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महिला दिवस पर विशेष : नारी का सफर – लेखक मनोरमा चौहान

नारी मानव जाति की जननी और पीढ़ियों को जोड़ने वाली एक कड़ी है

नारी मानव जाति की जननी और पीढ़ियों को जोड़ने वाली एक कड़ी है वैदिक काल में तो महिलाओं को देवी तुल्य समझा जाता था परंतु मुगल साम्राज्य की स्थापना के बाद ब्राह्मणों द्वारा हिंदू धर्म की रक्षा एवं स्त्रियों के सतत्वि तथा रक्त की शुद्धता बनाए रखने हेतु महिलाओं के संबंधों को कठोर बना दिया गया था महिलाओं ने भी इन आदर्शों को अपने जीवन में लागू करने में संकोच का अनुभव नहीं किया महिलाओं की आर्थिक पराधीनता पर्दा प्रथा के कारण अशिक्षा एवं संयुक्त परिवार की सुदृढ्ता हेतु महिलाओं को दबाकर रखने की प्रवृत्ति ने भारत में महिलाओं की स्थिति को निम्न स्तर बना दिया इसी कारण महिलाओं द्वारा आंदोलन प्रारंभ किया गया। सरकार द्वारा भी महिलाओं के लिए कानून एवं योजनाएं बनाई जाने लगी और उन्हें विशेष सुविधाएं दी जाने लगी स्वतंत्रा के बाद संविधान में स्त्री -पुरुष के बीच सभी वेदों को हटाकर समान स्तर पर लाने का प्रयास किया । हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 द्वारा महिलाओं को भी पुरुषों के समान संपत्ति में अधिकार प्रदान किया गया। भारत में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, परिस्थितियों में अनेकों परिवर्तन हुए फिर भी संतोष पद नहीं की जा सकता है।
भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं कृषि कार्याे एवं उघोगो मे नियोजित होती है जिससे हर वर्ग की महिलाओं को नियोजन के अतिरिक्त घरेलू कामों का बोझ सहन करना पड़ता है इस श्रेणी की महिला की मुख्य समस्याओं के मुख्य रूप से दोहरे काम की समस्या, निम्न मजदूरी कार्य की कठिन दषाएं छेड़छाड़ एवं असामाजिक तत्वों से सुरक्षा की समस्या प्रसूति सें उत्पन्न समस्या,आवास यातायात मनोरंजन एवं आर्थिक सुरक्षा आदि समस्याओं का उल्लेख किया जा सकता है।

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❗नारी अबला नारी ज्वाला
नारी ही माता बहिन
शास्त्रों में भी नारी महिमा
नारायण से पहले नारी
घर-घर पूजी जाती नारी
नारी महिमा अमिट हैं सारी
फिर भी दुत्कार खाती नारी यही विडंबना जग में जारी
नारी अबला नारी ज्वाला
नारी ही माता बहिन
नारी को नारी करती अपमानित
नारी कि दुर्दशा मैं नारी❗

लेखक – प्रोफेसर मनोरमा चौहान हरदा डिग्री कालेज राष्ट्रीय सेवा योजना प्रभारी