भूमिगत जलस्रोत बताने के लिए इन्हें केवल व्ही आकर की लकड़ी की जरूरत होती है।
Harda: एक सामान्य सी बबूल की लकड़ी जमीन के अंदर पानी का पता बता सकती है इसका सामान्य जवाब होगा नही लेकिन टिमरनी विकासखंड के ग्राम भादूगांव के एक किसान बबूल की लकड़ी से कई जलस्त्रोतो का पता लगा चुके हैं।
, वे कहते है कि वे इसमें आज तक असफल नहीं हुए। कुदरत ने कुछ लोगों को दुनिया में विलक्षण एवं आश्चर्यजनक हुनर दिए, भादुगाव में खेती किसानी करने वाले गौरीशंकर तिवारी को अब यह भी याद नहीं की वे कितने जलस्त्रोतों का पता लगा चुके हैं। वे कहते हैं की लोग अक्सर उनसे कृषि भूमि, भवन, प्लॉट आदि पर बोर कराने से पहले उनसे पानी का पता लगाने को कहते हैं।
और वे अंग्रजी वर्णमाला के अक्षर व्ही आकर की बबूल की लकड़ी से भूमिगत जलस्रोत का पता लगाते हैं।
अपनी कार्य पद्धति के बारे में श्री तिवारी बताते है की व्ही आकर की लकड़ी को दोनो हाथो से पकड़कर वे तय स्थान पर आगे बढ़ते हैं जहां हाथ में पकड़ी एक लकड़ी अपने आप घूमने लगती एवं बलपूर्वक पकड़ने पर भी नही रुकती इस स्थान पर खुदाई करने पर भरपूर पानी निकलता है। जिस प्रकार मकान निर्माण से पूर्व नक्शा बनाया जाता ही ठीक उसी तरह यदि एक बार जल परीक्षण कराते है तो आर्थिक क्षति से बचा जा सकता क्योंकि कई बार बोर फेल हो जाते ही है जिससे भारी नुकसान होता है।
श्री तिवारी का मानना है की लकड़ी का घूमना एक प्रकार के चुंबकीय प्रभाव के कारण संभव होता है। अपने हुनर के बारे में कहते हैं की ये उन्हें कुदरती हासिल है एवं वे इसे जनहित में करते है। श्री तिवारी अपनी इस कला के आधार पर जिले में एवं जिले के बाहर भी कई स्थानों पर भूमिगत जलस्त्रोतों का पता लगा चुके है, इनमे विशेष तौर से भोपाल मंडीदीप स्थित लूपिन कंपनी, इंदौर की मधुर चाकलेट फैक्ट्री, बैतूल, पचमढ़ी, पन्ना, नर्मदापुरम, खंडवा आदि कई जगहों पर वे जाते हैं। उनका कहना है मां नर्मदा की कृपा ही है तब तक जनहित में ये कार्य करता रहूंगा।