खातेगांव के एडवोकेट गिरीश यादवः किडनी-लीवर और आंखें दान की;बुधनी में हुआ अंतिम संस्कार
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अनिल उपाध्याय खातेगांव
पिछले कई बरसों से बुधनी में रह रहे एडवोकेट गिरीश यादव इस दुनिया से जाते-जाते 3 लोगों को जिंदगी दे गए। डॉक्टर्स के ब्रेन डेड घोषित करने के बाद परिजनों ने उनके अंगदान का निर्णय लिया। इसके लिए भोपाल से इंदौर तक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। यादव पिछले करीब एक हफ्ते से भोपाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे।
बेटे विनय और विपुल बताते हैं कि पिताजी हमेशा कहते थे कि जिंदगी वही जो मृत्यु के बाद भी किसी के काम आए। उनके इन्हीं शब्दों से प्रेरणा लेकर परिवार ने उनके अंगदान का निर्णय लिया। उनके लीवर किडनी और आंखें दान की गई हैं।
उम्र 73 वर्ष होने के कारण उनके हार्ट का डोनेशन नहीं हो पाया। डॉक्टर्स ने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक के कारण मरीज के बाकी अंग तो ठीक थे, लेकिन हार्ट पर्याप्त रूप से काम नहीं कर रहा था। यही कारण रहा कि हार्ट किसी के काम नहीं आ सका। शनिवार को बुधनी में उनका अंतिम संस्कार हुआ जिसमें
खातेगांव हरदा इंदौर भोपाल, होशंगाबाद शिवपुर नसरुल्लागंज सहित कई जिलों से बड़ी संख्या में उनकी अंतिम यात्रा में समाजजन इष्ट मित्र सहभागी बने। इससे पहले भोपाल के एक निजी अस्पताल में यादव की अंतिम यात्रा में अस्पताल स्टाफ ने दी विदाई।
जाते-जाते तीन जिंदगियां की रोशन
गिरीश यादव की एक किडनी बंसल अस्पताल, दूसरी किडनी एम्स भोपाल और लीवर इंदौर भेजा गया। इसके लिए शुक्रवार को भोपाल में बंसल अस्पताल से एम्स तक एक ग्रीन कॉरिडोर बना तो वहीं दूसरा ग्रीन कॉरिडोर बंसल अस्पताल से इंदौर तक बनाया गया।
उनकी दोनों किडनियों में से एक किडनी भोपाल एम्स में दी गई, जहां एक 21 वर्षीय युवती का किडनी ट्रांसप्लांट किया जाएगा। दूसरी किडनी बंसल अस्पताल में ही एक मरीज को दी गई। जबकि लीवर इंदौर में किसी मरीज को दिया गया।जबकी आंखें मेडिकल कॉलेज में दान की गई।
एडवोकेट गिरीश यादव उनका बचपन
खातेगांव में गिरीश यादव के बचपन के मित्र शिखर पट्ठा और सतीश कासलीवाल ने बताया कि गिरीश खातेगांव में ही पले-बढ़े। डिग्री लेने के बाद वे बुधनी शिफ्ट हो गए और वहीं वकालत की। उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई और समाज सेवा में खर्च किया।
परिवार ने उनके अंगदान करने का जो साहसिक निर्णय लिया है। वह निश्चित रूप से अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बनेगा,वो काबिले तारीफ है। उनके कई पारिवारिक सदस्य खातेगांव में ही रहते हैं। वे जब भी खातेगांव आते अपने दोस्तों से मिले बिना नहीं जाते थे।
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