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संपादकीय : आत्मनिर्भरता की राह

प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात कार्यक्रम में एक बार फिर आत्मनिर्भरता को रेखांकित करते हुए इस पर खासा जोर दिया कि देश को खिलौनों और मोबाइल गेम्स के मामले में भी आत्मनिर्भर बनने की जरूरत है। उन्होंने जिस तरह यह कहा कि अब सभी के लिए देश में बने खिलौनों की मांग करने का समय आ गया है, उससे यही स्पष्ट होता है कि वह देश के खिलौना बाजार में चीन के वर्चस्व को खत्म करना चाहते हैं। यह स्वाभाविक है। सच तो यह है कि खिलौनों के साथ-साथ वे सभी वस्तुएं भारत में बननी चाहिए, जो पहले यहां बनती थीं, लेकिन कालांतर में उनका चीन से आयात होने लगा। यह जिन भी कारणों से हुआ हो, लेकिन ऐसा होने देना एक भूल थी। इस भूल को सुधारने के लिए हरसंभव कोशिश की जानी चाहिए।
इस कोशिश को सफल बनाने में देशवासियों को भी योगदान देना होगा, लेकिन असली काम तो उद्यमियों और सरकार को ही करना है। सरकार की नीतियां वास्तव में ऐसी होनी चाहिए, जिससे हमारे उद्यमी चीनी उद्योगों को हर क्षेत्र में पछाड़ने के आत्मविश्वास से लैस हो सकें। ध्यान रहे कि आत्मविश्वास ही आत्मनिर्भरता की कुंजी है।

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वर्तमान में दुनिया का खिलौना बाजार करीब सात लाख करोड़ रुपये का है, लेकिन उसमें भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है। यह तब है जब देश के कई हिस्सों में खिलौने बनाने की समृद्ध परंपरा रही है। इस परंपरा को नए सिरे से बल देना होगा और वह भी इस तरह कि देश में बने खिलौने न केवल देश की मांग पूरी कर सकें, बल्कि विश्व बाजार में भी अपना स्थान बना सकें। यह तभी संभव होगा जब उनकी गुणवत्ता और उत्पादकता विश्व स्तर की होगी। यदि विश्व बाजार में चीन को पछाड़ना है तो भारतीय खिलौना उद्योग को उससे बेहतर करना होगा। प्रधानमंत्री देश के खिलौना उद्योग को बेहतर काम करते हुए देखना चाहते हैं, इसका पता इससे चलता है कि चंद दिनों पहले उन्होंने स्वदेशी खिलौना उत्पादन को लेकर कई वरिष्ठ मंत्रियों और अधिकारियों के साथ एक बैठक की थी। उम्मीद है कि कोई ऐसी रूपरेखा बन रही होगी, जिससे भारतीय खिलौना उद्योग को प्रोत्साहन मिलना सुनिश्चित हो सकेगा।
यह प्रोत्साहन उन्हें भी मिलना चाहिए, जो मोबाइल गेम्स बनाते हैं। मोबाइल गेम्स का भी एक बड़ा बाजार है और वह दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। चीनी एप्स पर पाबंदी के बाद भारतीय कंपनियां जिस तरह किस्म-किस्म के एप बनाने के लिए प्रयासरत हैं, उसी तरह उन्हें मोबाइल गेम्स बनाने के लिए भी सक्रिय होना चाहिए। इस सक्रियता के बीच सरकार को यह देखना चाहिए कि हर मामले में आत्मनिर्भर बनने की सोच एक संकल्प का रूप ले।