देश में सावन माह का उत्साह जारी है और सावन सोमवार के मौके पर हम आपके के लिए निमाड़ में नर्मदा किनारे स्थित एक ऐसे शिवलिंग की जानकारी लेकर आए हैं जिसे लेकर कहा जाता है कि वो हजार साल पुराना है और इसका वर्णन शिवपुराण और स्कंध पुराण में इसका वर्णन मिलता है। हालांकि, प्रशासनिक अनदेखी के चलते इसके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है। हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं वो धार जिले के मनावर तहसील के अंतर्गत आने वाले गांगली की जहां यहां आज से नहीं बल्कि हजारों सालों से भगवान नंदकेश्वर का शिवलिंग स्थापित है।
इस पवित्र स्थान की एक और खास बात है यहां एक नर्मदा किनारे एक गंगा कुंड भी बना हुआ है जिसमें से निरंतर जल प्रवाहित रहता है जो बहकर सीधे मां नर्मदा के आंचल में समा जाता है। यहीं होता है मां गंगा और नर्मदा का मिलन। जिस जगह यह मिलन होता है वहीं मां नर्मदा की गोद में एक शिवलिंग स्थापित है जो नर्मदा का जलस्तर कम होने पर ही नजर आता है। इसी शिवलिंग को नंदकेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। मान्यता है कि यहां बने गंगा कुंड की वजह से इस स्थान का नाम गांगली हुआ था।
शिवपुराण और स्कंध पुराण के रेवाखंड में मिलता है वर्णन
हम जिस पवित्र और प्राचीन स्थान गांगली की बात कर रहे हैं उसका जिक्र पुराणों में भी मिलता है। गांगली का वर्णन स्कंध पुराण के रेवाखंड और शिवपुराण में मिलता है। साथ ही शिवपुराण के पेज नंबर 521 से नंदिकेश्वर महादेव और गंगा कुंड का भी वर्णन मिलता है। हालांकि, सालों पहले आई बाढ़ के बाद गांगली को पुनर्वास स्थल में स्थानांतरित कर दिया गया और इस जगह को अब साततलाई के नाम से जाना जाता है। इसी के साथ गांगली में स्थित नंदिकेश्वर शिवलिंग को छाया स्वरूप में साततलाई में स्थापित किया गया।
ऐसे हुआ था अवतरण
भगवान नंदिकेश्वर को लेकर एक प्राचीन कथा का वर्णन मिलता है जिसके अनुसार प्राचीनकाल में ऋषिका नाम की एक बाल विधवा ने गांगली में नर्मदा किनारे शिव के पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा-अर्चना शुरू की। लगातार पूजा और संयमित जीवन से उसका मुख दैदिव्यमान हो गया। उसे देखकर एक राक्षस उस पर मोहित हो गया और उस बाल विधवा को आकर्षित करने की कोशिश करने लगा। ऐसा करने में जब वो असफल रहा तो राक्षस ने ऋषिका पर हमला किया। ऐसे में भगवान की भक्ति में लीन ऋषिका ने भगवान शिव से मदद की गुहार लगाई।
भक्त की गुहार सुन भगवान शिव प्रगट हुए और राक्षस का वध कर ऋषिका की रक्षा की। इसके बाद भोलेनाथ ने ऋषिका से वर मांगने के लिए कहा। ऐसे में ऋषिका ने कहा कि भगवान के दर्शन से ही उसकी मनोकामनाएं पूरी हो गई। लेकिन शिव के आग्रह पर ऋषिका ने भगवान से वहीं लिंग रूप में स्थापित होने का वर मांग लिया। भगवान भोले उसे तथास्तु कहकर लिंग रूप में उसी स्थान पर विराजमान हो गए और तब से इस शिवलिंग को नंदिकेश्वर शिव के रूप में पूजा जाता है।
यह शिवलिंग आज भी नर्मदा के बीच में स्थित है जो बैकवॉटर की वजह से अब दृष्टिगत नहीं होता लेकिन उनके छाया स्वरूप एक शिवलिंग ऊंची पहाड़ी पर स्थापित किया गया। हालांकि, लगातार नर्मदा के बढ़ते जलस्तर के कारण इस शिवलिंग को कुछ सालों पहले साततलाई में स्थानांतरित किया गया है। इस मंदिर की पूजा और देखरेख दशकों से गांव में ही रहने वाला गायवक परिवार करता आ रहा है।
ऐसे पहुंच सकते हैं इस स्थान पर
गांगली गांव निमाड़ में धार जिले की मनावर तहसील के अंतर्गत आता है। इंदौर से यह स्थान लगभग 160 किमी दूर स्थित है वहीं मनावर और बड़वानी दोनों ही जगहों से 25-30 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां आप बस और अपने निजी वाहन से पहुंच सकते हैं। इस प्राचीन और धार्मिक स्थल के दर्शन हेतु पहले इंदौर से मनावर तक सीधे बस या निजी वाहन से जाया जा सकता है। मनावर से करीब आधे घंटे के सफर के बाद आप गांगली पहुंच सकते हैं।
यहां पहुंचने के लिए मनावर दो रास्ते हैं जिनमें से एक रास्ता सिंघना होते हुए गणपुर होते हुए साततलाई(गांगली) पहुंचा जा सकता है जो गणपुर से महज 5-7 किमी दूर है। वहीं एक रास्ता करोली, सेमल्दा होते हुए साततलाई पहुंचता है। अगर आप चाहें तो इस जगह पर बड़वानी से भी आ सकते हैं और इसके लिए आपको बड़वानी से बस या निजी वाहन मिल जाते हैं।