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नमामी देवी नर्मदे: सिद्धनाथ (सिद्धक्षेत्र – नाभिकुण्ड ) 39 वीं पंचकोशी पदयात्रा 24 फरवरी से।

पंडित सुरेश चौबे

नेमावर: 24 फरवरी, 2025 सोमवार से 28 फरवरी, 2025 शुक्रवार पू.गुरुदेव रविन्द्र भारतीजी कृत नर्मदा पंचकोषी पदयात्राएं, केन्द्रीय समिति, पुनासा और शैव प्रवासी सम्प्रदाय के तत्वावधान में शिव नवरात्रि के अन्तर्गत माँ नर्मदा के नामिक्षेत्र की यह यात्रा विशेष महत्व रखती है। इसीलिए इस यात्रा में हजारों की संख्या में श्रृद्धालुजन सम्मिलित होते हैं ।

फाल्गुन कृष्ण विजया एकादशी 24 फरवरी, 2025 सोमवार प्रातः नर्मदा स्नान कर पू, ब्रह्मचारीजी के आश्रम में ओंकार ध्वजा पूजन कर यात्रा का प्रारंभ होगा । बीजलगाँव में प्रथम रात्रि विश्राम रहेगा ।

25 फरवरी, 2025 मंगलवार प्रातः बीजलघाट पर स्नानध्यान कर नाव द्वारा नर्मदा पार कर करेंगी । नाभिपट्टम् / हाण्डा – हण्डिया (दक्षिण-द्वार) में मण्डी प्रांगण, मंदिरों व धर्मशालाओं में द्वितीय रात्रि विश्राम रहेगा ।

फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी (महाशिवरात्रि) : 26 फरवरी, 2025 बुधवार प्रातः नर्मदा स्नान, ध्वजापूजन एवम ऋद्धनाथ महादेव दर्शन कर मार्ग के मंदिरों के दर्शन करते ऊचान – घाट पहुच कर रात्रि विश्राम होगा ।

27 फरवरी, 2025 गुरुवार प्रातः ऊचान- रेवा संगम स्नान, ओंकार ध्वजापूजन पश्यात ग्राम डावठा में प्रसादी लेकर चन्दनपुर (सन्दलपुर ) में दादाजी धूनीवाले आश्रम, जबरेश्वर महादेव एवं संत सिंगाजी की समाधि में चतुर्थ रात्रि विश्राम रहेगा ।

28 फरवरी, 2025 शुक्रवार प्रातः रेवाकूप / जामनेर स्नान और ओंकारध्वजा पूजन रवाना होगी । मार्ग के मंदिरों के दर्शन लाभ लेते हुए श्री दुर्गा मंदिर नेमावर से विशाल जुलूस के रूप में नगर प्रवेश, मंदिरों के दर्शन करते हुए माँ नर्मदा के तट पर ध्वजारोहण, स्नान कढ़ावा प्रसादी एवं भण्डारे के साथ यात्रा का समापन होगा ।

इस यात्रा के प्रवर्तक प्रवर्तक ब्रह्म. पू. प्रो. रवीन्द्र चौरे भारती है ।

नाभिकुंड मां नर्मदा का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है ।

ऐसा माना जाता है की मां नर्मदा के बीचो-बीच स्थित कुंड माँ नर्मदा की नाभि स्थल है । नर्मदा के दोनों तटों पर प्राचीन रिद्धनाथ एवं सिद्धनाथ मंदिर स्थित है ।

इसी वजह से यह जगह अत्यधिक महत्व का स्थान है

डॉक्टर प्रोफेसर रविंद्र भारती चौरे जो नर्मदा पंचवर्षीय यात्राओं के जनक रहे हैं उन्होंने 1975 में ॐ कारेश्वर और 1985 में महेश्वर की यात्रा शुरू करने के पश्चात ऐसा विचार किया कि नाभिकुंड की यात्रा भी शुरू की जानी चाहिए ।

डॉ चौरे ने 1987 में आपने अपने दो साथी स्व श्री बसंत अत्रे और पंडित सुरेश चौबे जो उज्जैन से थे को लेकर प्रथम यात्रा की थी ।

अपने जीवन काल में प्रोफेसर रविंद्र चौरे भारती ने नर्मदा के विभिन्न स्थानों से पच्चीस यात्रओं की शुरुआत की थी । और 2008 में पुनासा में यात्रा के दौरान ही ब्रम्हलीन हो गए । पुनासा में भक्तो ने उनकी स्मृति में मंदिर बनाया है और समिति बना कर इक्कतीस यात्राओ का संचालन कर रही है ।

आज इन यात्राओं में प्रतिवर्ष लाखों लोग चलते हैं और नर्मदा किनारे के प्राचीन मंदिरों, आश्रमों का दर्शन लाभ लेते हैं ।

नर्मदा की बड़ी परिक्रमा आदिकाल से चली आ रही है । इस नदी के दोनों तटों पर अनेक ऋषि मुनि योगियों तपस्वियों ने तपस्या की थी और इसी वजह से नर्मदा भूमि तपोभुमी रही है ।

यही कारण है कि पंचकोशी यात्रा करने से सिर्फ बाहरी आनंद ही नही एक अद्भूत आध्यात्मिक शांति भी प्राप्त होती है ।

ऐसा महसूस होता है कि जैसे नर्मदा की भूमि में मोक्ष प्राप्त कर चुके योगी और ऋषि मुनि यात्रा में पधारे यात्रियों को आशीर्वाद दे रहे है । यही वजह है कि कई लोग किसी उद्देश की प्राप्ति की लिए या उस उद्देश की पूर्ति पश्यात पंचकोशी यात्रा करते है ।

ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा किनारे इतने योगियों और तपस्वियों ने मोक्ष को प्राप्त किया है कि भूमि के नीचे उनके कमंडल आपस में टकराते हैं ।

