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J&K: राज्यपाल के फैसले के बाद जानें कौन बनेगा सियासी HERO और ZERO

नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी के लिए मुश्किले खड़ी हो गई है। जम्मू कश्मीर में महागठबंधन बनने की कवायद शुरू हुई थी। लेकिन राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर इन कोशिशों को नाकाम कर दिया है। बता दें कि जम्मू कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी के बीच गठबंधन टूटने के बाद से राज्यपाल शासन लगा था। कांग्रेस नेशनल कान्फेंस और पीडीपी विधानसभा भंग करने की मांग लगातार उठा रही थीं, लेकिन चुनाव के लिए तैयार नहीं थी।  वहीं बीजेपी पीपुल्स कान्फ्रेंस अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने की कवायद में थी।

महज 40 महीने ही चल सका बीजेपी औप पीडीपी का गठबंधन 
जम्मू -कश्मीर की सियासत में बीजेपी पहली बार 2015 में 25 विधायक जीतने में सफल रही थी। पीडीपी के बाद से दूसरी सबसे बड़ी पार्टी अगर कोई थी तो वो बीजेपी ही थी। लेकिन दोनों के बीच 40 महीने ही सरकार चल सकी। दोनों पार्टियों के बीच सरकार में रहते हुए भी बेहतर तालमेल नहीं दिखे। वहीं बीजेपी 25 सीटें जीतने के बाद भी पांच साल राज्य की सत्ता में नहीं रह सकी। पार्टि के कई विधायक पहली बार चुनाव जीते थे हालांकि वो भी बतौर विधायक छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे।

बीजेपी को क्या फायदा 
राज्यपाल के फैसले से बीजेपी को ये फायदा हुआ है कि बीजेपी एक ओर जहां तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने में जुटी थी इसे के बीच एक-दूसरे के कट्टर विरोधी नेशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी व कांग्रेस मिलकर सरकार बनाने की कवायद में जुट गए थे। इनकी सरकार बनती उससे पहले ही राज्यपाल ने विधानसभा को भंग कर दिया। इस तरह से विपक्ष मिलकर भी सरकार नहीं बना पाया। अगर ये गठबंधन बनने में कामयाब हो जाता तो बीजेपी के लिए 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी मुसीबत खड़ी कर देता।

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पीडीपी को फायदा नुकसान 
पीडीपी 28 सीटें अपने नाम कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत हासिल नहीं कर पाई थी इसी वजह से उसे बीजेपी के हाथ थामना पड़ा। लेकिन 40 महीने बाद ही इस गठबंधन में अलग होना पड़ा। सत्ता से बाहर होने के बाद 6 विधायक और एक सांसद ने पार्टी से बगावत की। इसके बाद से ही पीडीपी कोशिश कर रही थी कि वो पीडीपी नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना सके।

नेशनल कान्फ्रेंस को नफा नुकसान
नेशनल कान्फ्रेंस के पास 15 विधायक थे। पार्टी प्रमुख उमर अब्दुल्ला लगातार विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर रहे थे, लेकिन चुनाव के लिए राजी नहीं थे। क्योंकि अगर  तीसरे मोर्चे की सरकार वजूद में आती है तो नेशनल कान्फ्रेंस के विधायर टूट भी सकते थे। ऐसे में विधानसभा भंग होने से विधायकों की टूट से पार्टी बच गई लेकिन पार्टी को यह नुकसान हुआ कि महागठबंधन की सरकार नहीं बन सकी।

कांग्रेस को क्या हासिल क्या खोया
जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के पास 12 विधायक थे। कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। हालांकि विधायकों के टूटने का खतरा पार्टी पर लगातार बना हुआ था। राज्यपाल के फैसले से कांग्रेस को ये नुकसान हुआ कि 2019 के चुनाव से पहले राज्य में महागठबंधन वजूद में नहीं आ पाया।