भूपेश सरकार में राज्यपाल के अधिकारों की अवमानना
मकड़ाई समाचार विजया पाठक छत्तीसगढ़ । राज्यपाल अनुसुईया उइके राज्यपाल होने के साथ-साथ आदिवासी वर्ग और कमजोर वर्ग की आवाज भी हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन के प्रारंभ से ही आदिवासियों के हकों और हितों की लड़ाई लड़ी है। यह लड़ाई वे आज भी जारी रखे हुए हैं। राज्यपाल जैसे प्रतिष्ठित पद पर आसीन होने के बाद भी आदिवासी हितों को लेकर उनकी प्रदेश की भूपेश सरकार से तनातनी जगजाहिर है। ताजा मामला आईएएस सोनमणि बोरा को लेकर सामने आ रहा है। कहा जा रहा है मरवाही नगर पंचायत गठन समेत कई मुद्दों पर राजभवन और सरकार में तनातनी की गाज आईएएस सोनमणि बोरा पर गिर गई है। सोनमणि भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा रहे हैं। इस महीने या अगले महीने तक उनकी पोस्टिंग का आदेश आ जाने की संभावना है। इसी बीच राज्य सरकार ने राज्यपाल के सचिव के पद का अमृत खलको को चार्ज दे दिया है। यह चार्ज राज्यपाल की अनुशंसा के बगैर दिया गया है। जबकि इससे पहले इस पद पर नियुक्ति के पहले राज्यपाल की राय ली जाती थी। इसे सरकार की राज्यपाल से नाराजगी के तौर पर भी देखा जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि राज्य सरकार भवन एवं कर्मकार मंडल के फंड का यूज करना चाहती थी। इस पर सोनमणि बोरा ने आपत्ति लगाई थी। यह भी कहा जा रहा है कि राज्य सरकार ने इसी कारण सोनमणि को राजभवन से हटाया है। श्रम सचिव के नाते कोविड-19 से प्रभावित श्रमिकों को दूसरे राज्यों में लाने और भेजने की व्यवस्था के लिए सोनमणि नोडल अधिकारी बनाये गए थे। छत्तीसगढ़ की व्यवस्था को मजदूरों और आम लोगों ने सराहा था। कहा जाता है राज्यपाल के सचिव राजभवन और सरकार के बीच सेतु का काम करते हैं। कहीं उॅच-नीच होने पर नाराजगी का शिकार सचिव को ही होना पड़ता है। इस मामले में भी यही हुआ है।
आदिवासी बाहुल्य प्रदेश की राज्यपाल अनुसुईया उइके स्वयं आदिवासी हैं और प्रदेश के आदिवासियों और कमजोर वर्ग की आवाज बनकर प्रदेश सरकार तक आवाज पहॅुचाती हैं। माननीया नुसुईया उइके संविधान की ज्ञाता हैं। वे राज्यपाल के अधिकार और कर्तव्यों की जानकारी रखती हैं। सरकार से उनकी तनातनी संविधान के दायरे में होती है। लेकिन राज्य सरकार सत्ता का रौब जमाकर गैर कानूनी आदेशों को भी जनता पर थोपना चाहती है। राज्यपाल की सरकार से यही तनातनी है।
भूपेश सरकार को राज्यपाल अनुसुईया उइके के अनुभव और ज्ञान का लाभ लेना चाहिए न कि उनके अधिकारों की अवमानना करना चाहिए। वे संविधान की ज्ञाता हैं। सरकार चाहे तो उनके अनुभवों का लाभ लेकर प्रदेश के लिए बेहतर काम कर सकती है।
गौरतलब है कि सुश्री अनुसुइया उइके राजनीति में आने से पहले 1982 में वह शासकीय महाविद्यालय तामिया में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत थीं। 1985 में राजनीति की शुरुआत की। अपने तीन दशक से भी अधिक लंबे राजनीतिक करियर में उन्होंने मध्यप्रदेश सरकार के कई अहम पदों पर काम किया है। 1985 में पहली बार उन्हें मध्यप्रदेश विधानसभा सदस्य के रूप में चुना गया था। इसके बाद 1988 और 1989 के बीच वह महिला एवं बाल विकास मंत्री बनीं। साल 2000 में वह राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य बनीं और पांच साल तक सदस्य बनी रहीं। जनवरी 2006 में वह मध्यप्रदेश आदिवासी आयोग की अध्यक्ष बनीं। उसके बाद वे मध्यप्रदेश से राज्यसभा सदस्य भी रहीं। अनुसुइया उइके ने महिलाओं, विशेषकर आदिवासी महिलाओं को न्याय दिलाने और उनकी समस्याओं के समाधान में विशेष रूचि ली। आदिवासी महिलाओं में अधिकारों के प्रति जागरूकता लाने का काम किया। सुश्री उइके छात्र जीवन से ही सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेती रही हैं। वे इसके पूर्व राष्ट्रीय जनजातीय आयोग की उपाध्यक्ष रही हैं। उन्हें दलित समाज के उत्थान हेतु किये गए विशिष्ट कार्यों के लिए 06 दिसंबर 1990 को डॉ. भीमराव अंबेडकर फैलोशिप से सम्मानित किया गया था। इसके साथ ही 21 सितंबर 1989 को उत्कृष्ट कार्य करने के लिए तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष माननीय बलराम जाखड़ जी द्वारा जागरूक विधायक के रूप में सम्मानित किया गया था। उनके द्वारा आदिवासी महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए 22 राज्यों के 80 जिलों का भ्रमण करने के बाद प्रतिवेदन तैयार किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय अटलबिहारी वाजपेयी जी को प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया था। ज्ञातव्य है कि वे विभिन्न संसदीय समिति, हिन्दी सलाहकार समिति, सलाहकार समिति महिला एवं बाल विकास भारत सरकार, रेलवे सलाहकार समिति, टेलीफोन एडवाइजरी कमेटी, अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की कल्याण संबंधी समिति तथा अन्य समितियों की सदस्य रही हैं और अपने पदीय दायित्वों का बखूबी निर्वहन किया है।
राज्यपाल ने लौटा दी थी विशेष सत्र बुलाने की फाईल
केंद्रीय कृषि कानूनों में संशोधन के लिए छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रस्तावित विशेष सत्र की फाइल राज्यपाल ने लौटा दी थी है। सरकार ने 27 और 28 अक्टूबर को दो दिवसीय सत्र बुलाने का प्रस्ताव भेजा था। फाइल लौटाते हुए राज्यपाल अनुसुईया उइके ने सरकार से पूछा है कि ऐसी कौन सी परिस्थिति आ गई कि विशेष सत्र बुलाने की जरूरत पड़ गई है। शाम ढलने से पहले सरकार ने राज्यपाल के सवालों का जवाब देते हुए फाइल फिर से राजभवन भेज दी और बताया है कि केंद्रीय कानूनों से राज्य के किसानों के हितों की रक्षा और आशंकाओं को दूर करने के लिए यह सत्र जरूरी है। इस बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि पूर्ण बहुमत की सरकार को विधानसभा का सत्र बुलाने से राज्यपाल नहीं रोक सकतीं। अन्तः राज्यपाल और सरकार के बीच में सहमति हो गई। 27 एवं 28 अक्टूबर को विधानसभा सत्र बुलाने की अनुमति राज्यपाल महोदय ने दे दी।