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मां नर्मदा को अवतरित कराने वाले ,राजा हिरण्यतेजा की खंडित प्रतिमा ,की हजारो साल से होती है, पूजा

मकड़ाई समाचार रायपुर| मां नर्मदा का जन्मोत्सव आज धूमधाम से मप्र सहित अन्य स्थानों पर मनाया जा रहा हैं। मान्यता है कि आज मां नर्मदा में सभी पवित्र नदियां भी स्नान करने आती हैं।नर्मदा में स्नान करने से श्रद्धालुओ को सभी पवित्र नदियों के स्नान का फल मिलता हैं। इसके साथ ही शिव की कृपा भी प्राप्त होती है क्योकि मां नर्मदा शिवकन्या कहलाती हैं। कथाओं के अनुसार एक दिन भोलेनाथ अपनी तपस्या में लीन थे। तपस्या करते समय उनके शरीर से पसीना निकला और उसी से ही नर्मदा का जन्म हुआ। नर्मदा का अर्थ है सुख प्रदान करने वाली। इसलिए भगवान शिव ने उस कन्या को आशीर्वाद दिया और कहा की जो व्यक्ति तुम्हारा दर्शन करेगा, उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे। वह मैखल पर्वत पर उत्पन्न हुई थीं इसलिए वह मैखल राज की पुत्री भी कहलाती हैं।

स्कंदपुराण के अनुसार राजा हिरण्य तेजा अपने पितरो का तर्पण करने के लिए धरती के सभी तीर्थों पर गए इसके बावजूद भी उनके पितरों को मोक्ष नहीं मिल पा रहा था। उन्होंने अपने पितरों से इसका जवाब मांगा कि आपको कहां संतुष्टि मिल पायेगी.उन्होंने कहा कि हमें मां नर्मदा के पवित्र जल में तर्पण से मोक्ष मिलेगा।
पितरों की बात का मान रखते हुए राजा 14 साल तक भोलेनाथ की तपस्या करते रहें। महादेव राजा की तपस्या को देखकर प्रसन्न हुए। तब राजा ने वरदान के रूप में मां नर्मदा को धरती पर आने की याचना की। महादेव ने तथास्तु कहकर अपनी बेटी को धरती पर भेज दिया। तब राजा ने नर्मदा नदी के किनारे तर्पण कर पितरों को मोक्ष प्रदान किया।

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 राजा हिरण्यतेजा की खंडित प्रतिमा की होती है पूजा

रायपुर से महज 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित चंद्रखुरी गांव में ग्रामीण सदियों से राजा हिरण्यतेजा की पूजा करते आ रहे हैं। भगवान श्रीराम की माता कौशल्या के एक  मात्र मंदिर वाले गांव में राजा हिरण्यतेजा को ग्रामीण गांव के देवता के रूप में पूजते हैं। नर्मदा को अवतरित कराने की थी कठोर तपस्या राजा हिरण्यतेजा की हजारों साल पुरानी प्रतिमा खंडित है, धड़ अलग और सिर अलग है, इसके बावजूद ग्रामीणों की आस्था है। महज 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित चंद्रखुरी गांव में ग्रामीण सदियों से राजा हिरण्यतेजा की पूजा करते आ रहे हैं। भगवान श्रीराम की माता कौशल्या के एक  मात्र मंदिर वाले गांव में राजा हिरण्यतेजा को ग्रामीण गांव के देवता के रूप में पूजते हैं। मान्यता है कि नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित कराने के लिए राजा हिरण्यतेजा ने कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने नर्मदा को धरती पर भेजा। राजा ने नदी के किनारे अर्पण, तर्पण कर पूर्वजों को मोक्ष दिलाया। ऐसे तपस्वी राजा हिरण्यतेजा का छोटा सा मंदिर गांव में स्थित है।