होली पर्व का सनातन हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। रंग और हर्ष और उल्लास के त्यौहार का पौराणिक महत्व भी बहुत अधिक है।
मकड़ाई एक्सप्रेस 24 धर्म अध्यात्म। हमारे त्यौहार संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। फागुन मास की पूर्णिमा पर होलिका दहन का आयोजन होता है और इसके अगले दिन पूरे देश में रंगों के महोत्सव धुलेंदी पर्व को हर्षोल्लास से मनाया जाता है। पूरे देश में हर राज्य में यह त्यौहार अपने अंदाज में मनाया जाता है। भारत में कई शहरों की होली विश्व प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं।
सबसे पहली होलिका उज्जैन में जलती है
देश में सबसे पहले होलिका दहन का आयोजन उज्जैन के महाकाल मंदिर में होता है और इसके बाद बाबा महाकाल अपने भक्तों के साथ होली खेलते है।
उज्जैन के महाकाल को 12 ज्योतिर्लिंगों में विशेष स्थान प्राप्त है। मानता है कि महाकाल के आंगन में होली पर प्रबंध पूजा करने से संकटों का नाश होता है। विशेष बात यह है कि महाकाल मंदिर में शाम की आरती के बाद देश में सबसे पहले होलिका दहन होता है। खास बात यह भी है कि होलिका दहन के लिए महाकाल मंदिर में किसी विशेष मुहूर्त को देखने की जरूरत नहीं होती। इसके पीछे यह मान्यता है कि भगवान महाकाल इस पूरी सृष्टि के राजा हैं और इसीलिए यहां होली दहन सबसे पहले किया जाता है।
राजा महाकाल खेलते हैं प्रजा के संग होली
होलिका दहन के बाद राजा महाकाल के दरबार में भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों के साथ होली खेलते हैं । भक्त अपने आराध्य को रंग और गुलाल अर्पित करते हैं । यह नजारा देखने में बहुत अद्भुत होता है और इस दिन देश भर से भक्त महाकाल पहुंचते हैं ।
दुख दरिद्रता आकाल मृत्यु के दुर्योग कटते है।
ऐसी मान्यता है कि महाकाल के दरबार में रंग खेलने से जीवन में भी रंगों का संचार होता है। भक्तों का विश्वास है कि महाकाल के आंगन में होली के त्योहार पर विशेष तरह की पूजा-अर्चना करने से दुख, दरिद्रता और अकाल मृत्यु के संकट का नाश होता है।