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शिक्षिका की हिम्मत जज्बे को सलाम, बच्चो को पढ़ाने प्रतिदिन 25 किलो मीटर का सफर व 3 किलो मीटर दुर्गम पहाड़ी रास्तो से पैदल होकर पहुँचती है स्कूल

डैनी उतपूरे मकड़ाई समाचार ब्यूरो बैतूल :- बैतूल बच्चों का भविष्य गढ़ने में शिक्षकों की मेहनत और जज्बे का कोई सानी नहीं होता। ऐसे कई शिक्षक हैं, जो नौनिहालों को काबिल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। टीचर्स डे के मौके पर मकडाई समाचार एक ऐसी महिला टीचर की कहानी बता रहा है, जो पिछले 23 साल से 25 किमी का सफर तय कर स्कूल पहुंच रही हैं। इसमें 3 किमी तो उन्हें पैदल खड़ी पहाड़ी पर चढ़ना होता है।

45 साल की कमलती डोंगरे बैतूल से 25 किमी दूर पहाड़ी गांव गौला गोंदी में टीचर हैं। ये 23 साल से ऐसे ही पथरीले रास्ते का सफर तय कर नौनिहालों की तकदीर संवारने स्कूल तक पहुंचती हैं। जंगली जानवरों की आवाजें, सांप बिच्छू का डर, मूसलाधार बारिश और जेठ की गर्मी भी इनके पैर नहीं राेक पाई।

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बैतूल से पहले बस से 10 किमी का सफर फिर लिफ्ट लेकर 12 किमी की यात्रा। इसके बाद 3 किमी की खड़ी चढ़ाई और फिर 3 किमी पहाड़ उतरना। यह अब इनकी दिनचर्या में शामिल हो चुका है। गांव के एकमात्र प्राइमरी स्कूल में कमलती इसी तरह बच्चों का भविष्य संवारने गांव तक पहुंचती हैं।
कमलती डोंगरे इसी तरह रोजाना पहाड़ चढ़कर जाती है।

31 अगस्त 1998 को कमलती ने बतौर शिक्षाकर्मी इस स्कूल में जॉइनिंग की थी। यहीं वे 14 साल बाद अध्यापक बनीं। फिर जुलाई 2018 में टीचर बना दिया गया। महज 2256/- रुपए की तनख्वाह पर नौकरी की शुरुआत करने वाली कमलती अपने 2038 तक होने वाले रिटायरमेंट तक इसी स्कूल में सेवा देना चाहती हैं
1998 में जॉइनिंग के बाद कमलती में बच्चों को पढ़ाने का जज्बा ऐसा था कि 28 अप्रैल 1999 में हुई शादी के बाद उन्होंने फैसला किया कि वे गांव में ही रहकर बच्चों को पढ़ाएंगी। यहां ताप्ती नदी के किनारे एक खेत में अकेले मकान में रहकर उन्होंने चार साल गुजारे, लेकिन फिर बेटे का जन्म हुआ। उसकी पढ़ाई के चलते उन्हें बैतूल आना पड़ा।
23 साल पहले जब कमलती ने जॉइनिंग की, तब स्कूल में 60 बच्चे पढ़ते थे। जिन टीचर्स की वहां डयूटी थी। वे नौकरी छोड़कर दूसरी जगह जा चुके थे। उनके एक दिन बाद जॉइन हुए शिक्षक प्यारेलाल चौहान भी 23 साल से वहीं पदस्थ हैं। कमलती ने जिन बच्चों को पढ़ाया। उनमें कुछ सेना में तो कुछ दूसरी शासकीय सेवाओं में हैं। कई लड़कियां माइक्रो बायलॉजी जैसे विषय लेकर पढ़ाई कर रही हैं। फिलहाल उनके स्कूल में 29 बच्चे हैं।
कमलती के चचेरे भाई भोपाल में अपर कलेक्टर हैं, लेकिन उन्होंने कभी ट्रांसफर की सिफारिश नहीं करवाई। सर्व शिक्षा अभियान के अफसरों ने भी कभी ध्यान नहीं दिया कि उन्हें सम्मान से नवाजा जाए। एक सप्ताह पहले अभियान के परियोजना अधिकारी जब हांफते हुए किसी तरह पहाड़ी चढ़कर स्कूल पहुंचे। जब लौटे तो पता चला कि एक महिला शिक्षिका कैसे यहां पढ़ा रही है। डीपीसी सुबोध शर्मा बताते हैं कि उन्हें भी स्कूल तक पहुंचने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। वे शिक्षिका के कार्य से अभिभूत हैं। उन्हें विभाग से सम्मान मिले इसका पूरा प्रयास करेंगे।
साथी शिक्षक प्यारेलाल चौहान करीब के गांव मांडवा कोल में रहते हैं। उन्हें करीब ढाई किमी की दूरी तय कर स्कूल पहुंचना होता है। यह रास्ता पहाड़ी तो नहीं, लेकिन ऊबड़ खाबड़ जरूर है। वे बताते हैं कि वे भी 23 साल से इसी स्कूल में पदस्थ है। चूंकि उनका गृह ग्राम करीब है, इसलिए उन्हें आने-जाने में दिक्कत नहीं होती। साथी शिक्षिका जरूर रोज घाटी तय कर पहुंचती हैं। एक महिला के लिए रोज तीन किमी की खड़ी घाटी उतरना और लौटते समय यह खड़ी चढ़ाई चढ़ने दुश्कर है। वे खुश है कि उन्हें एक बेहतर साथी शिक्षिका मिली है। जो रास्ते के दुर्गम होने के बावजूद समय की पाबंदी को नहीं भूलतीं।