ऐसी ही तपोभूमि हिमालय भी है पर वहां जाना हर व्यक्ति के लिए संभव नही होता है पर नर्मदा पथ सहज है ।

जब पूज्य भारती जी ने 1975 में ओंकारेश्वर से प्रथम पंचकोशी की शुरुआत की थी उस समय कोई भी व्यक्ति पांच दिवसीय यात्रा नर्मदा किनारे की नहीं करता था ।

उज्जैन की पंचकोशी यात्रा काफी पहले से चल रही है । उज्जैन में विक्रम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे भारती जी ने उज्जैन की यात्रा से प्रेरणा लेकर सनावद के मूल निवासी डॉ रविंद्र चौरे भारतीय ने यह विचार किया की बड़ी परिक्रमा तो सिर्फ वही व्यक्ति कर सकता है जो गृहस्थ आश्रम का त्याग कर चुका हो या जिम्मेदारी से मुक्त हो गया हो ।

यह आम जन के लिए यह संभव नहीं हो पता है । तो क्यों ना एक ऐसी व्यवस्था दी जाए जिससे व्यक्ति अपनी पारिवारिक सामाजिक जिम्मेदारियां को निभाने के साथ सिर्फ पांच दिवस सन्यास आश्रम को नजदीक से देख सके और अद्भुत आनंद की अनुभूति ले सके ।

पांच दिवस जिसमें प्रतिदिन सुबह नर्मदा स्नान हो ओंकार ध्वज पूजन हो आरती हो भजन कीर्तन हो, भंडारों का प्रसाद हो और मंदिरों के प्रांगणों में विश्राम हो ।

पांच दिवस अपने आप को मां नर्मदा को समर्पित कर दे । जाहि विधि रखे माँ नर्मदा ताहि विधि रहिए ।

 

आज इन यात्राओ में शिक्षाविद, लेखक, साहित्यकार, डॉक्टर, इंजीनियर और समाज के प्रतिष्ठित लोग भी सम्मिलित हो रहे है और पांच दिवस आमजन के जैसे व्यतीत कर अपने आपको धन्य समझ रहे है ।

पूज्य गुरुदेव डॉ. चौरे ने इन स्थानों से शुरू की थी यात्राएं

■ नर्मदेश्वर पूर्णश्वर नर्मदा नगर पुनासा (जिला खंडवा)

■ सीतामाता जयंती माता सीतापीपरी बागली (देवास)

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■ ममलेश्वर कुबेर भंडारी ओंकारेश्वर (जिला खंडवा)

■ ओकार मांधाता ओकारेश्वर (जिला खंडवा)

■ वाराहेश्वर बड़ा बड़ौदा बाकानेर (जिला धार)

■ कोटेश्वर महादेव राजघाट (जिला बड़वानी)

■ श्री नवग्रह खरगोन (जिला खरगोन)

■ नारद पांडव ढाणा (जिला होशंगाबाद)

■ श्री मां वागेश्वरी सगुर भगुर (जिला खरगोन)

■ नर्मदापुरम सेठानीवाट (जिला होशंगाबाद)

■ विष्णुपुर शिवपुर भीलाडियां (जिला होशंगाबाद)

■ सूरजकुंड बांद्राभान (जिलाहोशंगाबाद)

■ मनोकामनेश्वर चिचली (जिला खरगोन)

■ वेदेश्वरी कुंडेश्वरी दयालपुरा (जिला खरगोन)

■ सिद्धनाथ नाभि कुंड नेमावर (जिला देवास)

■ रिद्धनाध हंडिया (जिला हरदा)

■ कवेश्वर नर्मदेश्वर रणगांव (जिला खंडवा)

■ बाला मर्दाना कतरगांव (जिला खरगोन)

■ माहिष्मती महेश्वर (जिला खरगोन)

■ श्रीमार्कडेय गालव पिपरिया (जिला होशंगाबाद)

■ शाली वाहन नावड़ाटोड (जिला खरगोन)

■ गोदबलेश्वर गोदागांव (जिला हरदा)

■ मां विध्यवासिनी सलकनपुर (जिला सीहोर)

■ बिल्वामृतेश्वर धरमपुरी (धार)

■ शूलपाणेश्वर वासला राज पीपला (गुजरात)

 

नेमावर की यात्रा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु चल रहे हैं।

इस यात्रा में प्रशासन अपनी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । लोगों के ठहरने, साफ सफाई, प्रकाश, पेयजल, सुरक्षा, चिकित्सा आदि सभी व्यवस्था प्रशासन द्वारा संभाली जाती है ।

धर्मप्राण जनता और मार्ग में पढ़ने वाले मंदिरों और आश्रमो द्वारा चाय पानी स्वल्पाहार और भोजन प्रसादी का आयोजन किया जाता हैं ।

 

भजन कीर्तन के लिए पंडाल और ध्वनि विस्तारकों की व्यवस्था भी की जारी है ।

विगत 39 वर्षों से यात्रा नियमित रूप से चल रही है । 

यात्रा संरक्षक पं. सुरेश चौबे (उज्जैन) ने बताया कि समस्त यात्रीगण अपने साथ ओढ़ने-विछाने-पहनने-खाने की व्यवस्था के साथ दिनांक 23 फरवरी, 2025 रविवार की संध्या तक नेमावर पहुँच कर धर्मशालाओं में पहुँच जाए एवं दोनों तटों पर नर्मदा पार करते समय विशेष सावधानी बरतें.

इस यात्रा के संयोजन एवं संचालन पंचक्रोषी पदयात्रा समिति, नेमावर के रामदीन / बलराम सेवलिया ( डावठा), पं.अवंतिकाप्रसादजी तिवारी एवं भक्तगण है ।