाने की विधियाँ दी गयी हैं। इस संदर्भ में सामाजिक कार्यकर्ता योगेश मालवीया द्वारा वन अंचलों और आदिवासी क्षेत्रों में बुजुर्गों से पलाश वृक्ष की जानकारी ली गई। इस संदर्भ में चर्चा अनुसार कहां गया कि
पलाश वृक्ष का चिकित्सा और स्वास्थ्य से गहरा संबंध इस वृक्ष का आदिम संस्कृति से ही बड़ा महत्व है अन्य जानकारीआयुर्वेद में पलाश वृक्ष के पाँचों अंगों- तना, जड़, फल, फूल और बीज से दवाएँ बनाने की विधियाँ दी गयी हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस फूल का पलाश नाम इतिहास प्रसिद्ध ‘प्लासी के युद्ध’ के कारण पड़ा है। पलाश वृक्ष को स्थानीय भाषा में खाकरा कहते है। हिन्दी में पलाश, ‘परसा’, ‘ढाक’, ‘टेसू’ , ,छूल किंशुक, केसू,जंगल की ज्वाला,हरा सागौन, तोता का पेड़, जंगल की आग ये भी इसी वृक्ष के नाम है। इसके अलावा गुजराती में ‘खाखरी’ या ‘केसुदो’, पंजाबी में ‘केशु’, बांग्ला में ‘पलाश’ या ‘पोलाशी’, तमिल में ‘परसु’ या ‘पिलासू’, उड़िया में ‘पोरासू’, मलयालम में ‘मुरक्कच्यूम’ या ‘पलसु’, तेलुगु में ‘मोदूगु’, मणिपुरी में ‘पांगोंग’, मराठी में ‘पलस’ और संस्कृत में ‘किंशुक’ नाम से जाना जाता है।
पलाश वृक्ष संरक्षण की दिशा में प्रशासन के साए पंचायत और समुदाय को आगे आना होगा।