मकड़ाई समाचार हरदा। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केंद्र, हरदा जिले के समस्त किसान भाईयों से अपील की है कि गेहूँ कटने के बाद बचे हुए फसल के अवशेषों (नरवाई) को खेतों में न जलायें, क्योंकि यह खेती के लिये आत्मघाती कदम है। जिससे जन-धन को नुकसान होने की संभावना बनी रहती है व मित्र कीट भी नष्ट हो जाते हैं। नरवाई में आग लगाने से भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है। भूमि में उपस्थित सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते है, सूक्ष्म जीवों के नष्ट होने के फलस्वरूप जैविक खाद का निर्माण बंद हो जाता है। भूमि की ऊपरी परत में ही पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, आग लगने के कारण पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते है। नरवाई जलाने से भूमि कठोर हो जाती है, जिसके कारण भूमि की जल धारण क्षमता कम हो जाती है और फसलें सूख जाती है। खेत की सीमा पर लगे पेड़ पौधे आदि जलकर नष्ट हो जाते हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्णय अनुसार नरवाई जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है, वातावरण के तापमान में वृद्धि होती है, जिससे धरती गर्म हो जाती है। कार्बन-नाईट्रोजन अनुपात कम हो जाता है। केंचुए नष्ट हो जाते हैं, जिस कारण भूमि की उर्वरक क्षमता खत्म हो जाती है।
समस्त किसानों से अपील की गई है कि नरवाई न जलाते हुए, कृषि यंत्र कंबाईन हार्वेस्ट के साथ स्ट्रा रीपर अथवा भूसा बनाने वाली मशीन से खेतों में भूसा बनवायें व खेतों में भूसा बनवाने के बाद रोटावेटर से जुताई अथवा देशी पाटा चलाकर कल्टीवेटर से जुताई कर सुपर हेप्पीसीडर तथा जीरोटिलेज सीडडि्ल द्वारा खड़ी नरवाई में सूखे में मूंग की बुवाई कर सकते हैं।
खेतों में खड़ी मूंग की फसल में बची नरवाई से खाद बनाने के लिये वेस्ट डिकम्पोजर का उपयोग कर सकते हैं जिससे आपके खेत की नरवाई खाद के रूप में जल्दी से जल्दी परिवर्तित होगी। वेस्ट डिकम्पोजर तैयार करने के लिये उसका मदर कल्चर (जामन) कृषि विज्ञान केंद्र, हरदा से प्राप्त किया जा सकता हैं।