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इस वर्ष पड़ रहा पांच महीने का चातुर्मास, इन चीजों के दान का विशेष महत्व

भोपाल। चातुर्मास इस बार पांच महीने का पड़ रहा है। हिंदू धर्म में एक जुलाई से चातुर्मास शुरू होगा, 25 नवंबर तक देवशयन करेंगे। 26 नवंबर को इसकी समाप्ति होगी। 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक क्वांर के महीने में अधिकमास भी पड़ रहा है। इसके कारण चातुर्मास के दिनों में वृद्धि हो गई है। 4 महीने के स्थान पर 4 महीने 25 दिन का चतुर्मास होगा। गुरुजी रामजीवन दुबे ने बताया कि देव पंचांग के अनुसार हर 32 मास, 16 दिन और 4 घंटे बीतने पर अधिकमास पड़ता है। यह संयोग 32 माह बाद बना है। इससे पहले वर्ष 2017 में अधिकमास पड़ा था। जैन धर्म में 4 व 5 जुलाई से चातर्मास शुरू होगा। कोरोना संकट के बीच इस बार अभी जो संकेत मिले हैं, उसके अनुसार शहर के चौक जैन धर्मशाला में ही चातुर्मास की तैयारियां चल रही हैं।

एक ही स्थान पर होगा चातुर्मास

जैन समाज में चातुर्मास का विशेष महत्व है। इस अवधि में समाज के संत, मुनि, साध्वी एक निश्चित स्थान पर विराजमान होकर चातुर्मास करते हैं। पिछले वर्ष राजधानी में तीन जैन मंदिर चौक स्थित जैन धर्मशाला, अशोका गार्डन व शंकराचार्य नगर जैन मंदिर में जैन मुनियों, आचार्यों ने चातुर्मास की साधना की थी। इस बार चौक जैन धर्मशाला में ही चातुर्मास होगा। यहां मुनि कुंथू सागर महाराज द्वारा चातुर्मास की साधना करने का संकेत श्री दिगंबर जैन पंचायत कमेटी ट्रस्ट को मिल चुका है। वहीं मुनि समता सागर महाराज के आने के संकेत थे, लेकिन वे विदिशा के लिए विहार कर गए हैं। आयोजन की तैयारियों को लेकर श्री दिगंबर जैन मंदिर कमेटी ट्रस्ट तैयारियों में जुटा है। इस बार चातुर्मास में नियमित (लंबे समय तक) प्रवचन नहीं होंगे। 15 से 20 भक्तों की मौजूदगी में धर्म और दैनिक दिनचर्या पर चर्चा होगी। जबकि हर वर्ष चातुर्मास में मुनिजन भक्तों को प्रतिदिन अलग-अलग विषयों पर ज्ञान, संस्कारों की शिक्षा पर लंबे समय तक प्रवचन देते थे। मुनि महाराज के प्रवचन ऑनलाइन सोशल मीडिया के जरिए प्रसारित किए जाएंगे।

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ध्यान, साधना, दान का विशेष महत्व

हिंदू धर्म में व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के चार महीने को चातुर्मास कहा गया है। ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए यह माह महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है। चातुर्मास चार महीने की अवधि का होता है। जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। इस बार अधिक मास भी पड़ रहा है, जिसमें दान का विशेष महत्व बताया गया है। इस मास में गुड़, सरसों, मालपुआ और स्वर्ण के साथ दान करने से पृथ्वी दान का फल प्राप्त होता है।

अधिकमास में दान करना श्रेष्ठ फलदायी

ज्योतिष मठ संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद गौतम ने बताया कि अधिकमास में तिल, गेहूं, सोने का दान तथा संध्योपासना कर्म व पर्व का होम ग्रहण का जप, अग्निहोत्र देवता पूजन, अतिथि पूजन अधिकमास में ग्राहृय है। श्रीमद् भागवत कथा मोक्षदायी है। इस मास में 33 देवताओं का स्मरण, पूजन करने का विधान होता है। इसके अलावा अधिमास में तीर्थयात्रा, देवप्रतिष्ठा, तालाब, बगीचा, यज्ञोपवीत आदि कर्म निष्क्रिय हो जाते हैं। राज्याभिषेक, अन्नप्राशन, गृह आरंभ, गृहप्रवेश इत्यादि कर्म नहीं करना चाहिए।