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कफ और वात में लाभदायक है यह मुद्रा

मकड़ाई समाचार इंदौर। कोरोना संक्रमण के इस दौर में श्वसन तंत्र को बेहतर रखना चुनौतीपूर्ण है। योग के अंग आसन, प्राणायाम, ध्यान व मुद्रा स्वास्थ्यवर्धक हैं। मुद्रा का अभ्यास बालक से लेकर वृध्द तक सभी कर सकते हैं। हस्त मुद्रा पूर्णत: विज्ञान है।

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योग विशेषज्ञ लता गौड़ के अनुसार मानव शरीर पंच तत्वों से बना है। अग्नि तत्व में वृध्दि कर कफ दोष पर विजय प्राप्त की जा सकती है। ऐसे में लिंग मुद्रा अग्नि तत्व को बढ़ाने में सहायक होती है। इसके अभ्यास के लिए ध्यानात्मक आसन जैसे सिध्दासन, पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं। आंखों को धीरे से बंद कर मन को श्वास-प्रश्वास पर केंद्रित करें। इससे प्राण के प्रवाह के साथ सामंजस्य होगा। हाथों को अनाहत (ह्दय) चक्र के समीप नमस्कार मुद्रा में लाएं। अब अंगुलियों को एक-दूसरे में इस प्रकार फंसा लें। जिससे बाएं हाथ का अंगूठा, दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली व अंगूठे से चारों ओर से घिरा रहे। अंगूठा अग्नि तत्व का परिचायक है।

लता के मुताबिक अब बाएं हाथ के अंगूठे को सीधा खड़ा कर लें। इस मुद्रा में 30 मिनट रहें। 30 मिनट के स्थान पर दिन में दो बार 15-15 मिनट भी मुद्रा का अभ्यास कर सकते हैं। कफ की प्रकृति वाले लोग इस मुद्रा का अभ्यास अधिकतम 45 मिनट भी कर सकते हैं, लेकिन पित्त प्रकृति वाले इसका अभ्यास न करें। कफ के साथ यह वात प्रकृति में भी लाभदायक है। इस मुद्रा से कफ का नाश होता है, फेफड़ों को शक्ति मिलती है तथा श्वसन तंत्र के साथ पाचन तंत्र में भी सुधार आता है। अग्नि तत्व कैलोरी बर्न करके अतिरिक्त चर्बी घटाता है। परिणामस्वरूप वजन कम होता है। अस्थमा, ब्रोन्काइटीस में भी यह लाभदायक है। शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। मुद्रा के अभ्यास के समय अंगुलियों में अंगूठियां नहीं होना चाहिए। अंगुलियों को बलपूर्वक न फंसाएं। बुखार, पित्त व उच्च रक्तचाप की समस्या के दौरान यह मुद्रा न बनाएं।