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मासूम बालिका के साथ दुष्कर्म एवं हत्या: न्यायालय ने महज 88 दिनों में सुनाई फांसी की सजा : न्यायाधीश ने पीड़िता के संबंध में सुनाई मार्मिक पंक्तियाँ 

के के यदुवंशी

सिवनी मालवा। 3 जनवरी को 6 वर्षीय नाबालिक से दुष्कर्म के बाद हत्या करने के मामले में शुक्रवार को प्रथम अपर सत्र न्यायालय तबस्सुम खान, द्वारा सनसनीखेज दुष्कर्म एवं हत्या के प्रकरण में आरोपी अजय को दुष्कर्म एवं हत्या के अपराध के लिए धारा 137(2), 64, 65(2), 103(1), 66 बीएनएस 5 (एम), 6 पॉक्सों में मृत्युदंड एवं 3000 रूपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया गया एवं पीडिता के माता-पिता को चार लाख रूपये का प्रतिकर स्वरूप दिये जाने का आदेश पारित किया गया।

 

जिला अभियोजन अधिकारी राजकुमार नेमा ने बताया कि फरियादी द्वारा थाने पहुँच शिकायत दर्ज कराई थी की दिनांक 02.01.2025 के करीब 09 बजे कोई उसकी 6 वर्षीय बच्ची का अपहरण कर ले गया मैंने अपनी बच्ची को पूरा गांव व आसपास में तलाश किया नहीं मिली। मुझे शंका है कि अजय ही मेरी बच्ची को उठाकर ले गया है। विवेचना के दौरान आरोपी अजय को अभिरक्षा में लेकर पूछताछ की तो उसने अपने कथन में स्वीकार किया कि वह पीडिता को उसके घर से उठाकर ले गया था और झाडियों में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया जब वह चिल्लाई तो उसका मुंह दबाकर उसकी हत्या कर दी और शव को झाडियों में फेंक दिया।

 

विवेचना में आरोपी अजय के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य होने से अंतिम प्रतिवेदन धारा 137(2), 64, 65(2), 103(1), 66, बीएनएस, 5 (एम), 6 पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत माननीय न्यायालय में पेश किया गया। विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा 39 साक्षी परीक्षित कराये गये सभी ने घटना का समर्थन किया। अभियोजन ने कुल 96 दस्तावेज एवं 33 आर्टिकल भी प्रदर्शित कराये एवं सकारात्मक डीएनए रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। शासन की ओर से पक्ष विशेष लोक अभियोजक मनोज जाट द्वारा रखा गया। न्यायालय ने अभियोजन द्वारा प्रस्तुत मौखिक, दस्तावेजी 2/4 एवं सकारात्मक डीएनए रिपोर्ट के आधार पर आरोपी को दोषी पाया।

तबस्सुम खान, विशेष न्यायाधीश ने अपने निर्णय में पीडिता के संबंध में निम्न पंक्तियाँ लेख की है:

2 से 3 जनवरी 2025 की थी वो दरमियानी रात,

जब कोई नहीं था मेरे साथ।

इठलाती, नाचती छः साल की परी थी,

मैं अपने मम्मी-पापा की लाड़ली थी।

सुला दिया था उस रात बड़े प्यार से माँ ने मुझे घर पर,

पता नहीं था नींद में मुझे ले जाएगा।

वो” मौत का साया बनकर। 

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जब नींद से जागी, तो बहुत अकेली और डरी थी मैं, 

सिसकियों ले लेकर मम्मी-पापा को याद बहुत करी थी मैं। 

न जाने क्या-क्या किया मेरे साथ, 

मैं चीखती थी, चिल्लाती थी, लेकिन किसी ने न सुनी मेरी आवाज। 

थी गुडियों से खेलने की उम्र मेरी, पर उसने मुझे खिलोनी बना दिया।

“वो” भी तो था तीन बच्चो का पिता,

फिर मुझे क्यों किया अपनो से जुदा। 

खेल खेलकर मुझे तोड़ दिया, फिर मेरा मुंह दबाकर, मरता हुआ झाडियों में छोड़ दिया। 

हॉ मैं हू निर्भया, हॉ फिर एक निर्भया, एक छोटा सा प्रश्न उठा रही हूँ:-

जो नारी का अपमान करे, क्या वो मर्द हो सकता हैं क्या जो इंसाफ निर्भया को मिला, वह मुझे मिल सकता हैं

 

मृतक पीडिता के संबंध में कवि की यह पंक्तियां अभियोजन मनोज जाट, एडीपीओ/विशेष लोक अभियोजक द्वारा अंतिम बहस में प्रस्तुत की थी।

वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी। देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी।। जिसने जीवन के केवल, पांच बसंत ही देखे थे। उसपे ये अन्याय हुआ, ये कैसे विधि के लेखे थे। एक छः साल की बच्ची पे, ये कैसा अत्याचार हुआ। एक बच्ची को बचा सके ना, कैसा मुल्क लाचार हुआ। उस बच्ची पे जुल्म हुआ, वो कितनी रोई होगी। मेरा कलेजा फट जाता है, तो माँ कैसे सोयी होगी। जिस मासूम को देख के मन में, प्यार उमड़ के आता है। देख उसी को मन में कुछ के, हैवान उत्तर क्यों आता है। कपड़ों के कारण होते रेप, जो कहे उन्हें बतलाऊ मैं। आखिर छः साल की बच्ची को, साड़ी कैसे पहनाऊँ मैं। अगर अब भी हम ना सुधरे तो, एक दिन ऐसा आएगा। इस देश को बेटी देने में, भगवान भी जब घबराएगा।।”